ओ.बी.ओ. लखनऊ चैप्टर की मासिक गोष्ठी - मार्च 2016 – एक प्रतिवेदन
रविवार दिनांक 27 मार्च 2016. लखनऊ के आकाश में पश्चिम से आने वाली गर्म हवा की धूसर अभिव्यक्ति थी. फिर भी ओ.बी.ओ.लखनऊ चैप्टर की मासिक गोष्ठी आम भारतीयों के कुख्यात समय चेतना को दरकिनार करती हुई लगभग निर्धारित समय पर ही शुरू हुई. डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी की अध्यक्षता में सम्पन्न इस गोष्ठी का संचालन श्री मनोज शुक्ल ‘मनुज’ ने किया.
मनुज जी के संचालन का एक वैशिष्ट्य है. हर रचनाकार को अपनी रचना पाठ करने के लिए आमंत्रण देने से पहले वे अत्यंत परिमार्जित शब्दों का प्रयोग कर चंद पंक्तियों का पाठ करते हैं जिनमें से अधिकांश उनके स्वरचित होते हैं. विभिन्न छंद, वर्ण, रस और लय से समृद्ध ये पंक्तियाँ किसी भी गोष्ठी की व्यंजना में विशेष ऊर्जा का संचार करती हैं. आज भी इसका कोई व्यतिक्रम नहीं देखा गया. प्रथागत ढंग से सरस्वती वंदना करने के साथ ही मनुज जी ने अपना दायित्व संभाल लिया.
काव्यपाठ करने के लिए सबसे पहले श्री केवल प्रसाद ‘सत्यम’ को आमंत्रित किया गया जिन्हें मार्च 2016 में ओ.बी.ओ. के पटल पर ‘महीने की श्रेष्ठ रचना’ का रचनाकार होने का गौरव प्राप्त हुआ है. यही नहीं, कर्मठ केवल जी ने हाल में ही “छंद माला के काव्य सौष्ठव” शीर्षक से एक पुस्तक लिखी है जो पाठकवर्ग में अतिशय समादृत हुई. आज आपने विभिन्न रस की कुछ रचनाएँ सुनाई. दोहे के प्रति आपके विशेष लगन से हम सभी परिचित हैं. यथा,
“ कवि कविता के मध्य जो, प्रचुर शब्द, शुचि अर्थ
प्रेम भक्ति संवेदना, रस को करे समर्थ “
विभिन्न रचनाओं के बारे में अनौपचारिक बातचीत हो ही रही थी कि नगर के अति विशिष्ट ग़ज़लकार आदरणीय कुँवर कुसुमेश जी के आगमन से गोष्ठी का माहौल और प्राणवंत हो गया. इसके साथ ही आग्रह किया गया सुश्री कुंती मुकर्जी से कि वे अपनी कविता सुनाएँ. उन्होंने गहन अर्थ से भूषित अपनी अतुकांत रचना का पाठ किया –
“ मै बैठी हूँ दरिया के ऊपर
--------
दर्द बहुत होता है
तब---!
