For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ, लखनऊ-चैप्टर की साहित्य-संध्या माह अक्टूबर ,2017 – एक प्रतिवेदन -डॉ0 गोपाल नारायण श्रीवास्तव

ओ बी ओ, लखनऊ चैप्टर की मासिक साहित्य संध्या दिनांक 15 अक्टूबर 2017 को कपूरथला , लखनऊ में नगर निगम कार्यालय के पीछे स्थित IAS BUDDY INSTITUTE में डॉ० अशोक शर्मा की अध्यक्षता में समारोहपूर्वक मनाई गयी. मंचस्थ अन्य कवि थे – अशोक मिश्र ‘झंझटी‘, सिद्धेश्वर शुक्ल ‘क्रान्ति’ , संपन्न कुमार मिश्र ‘भ्रमर बैसवारी‘ और डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव . मंचस्थ कवियों ने सर्वप्रथम माँ सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप-प्रज्ज्वलन किया और सभी उपस्थित साहित्य अनुरागियों ने माँ के चरणों मे पुष्पांजलि भेंट की. ओज के युवा कवि मनुज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ ने ‘सरस्वती वंदना’ कर कार्यक्रम का सञ्चालन प्रारंभ किया.

पहले कवि के रूप में ब्रज कुमार शुक्ल ने तथाकथित राष्ट्रभक्तों पर तंज कसते हुए अपनी कविता कुछ इस प्रकार पढी –

नेह कलियाँ खिलीं और महकने लगीं

शब्द की बांसुरी भी चहकने लगी

राष्ट्र सेवा की कसमे जो खाते रहे

उनके चेहरे की परतन उतरने लगी

कवयित्री अलका त्रिपाठी ‘विजय’ ने मानिनी नायिका की भांति ‘हेला’ अनुभाव का प्रदर्शन करते हुए कहा- 

सोना-चांदी समझ तन जतन मत करो

प्यास क्वांरी  रहेगी लगन  मत करो

नेह की डोर बांधी अरे क्यों प्रिये

चाह की चूनरी को सघन मत करो

कवि सिद्धेश्वर शुक्ल ‘क्रान्ति’ के बगावती तेवर बड़े स्पष्ट थे . उन्हें व्यवस्था से असतोष तो है ही पर वे व्यवस्था के दीमकों को फटकारने से बाज नहीं आते –

पले है जिनके टुकड़ों पर उन्ही को काट लेते है

ये दल बदलू पुराने हैं जो सब पर काट लेते हैं

न इनका कोई मजहब है न इनका कोई ईमां है  

ये पहले थूकते हैं फिर उसी को चाट लेते हैं  

कवि राधे श्याम ‘राधे’ ने ओजस्वी वाणी में एक आवाहन इस प्रकार किया –

अँधेरा मिटा दो , मिटा दो अन्धेरा

अँधेरा जगत का मिटा दो अन्धेरा

इधर भी अन्धेरा उधर भी अन्धेरा

जिधर दृष्टि डालो अन्धेरा अन्धेरा

अँधेरा मिटा दो , मिटा दो अन्धेरा

मयंक किशोर शुक्ल मयंक ने आसन्न प्रकाश पर्व दीपावली को ध्यान में रखकर अपनी कविता कुछ इस अंदाज में पढी –

सुमन मन हमारा है तुम्हारे लिए

सृजन काव्यधारा है तुम्हारे लिए 

अगर दीप बनकर तमस को मिटाओ

तो ये मित्र प्यारा है तुम्हारे लिए   

ओ बी ओ  लखनऊ चैप्टर के संयोजक डॉ0 शरदिंदु मुकर्जी ने गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर की ‘आवर्त्तन’ कविता का हिन्दी भावांतरण अपनी स्वरचित कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया, जिसकी बानगी इस प्रकार है –

असीम व्याकुल है पाने को निविड़ संग

सीमा चाहती है असीम में खो जाना

प्रलय सृजन में किसकी है यह युक्ति

है भाव से रूप में किसका आना-जाना

बंधन ढूंढ रहा है मुक्ति

मुक्ति चाहती है बंधन में बंध पाना  

उनकी दूसरी रचना का शीर्षक था –औकात . इस कविता यात्रा में  औकात बताने, सिखाने, दिखाने और सुनाने से लेकर दिलाने तक कुल पांच पड़ाव हैं और सभी में एक अन्तर्हित जीवन-दर्शन है, जो कविता की भाव-भूमि को न केवल अन्यतम ऊंचाईयां देती हैं, अपितु उसे एक नया ‘धज’ भी प्रदान करती है.  

