आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आ डॉ विजय शकर जी , वतर्मान समय को देखते हुए आपने कथानक को यह कहकर सुन्दर मोड़ दिया है कि " जो अपने उत्तरदायित्व को नहीं समझता है और अपनी गलतियों का दोषारोपण दूसरों पर करता है वह होशियार नहीं होता है , वरन स्वभावतः गुलाम तुल्य होता है।" वास्तव में जनता अपनी गलती का प्रायश्चित करती है -हार्दिक बधाई |
आ. डा. विजय जी बहुत सार्थक और सुंदर रचना लिखी है आपने. सेवक थोड़े प्रायश्चित करते हैं " , थोड़ा रुक कर फिर बोले , " जनता करती है न , मालिक के रूप में , रोज ही करती , सह सह कर , गलत सेवक को चुन कर। " पुरी कथा का मर्म समा गया इसमे.
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ विजय शंकर जी!बेहतरीन प्रस्तुति!पश्चाताप वही कर सकता है जिसे अपनी भूल का आभास हो!
राजनीति और व्यक्ति के दर्शन को व्यक्त करती सुन्दर लघुकथा. बधाई आदरनीय विजय शंकर जी .
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