एक वक़्त के दरमियान –
सद्य: समाप्त होली के त्योहार को याद करते हुए संचालक श्री मनुज जी ने सुनाया –
“ होली तो हो ली मनुज, चढ़े ढले सब रंग
चंग भंग की भी गयी, बंद हुआ हुड़दंग “
अब बारी थी वर्तमान प्रतिवेदक की. कोई नयी कविता शरदिंदु मुकर्जी ने पिछली गोष्ठी के बाद से नहीं लिखी. अत: अध्यक्ष महोदय से अनुमति लेकर उन्होंने अपनी आने वाली पुस्तक “पृथ्वी के छोर पर” से एक अध्याय पढ़कर सुनाया. चंद पंक्तियाँ इस प्रकार हैं –
“ -------अगले चार दिन तक समुद्र बहुत ही अशांत रहा. आम तौर पर इस क्षेत्र में समुद्र का ऐसा चेहरा नहीं देखा गया है – लेकिन हमारी किस्मत ! इस यात्रा में जहाज़ भी खिलौनानुमा. ऊंची-ऊंची लहरों पर असहाय होकर लोटपोट हो रहा था. हम चार भूविज्ञानी और नौसेना के एक अधिकारी को छोड़ सभी ‘सी-सिकनेस’ से ग्रस्त थे. उनके लगातार वमन, तेज़ी से दुर्बल होते शरीर, जहाज़ का भयंकर रूप से डोलते रहना – सब मिलाकर एक वीभत्स परिस्थिति थी. हम पाँच लोग इस तरह से ग्रस्त नहीं थे फिर भी घण्टों रस्सी या रॉड पकड़कर अपने को गिरने से संभालना, साथियों को जबरन कुछ खिलाना व नियमित अंतराल पर रसम अथवा अन्य पेय पिलाते रहना, जहाज़ की सफ़ाई करना, आदि काम करते हुए हम थकने लगे थे. हम सभी के सिर में तेज़ दर्द था. खाने के नाम पर केवल दक्षिण भारतीय पेय रसम बनाया जा रहा था जिसे हम बीच-बीच में पी रहे थे.----“
संचालक के आमंत्रण पर अब शहर की सबसे प्रभावशाली कवयित्री सुश्री संध्या सिंह को सुनने का अवसर मिला. गीत, ग़ज़ल, दोहे और अतुकांत रचनाओं में समान रूप से दक्ष संध्या जी ने अपनी कई कविताएँ पढ़ीं. हरेक में उनकी कल्पना की व्यापकता और बिम्ब के अनूठे प्रयोग की छाप सुस्पष्ट थी. उदाहरणार्थ –
“ आसमाँ कामयाबी का ऐसा दिखा
आज गहरायी उठकर सतह हो गयी,
रोशनी में छुपे जो सितारे मेरे
लोग खुश हैं कि उनकी सुबह हो गयी “
वरिष्ठ ग़ज़लकार और इस मंच पर मात्र दूसरी बार पधारे कुँवर कुसुमेश जी को सुनने के लिए हम सब व्यग्र थे. उन्होंने ग़ज़ल के बारे में कुछ गूढ़ बातें बतायीं और तरन्नुम में सुनाया –
“ भीड़ में रक्खे उसे या उसे तन्हा रक्खे
मेरा अल्लाह मेरे यार को अच्छा रक्खे “
अंतत: बारी थी अध्यक्ष के आसन पर विराजमान डॉ गोपाल नारायन जी को सुनने की. पहले आपने होली के अवसर पर अपनी एक अवधी रचना सुनायी –
“ पूनम निशि विधु – रश्मि अंजोरी / बल्ला, कंडा, काठ बटोरी
लाई कपूर जराई होरी / कहैं फागु सब चांचरि जोरी “
तत्पश्चात आज के अनुष्ठान की अंतिम प्रस्तुति के तौर पर आपने एक नवगीत सुनाया –
“ उसने यूँ ही कहा गीत रचता हूँ मैं
आप हैं कि मुझे आजमाने लगे
यह हुनर तो मिला है मुझे जन्म से
माँजने में इसे पर ज़माने लगे “
अपने-अपने हुनर को ऐसे ही माँजते रहने की अव्यक्त किंतु सुस्पष्ट संदेश की गूंज से गोष्ठी गुंजित हो उठी. रचनाओं के पाठ का सिलसिला समाप्त होने के उपरांत डॉ शरदिंदु मुकर्जी ने उपस्थित सभी को धन्यवाद दिया गोष्ठी को सफल बनाने के लिए. इसके बाद हम सब का सौभाग्य था कि हमारे आग्रह से आदरणीय कुसुमेश जी कुछ देर और बैठे. उनके साथ डॉ गोपाल नारायन जी, केवल जी और मनुज जी के बीच ग़ज़ल को लेकर जो अनौपचारिक बातचीत हुई उसे सुनना हमारे लिए एक सुखद अनुभूति थी जिसका अनुरणन हमें लम्बे समय तक रोमांचित करता रहेगा.
(मौलिक तथा अप्रकाशित)
Tags:
आ० दादा शरदिंदु जी , आपने ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या का सारगर्भित विवरण प्रस्तुत कर मंत्रमुग्ध कर दिया . एक बार वह सारा मंजर आँखों के सामने मूर्त्त हो उठा . इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए आप्को बधाई .
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |