For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या माह अगस्त 2016 - एक प्रतिवेदन

ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या माह अगस्त 2016

–एक प्रतिवेदन                                                                                                                

                                        डॉ0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव   

 

लखनऊ के गोमतीनगर स्थित SHEROES HANGOUT  के उन्मुक्त वातावरण में  दिनांक 13-08-2016 के अपराह्न 4 बजे ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर के संयोजक डॉ0 शरदिंदु मुकर्जी के सौजन्य से राशिराशि सज्जित साहित्य संध्या के प्रथम चरण का शुभारम्भ संतमना आदरणीय डॉ0 अनिल मिश्र के अध्यात्म आधारित  व्याख्यान से हुआ. डॉ0 मिश्र के अनुसार अध्यात्म एक ऐसा विषय है कि – ‘ आप इसकी जितनी गहराई में जाइयेगा  उतना ही यह गहरा होता जायेगा और इसको जितना सहज बना लीजिये उतना  ही सहज होता जायेगा अर्थात सहज से सहज और कठिन से कठिन-------- सामान्य तौर पर लोग यह सोचते हैं कि विषय यदि अध्यात्म है तो पूजा-पाठ की बात या कोइ बहुत ही गूढ़ रहस्य की बात की जायेगी. कोइ ऐसा विषय है जिसमें स्वर्ग नरक वाली बात होने जा रही है, मोक्ष की बात होने जा रही है और यह  वानप्रस्थी  और संन्यासी लोगों के लिए है. साधारण  गृहस्थ, नौजवान या बच्चों को इसकी क्या जरूरत है, यह बात तो बड़े लोगों  के लिए है. एक उम्र के बाद जब बाल-वाल सफ़ेद होने लगे तो अध्यात्म की बात करेंगे. ------ मगर क्या वाकई यह बात सही है. आपका कोई भी क्षण ऐसा नहीं है, ऐसा कोई कार्य नहीं है जिसमे अध्यात्म न हो. बिना अध्यात्म के आप एक कदम चल भी नहीं सकते  क्योंकि  सृष्टि की रचना ही परम ब्रह्म में ‘एकोsहम भविष्यामि’ के संकल्प से हुयी है . अगर आम का पेड़ लगायेंगे तो फल भी तो आम का ही आयेगा. उसमें आम का ही मीठा रस मिलेगा उससे अलग रस तो नहीं हो सकता.’  

गोस्वामी तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ में  माया के विद्या और अविद्या दो रूप बताये हैं –

ताकर भेद सुनहु अब सोऊ, विद्या अपर अविद्या दोऊ.

एक दुष्ट अतिसय दुखरूपा, जा बस जीव परहि भव-कूपा. 

एक रचै जग गुन बस जाके, प्रभु प्रेरित नहिं निज बल ताके.

 

डॉ मिश्र ने  अपने व्याख्यान में विद्या रूपी माया का समर्थन करते हुए कहा माया को जो दोष देता है मुझे नहीं लगता मैं उससे सहमत हूँ, मुझे कहीं नहीं लगता कि माया का कहीं दोष है जबकि इतने बड़े संत द्वारा लिखा गया है – माया महा ठगिनी मैं जानी. मैं इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखता, माया का कहीं कोई दोष नहीं है – जो सृजत जगत पालत हरत रुख पाय कृपा निधान की. उसने तो सृजन किया है. जिसने  जन्म दिया वह तो माता हो गयी, वह कैसे कुमाता हो सकती है – कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति.

अपने 53 मिनट के व्याख्यान में वक्तृता की अपनी अद्भुत कला से डॉ0 मिश्र ने अध्यात्म के अनेक रहस्य खोले और उपस्थित समुदाय को मन्त्र-कीलित सा कर दिया. उनकी वाणी का प्रवाह निसर्ग - संभूत है और उनका अधिकाँश साहित्य उनके आध्यात्मिक ज्ञान की परिणामी व्यवस्था है. उदाहरण निम्न प्रकार है -

