ओ.बी.ओ. लखनऊ चैप्टर की मासिक गोष्ठी – जुलाई 2016 – एक प्रतिवेदन - प्रस्तुति- डा0 गोपाल नारायण श्रीवास्तव
पावस का रिमझिम संगीत प्रवाहित था. सघन मेघों से शीतल उद्दीपक वारि-राशि केशराघात हो रहे थे. सड़कों पर जलभराव के बीच कभी -कभी चौपहिया वाहन पानी के फव्वारे छोड़ते निकल रहे थे. लोग प्रायशः घरों में दुबके पड़े थे. आवागमन के संसाधन विश्राम कर रहे थे. इन दुश्वारियों के बीच ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर के जुझारू बाँकुरे बड़ी संख्या में मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ के आवास पर एकत्र हुये . फिर काव्यधारा और जलधारा के संगीत की जो अद्भुत जुगलबंदी हुई उसने इस संध्या को अविस्मरणीय बना दिया. कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ डॉ0 अशोक कुमार पाण्डेय ‘ अशोक‘ की अध्यक्षता में संचालक मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज ‘ की भाव-भीनी वाणी-वन्दना के साथ.
तदुपरांत प्रथम कवि के रूप में डॉ0 गोपाल नारायण श्रीवास्तव को आमंत्रित किया गया . डॉ0 श्रीवास्तव ने ‘बहरे हजज मुसम्मन अशतर ‘ पर एक ग़ज़ल पढ़ी , जिसके कुछ अशआ र निम्न प्रकार हैं-
मानता हूँ है बाकी देश में हुनर काफी
किंतु कोई जादू हो कुछ कमाल तो आये
यूँ तो खून बहता है आदमी की धमनी में
किन्तु ये भी है लाजिम कुछ उबाल तो आये
आज भी भटकती है वन करील में राधा
भूलकर कभी बृज में नंदलाल तो आये.
श्रोताओं के अनुरोध पर डॉ0 श्रीवास्तव ने ‘बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम’ पर आधारित अपनी एक रूमानी ग़ज़ल पढ़ी. ग़ज़ल के चंद अशआर बानगी के रूप में यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं.
इश्क आँखों ने जबसे नुमायाँ हुआ
कितने दिलकश जहाँ के नज़ारे हुए
हुस्न अपनी खनक में ही मदहोश है
और हम अपनी किस्मत के मारे हुए
आयोजन संचालक जी के आवास पर था अतः उनकी प्राथमिकतायें बीच में बदल जाती थीं. इस अवसर का लाभ डॉ0 शरदिन्दु मुकर्जी ने उठाया . उन्होंने वॉट्सऐप पर प्राप्त ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर के नव गठित ग्रुप के कतिपय सदस्यों की रचनाये सुनायी , जिनकी बानगी प्रस्तुत की जा रही है .
सुबह हुई अलार्म बजे से
‘जमा करो पानी ‘ का ज़ोर
इधर बनाना टिफ़िन सुबह का
उधर खाँसते नल का शोर
दो घण्टे के इस ‘बादल’ से
करना बरतन सरवर-कूप
टुकड़े-टुकड़े छितरी धूप... (इलाहाबाद से श्री सौरभ पाण्डेय द्वारा प्रेषित)
जो दिलों को जोड़ती संवेदना ही वह कड़ी है
मनुजता के भाल को उन्नत करे यह वो लड़ी है
द्वेष की सरिता बहाते इस जलन का क्या करोगे
तप्त मरुथल में कहो कैसे जियोगे?
मर गयी संवेदना तो फिर अहं का क्या करोगे
बन गये पाषाण तो कैसे जियोगे…. (कानपुर से सुश्री कल्पना मनोरमा ‘कल्प’ द्वारा प्रेषित)
भीगा-भीगा सावन आया
रिमझिम झरे फुहार
काली घटाएँ घिर के आयें
गायें मेघ मल्हार..... (कानपुर से सुश्री अन्नपूर्णा बाजपेई ‘अंजु’ द्वारा प्रेषित)
.....
बिटिया का आगमन
गलियारे के बाहर
परिजनों की आवाज
उफ्फ..
फिर बेटी!
अथाह वेदना...
