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बहुत सुन्दर कथा बन पड़ी हैं ..बधाई आपको
आदरणीया मीनाजी, आपकी यह लघुकथा उद्येश्यपरक है. बहुत ही सही विन्दु उठाया गया है. हार्दिक बधाइयाँ.
शुभ-शुभ
बड़ी अजीब सी लघुकथा कही है प्रिय नेहा अग्रवाल जी। सर पर चोट लगने की वजह से लड़की याददाश्त भी खो चुकी है (जिसकी पुष्टि डॉक्टर ने भी की है) फिर भी ऐसी अवस्था में प्रण भी ले लेती है, बात कुछ अटपटी सी नहीं लगती ? ये लघुकथा एक केजुअल अटेम्प्ट है, मज़ा नहीं आया।
आदरणीया नेहा जी, जल्दबाजी में यह भागीदारी हुई है न ? आदरणीय योगराज जी से सहमत हूँ.
इस लघुकथा के माध्यम से आयोजन में सहभागिता बनाने केलिए शुभकामनाएँ.
इस आयोजन को सफल बनाने हेतु सभी सुधि साथियों का हार्दिक आभार।
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