गजल के सुकुमार शायर आलोक रावत  ‘आहत लखनवी' का डायस  पर आना ही उत्कंठा का माहौल पैदा कर देता है. उन्होंने अपनी एक ताजा गजल सरगम के रेशमी स्पंदन के साथ इस अंदाज में पेश की कि  सारा समुदाय अश-अश कर उठा  

जान माँगी है तो अपनी भी यही कोशिश है

ऐ मेरे दोस्त तेरी बात न खाली जाए

घर में दीवार उठी है तो कोई बात नहीं

ऐसा करते है की छत अपनी मिला ली जाये    

उपस्थित साहित्य अनुरागियों और युवा कवियों के अनुरोध पर ‘आहत लखनवी’ ने शहरे लखनऊ पर अपना कलाम इस प्रकार पढ़ा -

मेरी हर सांस है हर धड़कन है नवाबों का शहर

मेरा लखनऊ मेरी जन्नत मेरी ख्वाबों का शहर  

डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव ने अपना एक पुराना गीत पेश किया जिसमे रूमानियत का असर दिखाई दिया –

अभी पर खोलना आया नहीं है

गगन पर चाँद शरमाया नहीं है

कलश पीयूष का यूँ तो भरा है

मधुर रस घोलना आया नहीं है

रूप-दर्पण तुम यहाँ पर मत सहेजो भावना का अक्स मैं दरशा गया हूँ  

अगम है प्रेम पारावार फिर भी प्रिये पतवार लेकर आ गया हूँ .

संचालक मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ की चुनौती भरी कविता दीपावली पर्व की निकटता का आभास देती, उस मधुर अभिव्यंजना से अनुस्यूत हुई जहां कवि स्वयं दीप बनकर भास्वर होने के लिए तैयार है –

तुम अगर बन वर्तिका जलती रहोगी

है शपथ मुझको दहूंगा दीप सा मैं

बांटकर जग को उजाला मुस्कराकर

स्वयम अन्धियारा गहूँगा दीप सा मैं  

कवि -सम्मेलनों में अपनी हास्य प्रस्तुतियों के कारण प्रख्यात अशोक मिश्र ‘झंझटी’ ने अपने अंदाज से लोगों का खासा मनोरंजन किया . उनकी रचना की एक बानगी यहा प्रस्तुत है-

दाढी चोटी की सियासत देखकर

झंझटी दोनों कटाकर आ गया .

संपन्न कुमार मिश्र ‘भ्रमर बैसवारी’ ने कहा की हास्य के बाद अब वह मंच पर अपनी कारुणिक रचनाओं से रुलाने आये है . इस क्रम में उन्होंने बैसवारा क्षेत्र में विवाह के अवसर पर विदा होती हुयी बेटी से माँ के संवाद का एक संवेदनशील चित्र प्रस्तुत किया. अपनी दूसरी कविता में उन्होंने देशभक्त सुभाषचन्द्र बोस  पर अपनी श्रृद्धा के सुमन चढ़ाये . निदर्शन निम्न प्रकार है –

तम नाश न होता यहाँ पर कभी

इस भारत में मधुमास न होते

कट पाती न बेड़ियाँ दासता की

यदि भारत बीच सुभाष न होते

शहर के जाने माने कवि और शायर वाहिद अली ‘वाहिद’ ने गंगा- जमुनी संस्कृति का आलंबन लेकर वीर हनुमान पर बजरंगबली बजरंग बली‘ की टेक पर कुछ सुन्दर छंद सुनाये . उनके गजल की एक  बानगी यहाँ प्रस्तुत है –

ज़रा मुस्करकर सनम बोलते हैं

अगर बोलते है तो कम बोलते हैं

मुहब्बत इबादत में क्या बोलना है

खुदा सुन रहा है और हम बोलते हैं .  

कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष डॉ० अशोक शर्मा ने अपना काव्य-पाठ किया . उनकी कविता में एक स्थिरता है , जीवन का गहन अनुभव है और परिपक्वता भी. कविता का एक अंश यहाँ उद्धृत किया जा रहा है –

मैं दिवस की सांध्य बेला यूँ बिताना चाहता हूँ

बस तुम्हारे मन के थोड़ा पास आना चाहता हूँ

इस अवसर पर मुख्य डाक घर, लखनऊ की और से आलोक रावत ‘आहत लखनवी ‘ एवं संपन्न कुमार मिश्र ‘भ्रमर’ को साहित्य में उनके अवदान के लिए शाल भेंट कर सम्मानित भी किया गया . यह कार्यक्रम ‘आहत लखनवी ‘ के सौजन्य से उनकी उदार आतिथेयता में संपन्न हुआ .

परवाज भरते है, आकाश छुआ करते हैं

हौसला है तो फ़रिश्ते भी दुआ करते है

जाग उठते है मुर्दे भी जान पर गर आये  

हसीन कार्यक्रम मुहब्बत में हुआ करते है (सदय रचित )

 

(मौलिक /अप्रकाशित )

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Views: 816

Attachments:

Reply to This

Replies to This Discussion

आदरणीय डॉक्टर साहेब इस बात में कोई शक नहीं की आपकी लेखनी बहुत सशक्त है एवं आप  हर बार ओबीओ  की मासिक गोष्ठियों का बहुत ही विशद और आकर्षक  वर्णन करते हैं . माह अक्टूबर की गोष्ठी का भी वैसा ही सुंदर एवं सजीव  वर्णन आपकी  सशक्त लेखनी के द्वारा किया गया है .इसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई .

आलोक जी आप मेरे अनुज है आपका प्यार यहाँ बोल रहा है , , शभ शुभ .

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service