प्रसव पीड़ा
कुछ भी न थी......(पटना से श्री गणेश जी बागी द्वारा प्रेषित)
अगले कवि थे काव्य-मंच के युवा सितारे कनक तिवारी, जवानी के जोश से लबरेज. व्यवस्था को बदलने पर आमादा, हृदय में असंतोष का सैलाब लिए. उन्ही शाश्वत सवालों के साथ जिनका जवाब तलाशते-तलाशते शायद बीत जाती है उम्र. उनका दावा है कि -
महल मंदिर कुटीर बोलेगा
होके अब नीर क्षीर बोलेगा
प्यार के ढाई आखर पढ़े हैं अब
सर पर चढ़कर कबीर बोलेगा
कवयित्री कामिनी श्रीवास्तव की शारीरिक मजबूरियाँ हैं लेकिन उनकी उत्कट जिजीविषा के समक्ष सर स्वत: नत हो जाता है. उन्होंने अपने जीवन में जो संघर्ष किया वह उनकी कविताओं में मुखर है.
था सफ़र मुश्किल भरा पर हौसले थे कम नहीं
जिस डगर पर मैं चली थी राह तक उस पर नहीं
एक और नए उत्साही युवा कवि अखिलेश त्रिवेदी ‘शाश्वत ‘ ने भी उन सम्भावनाओं को साकार करने की वकालत की जिनके संभव होने की सूरत फिलहाल नहीं दिखती पर उत्साह तो उत्साह ही है. वीर रस का ‘स्थायी भाव' . कवि की मंशा है कि –
द्वार द्वार में लिखी हों वेद की ऋचाएं और
घर में सुधारकों के चित्र होने चाहिये
रावणों को जड़ से मिटाने हेतु मित्रवर
अपने भी राम से चरित्र होने चाहिए
मनमोहन बाराकोटी उर्फ़ ‘तमाचा लखनवी ‘ ने कई रचनायें पढ़ी और अंत में इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि –
हर गलत काम का परिणाम बुरा होता है
नजरों में गिरे सबकी बदनाम बुरा होता है
परदे में छुपके कोई बचता रहेगा कब तक
हर बुरे काम का अंजाम बुरा होता है
अब डॉ0 शरदिन्दु मुकर्जी को अपनी रचनाओं का पाठ करने हेतु आमंत्रित किया गया. उन्होंने ‘बगावत’ शीर्षक से एक मार्मिक अतुकांत कविता सुनायी जिसमें कलम आरक्षण पाने के लिये बगावत करती है. इस बगावत के बहाने कविता में एक फैन्टेसी विकसित हुयी है जो जाने–अनजाने मुक्तिबोध की याद ताजा कराती है. इस कविता के मार्मिक अंत का दृश्य प्रस्तुत किया जा रहा है –
.........
मैं कह नहीं सकता
पर आप सब निश्चिन्त रहें
मैंने अपनी कलम को समझा दिया है
ऐसे भिखमंगे की तरह
हाथ मत फैलाया करो
तुम्हें
मुझसे कोई आरक्षण नहीं मिलेगा
नीरज द्विवेदी को भारत में हो रहे नारी उत्पीड़न का हार्दिक क्षोभ है जिसे वे अपनी कविता में कुछ इस तरह बयां करते हैं.
सड़कों पर खूँ के धब्बे ही नहीं निशाँ हैं कायरता के
धरती के आँचल पर रक्तिम आंसू हैं उसकी बिटिया के
शहर के जान –माने ग़ज़लकार कुंवर कुसुमेश ने दो ग़ज़ले पढ़ी. दोनों ही ग़ज़लों का मेयार देखते ही बनता था. एक बानगी यहाँ प्रस्तुत है.