जेती चलैं,  जब जैसे चलैं,  पग  डोलत  ही  हम डोलन लागी

छनन छनन छन छनन छनन छन छम छम छम बोलन लागी 

हम बोलनि लागी तो डोलन लागे बड़े से बड़े मुनि अरु अनुरागी

हमको सब एक समान लगें,  जग में चाहे भोगी हों चाहे विरागी

 

सागर क्षीर में,  शेष के सेज पे रोज  रमा  संग  छम-छम बोला

गंग के संग कमंडल में आइके, हमने बदल दिया ब्रह्म का चोला

जब बोल दिया तब खोल दिया निज तीसर आँख समाधि में डोला

कौन  बचा  त्रैलोक  में  जे  कर  मो  पर ना  कबहूँ मन डोला

 

कार्यक्रम के दूसरे चरण में सर्व प्रथम संचालक मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ की वाणी-वन्दना ने  काव्य-रस की निर्झरी बहाई फिर प्रथम कवि के रूप में श्री प्रदीप कुमार शुक्ल का आह्वान किया गया. श्री प्रदीप ने उन स्थितियों का खुलासा किया जब परिस्थिति से झुंझलाकर अंततः मानव यह कहने को बाध्य हो उठता है –‘भाड़ में जाए’. एक निदर्शन यहाँ प्रस्तुत है –

खुद से अधिक पतित तो खुद  मुझे मानते हो तुम

गिरते को थामते गिरकर क्या नहीं जानते हो तुम 

 

डॉ0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव  ने आसन्न स्वाधीनता दिवस को ध्यान में रखकर वीरों के सम्मान की और देश का ध्यान आकृष्ट करते हुए ‘ककुभ’ छंद में एक गीत पढ़ा-

कब वीरों की दग्ध चिता पर कब समाधि पर आओगे.

कब सुख से सूखे लोचन पर करुणा के घन लाओगे.

 

कवयित्री सुश्री संध्या सिंह की ख्याति कम शब्दों में मर्मस्पर्शी बिम्ब प्रस्तुत करने की उनकी क्षमता में निहित है. उनकी कविता का एक अंश यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है –

बहते जल से क्या जानोगे  कितनी हलचल की कंकर ने

झूले  वाले  गीत लिखे हैं  तनी  हुयी रस्सी  पर हमने

 

डॉ अनिल मिश्र जी के व्याख्यान के परिप्रेक्ष्य में डॉ0 शरदिंदु ने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कुछ आध्यात्मिक पंक्तियों का बांग्ला भाषा में पाठ किया और हिन्दी भाषा में उसका उल्था कर उपस्थित समुदाय की जिज्ञासा का समाधान किया. ये पंक्तियाँ हैं –

“प्रलॉय सृजोने ना जानि ए कार जुक्ति, भाब होते रूपे ऑबिराम जाओआ आशा

बॉन्धो फिरिछे खुँजिया आपोन मुक्ति, मुक्ति माँगिछे बाँधोनेर माझे बाशा”

अर्थात

प्रलय और सृजन के बीच न जाने यह कैसी युक्ति है

भावना और रूप के बीच अविराम जाना-आना

जो बंधन में है ढूँढ़ रहा है मुक्ति

मुक्त चाहता बंधन में बँध जाना

 

इसके बाद उन्होंने 15 अगस्त के सम्मान में अपनी ‘उत्थान‘ शीर्षक कविता पढ़ी जिसका एकांश यहाँ उद्धृत किया जा रहा है -

क्या किया और नहीं किया हम सबने
यह प्रश्न उठाना आज निरर्थक लगता है,
विश्व में फैला फिर से एक अशांति नया,
सारा अनुभव इतिहास निरर्थक लगता है.

जागो फिर से जग में नयी रसधार बहे
नये युग का तुम करो नया अब सूत्रपात,
हर दिल में, हर घर में केवल प्यार रहे
हिंसा पर कर दो तुम अंतिम आघात.

 

महनीया कुंती मुकर्जी ने अपनी कविता में छोटे-छोटे छह चित्र प्रस्तुत किये. इन कविताओं की संप्रेषणीयता और उसका मार्दव सहेजते ही बनता है. विशेषकर यह काव्य चित्र –
पत्रहीन वृक्ष

सूखी डाल पर एक घोंसला

आकाश की ओर चोंच उठाये

कुछ चूज़े प्रतीक्षारत

भूख से तड़पते.......

दूर शहर की एक व्यस्त गली में

बिजली के तार पर लटका एक पक्षी का शव.

पर्यटक खींचते हैं तस्वीर

टाउन हॉल में लगती है प्रदर्शनी.

किसने दिया उन चूज़ों को दाने?

 

संचालक से इतर कवि के रूप में मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ ने नदी के ब्याज से यदि प्रेमिका नहीं तो रूठी नियति को अवश्य ही रूपायित करने का सार्थक प्रयास किया.

किसी से रूठकर चुपचाप चल दी

नदी ने फिर राह अपनी बदल दी    

 

अध्यात्म की रवानी तारी थी. ऐसे में कुंवर कुसुमेश कहाँ शांत रहने वाले थे. उन्होंने ऊपर वाले को कटघरे में खड़ा किया और उनसे कई सवाल पूछे. वे सवाल जो आम आदमी ज़िन्दगी में शायद अपने भगवान से पूछता होगा. कविता की प्रारंभिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं –

कैसा  दुनिया का रूप रंग आकार बनाया है ?

क्या सोच समझकर तुमने संसार बनाया है ?

 

अंत में सभी की आतुर निगाहें  एक बार  फिर डॉ0 अनिल मिश्र पर केन्द्रित हुयीं. अब  समुदाय अध्यात्म-पुरुष को एक कवि मनीषी के रूप में सुनने को व्यग्र था और इस सहज व्यक्तित्व ने हमें निराश नहीं किया. उनकी कविता का अर्थ गौरव तलाशने के लिए कठोपनिषद के ‘पुरएकादशद्वारं अजस्यवक्र चेतसः’ का स्मरण करना होगा.  कविता की बानगी उदाहरणस्वरुप प्रस्तुत है –

ज्यों ही मुझको ज्ञान हो गया

एक साथ ग्यारर्हों द्वार पर

धू-धू कर जल रही चितायें

क्षण भर में ही भस्म हो गयीं

धर्म-कर्म की परिभाषायें

कोलाहल थम गया स्वयम ही

हृदय शान्ति का धाम हो गया.

हृदय शांति का धाम हुआ या नहीं यह तो अन्तर्यामी ही जाने पर ऐसे पवित्र वातावरण में अंतस का कोलाहल अवश्य थमा होगा, इसमें संदेह नहीं है.

यद्यपि यह उत्सव थमा नहीं हुआ पर अन्त

फिर आयेगा समय पर हँसता हुआ बसंत ---दोहा

 

 पूरे कार्यक्रम के दौरान आदरणीय महेश उपाध्याय व उनकी धर्मपत्नी सुश्री स्नेह उपाध्याय की, श्रोता के रूप में विचक्षण उपस्थिति ने हमें धन्य किया.

Views: 896

Reply to This

Replies to This Discussion

समग्र आ० टंकण में अनेक त्रुटियाँ हैं जैसे ‘एकोsहम बहुष्यामि’‘  का एकोsहम भविष्यामि’ टंकित होना . क्षमा प्रार्थी हूँ ,सादर .

ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या माह अगस्त 2016 के आयोजन की सफलता हेतु हार्दिक बधाई सादर 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  दिनेश जी,  बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
15 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर बागपतवी जी,  उम्दा ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
18 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी,  बेहतरीन ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। मैं हूं बोतल…"
22 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। गुणिजनों की इस्लाह तो…"
27 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश  जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
31 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया रिचा जी,  अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
34 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए।…"
38 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
40 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया ऋचा जी, बहुत धन्यवाद। "
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी, बहुत धन्यवाद। "
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, आप का बहुत धन्यवाद।  "दोज़ख़" वाली टिप्पणी से सहमत हूँ। यूँ सुधार…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"//दोज़ख़ पुल्लिंग शब्द है//... जी नहीं, 'दोज़ख़' (मुअन्नस) स्त्रीलिंग है।  //जिन्न…"
3 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service