भीड़ में रक्खे या उसे तन्हा रक्खे
मेरा अल्लाह मेरे यार को अच्छा रक्खे
इस कार्यक्रम में दो बड़ी हस्तियां भी विद्यमान थीं – सुप्रसिद्ध कथाकार महेंद्र भीष्म और कवयित्री, अभिनेत्री व निर्देशिका गीतिका वेदिका. महेंद्र भीष्म की कहानी ‘वाह रे विधाता ‘ के नाट्य रूपान्तर का निर्देशन गीतिका वेदिका ने किया है. इनकी एक और कहानी ‘तीसरा कम्बल ‘ पर लघु फिल्म भी निर्माणाधीन है. महेंद्र भीष्म ने अपने उपन्यास में प्रयुक्त एक कविता का रुपान्तरण इस प्रकार प्रस्तुत किया -
‘तुमने मेरेलिए जिनके पाँव पूजे थे
वे ही पाँव अब पूजते हैं मुझे ‘
टीकमगढ़ , मध्य प्रदेश से आयी गीतिका वेदिका चर्चित कवयित्री और ग़ज़लकारा तो हैं ही, वे मैत्रेयी पुष्पा की कहानी “इदन्नमम” पर आधारित टी वी सीरियल ‘मंदा हर युग में‘ में अभिनय भी कर रही हैं. उन्होंने अपने ग़ज़ल को बड़ी भावुकता से पेश किया –
‘दर्द के साथ तबस्सुम भी है चुनते रहिये
ज़िन्दगी ख्वाब की मानिंद है बुनते रहिये
मैं ग़ज़ल होने का दावा तो नहीं करती
इक नया शेर हूँ बस प्यार से सुनते रहिये ‘
केवल प्रसाद ‘सत्यम’ ने कुछ सवैया और दोहे सुनाने के बाद नवगीत सुनाया जिसकी एक झलक प्रस्तुत है-
चुभें शूल
बिस्तर की सिलवट
चादर उम्र खिसक
पैर छुए धरती के सूरज
अँखिया जगी चमक
देह द्वार के खुले किवाड़े
कल्मष सटक गये
नींद खुली
खिड़की से भागी
परदे सरक गये
शहर की जानी –मानी कवयित्री संध्या सिंह अपने अनूठे उपमानो के लिए विख्यात हैं. उन्होंने अपने ग़ज़ल-पाठ से सभी को मुग्ध कर दिया . उनकी कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं –
‘बगावत को अपनी रजा दे चुके हो
दबी आग को तुम हवा दे चुके हो
खता पर मेरी अब नहीं हक़ तुम्हारा
गुनाहों से पहले सजा दे चुके हो ‘
संचालक मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ का छंदों और ग़ज़लों पर समान अधिकार है. उन्होंने पहले कई छंदाधारित रचनायें सुना ई. फिर ‘बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़’ (फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन) पर अपनी ग़ज़ल पेश की , जिसके चंद शेर इस प्रकार हैं –
गर किसी की ज़िन्दगी बच जाये मेरी हार से,
खुश सदा रहता हूँ मैं इस हार से इस मात से।
आपकी तो है नहीं फिर भी पसीने से हो तर,
डर रहे हो क्यों मियां तुम यार की बारात से।
अंत में घनाक्षरी छंद रचना के लिए ख्यात, इस कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री अशोक कुमार पाण्डेय ‘अशोक’ ने अपनी मनोहारी छंद रचना से सभी को आप्यायित किया . इनकी रचना की एक बानगी प्रस्तुत है –
ऐसा मधु योग हुआ हो गए सुरों के वृन्द
हम रंग रंजित ऊषा की रंगरेली से
निकल गया है तम तोम जग मंदिर से
फिसल गया है चंद्रमा व्योम की हथेली से
इसी के साथ मनोज कुमार शुक्ल 'मनुज' के सौजन्य से आयोजित साहित्य गोष्ठी समाप्त हुई. कविता की बरसात थमी और उधर पानी का बरसना भी रुका. किन्तु सड़कों पर जल-भराव की स्थिति थी . सभी उत्साही कवि वृन्द प्रकृति के आचरण को आत्मसात करते हुये इस अभिलाषा के साथ अपने गंतव्य को रवाना हुए कि –
‘ फिर सजेगी काव्य संध्या भव्य अगले माह
और होगा इस तरह ही सरस काव्य प्रवाह ‘ –सुगीतिका [15, 10 चरणांत 21 ]
(मौलिक तथा अप्रकाशित)
Tags:
ओ.बी.ओ. लखनऊ चैप्टर की मासिक गोष्ठी – जुलाई 2016 के सचित्र प्रतिवेदन हेतु हार्दिक आभार आपका. आयोजन की सफलता हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर
सादर आभार वामनकर जी
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |