For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ लखनऊ-चैप्टर की साहित्यिक परिचर्चा माह जुलाई 2020:: एक प्रतिवेदन     ::   डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव

ओबीओ लखनऊ-चैप्टर की साहित्यिक परिचर्चा माह जुलाई  2020 (दिनांक 26 जुलाई 2020, रविवार) का ऑन लाइन आयोजन हुआ I इसके प्रथम चरण में डॉ, शरदिंदु मुकर्जी के आलेख ‘गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर –एक सरव, विच्छिन्न चिंतन’ पर साहित्यिक परिचर्चा हुयी, जिसमें ओबीओ लखनऊ-चैप्टर के लगभग सभी सदस्यों ने प्रतिभाग लिया I गुरुदेव को भारत ही नहीं सारा विश्व जानता है I उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उनका ज्ञान क्षेत्र असीमित और बहुमुखी था I धर्म, अध्यात्म, दर्शन, विज्ञान, ज्योतिष, संगीत, चित्रकारिता आदि गुण उनके साहित्यिक आयाम को अत्यधिक समृद्ध करता था I ऐसे बहुगुण संपन्न चरित्र को एक छोटे से लेख में डॉ शरदिंदु मुकर्जी ने बड़ी सहजता से समेटा कर गागर में सागर की उक्ति को मानो चरितार्थ ही कर दिया है I यह आलेख सामासिक शैली का एक उत्कृष्ट नमूना है I इसे ओबीओ अंतर्जाल के समूह में पहले ही पोस्ट किया जा चुका है I अतः उसे यहाँ दुहराने की आवश्यकता नहीं  है I इस लेख पर सबसे पहले डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव को विचार प्रकट करने के लिए आमंत्रित किया गया I

डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर विषयक शरदिंदु मुकर्जी का आलेख अपने शीर्षक से ही बाँधने लगता है I एक टूटा हुआ चिंतन I गुरुदेव पर कोई भी चिंतन हो वह अविछिन्न ही होगा I ऐसा महासमुद्र किसी पात्र में समा सकता है क्या? साथ ही हर चिंतन सरव भी होगा, क्योंकि महासमुद्र में एक हाहाकार भी होता है जो उसमे धंसने वालों को अपनी पहचान बताता है I डॉ. मुकर्जी ने गुरुदेव की समग्रता को कम शब्दों में इस कुशलता से उकेरा है, कि मुझे सहसा ईश्वर को व्याख्यायित करते कबीर याद आ जाते हैं –

सो है कहो तो है नहीं नाहीं कहो तो है I

हाँ नहीं के बीच में जो कछु है सो है

आलेख का प्रारंभ गुरुदेव की उस कविता से होता है जो उन्होंने संभवतः अपनी आठ वर्ष की आयु में ‘अभिलाष; शीर्षक से लिखा था I यह कविता उनकी उन्नत आकाक्षा का एक अक्स भी है I आलेख से हम जान पाते हैं कि गुरुदेव को सभी विषयों की शिक्षा प्रायशः घर पर ही मिली I उनकी प्रथम प्रकाशित रचना ज्योतिर्विज्ञान विषय पर थी I अपनी 14 वर्ष की अवस्था से ही गुरुदेव अध्यात्म परक रचनाये करने लगे थे -“नॉयोनो तोमारे पाये ना देखिते” 

डॉ, शरदिंदु ने गुरुदेव के बारे में जो लिखा उसे दुहराना उनके आलेख से अन्याय करना होगा I मगर आलेख की जो अपनी ख़ूबसूरती है, उसे उकेरना इस लेख का उद्देश्य अवश्य बनता है I इस आलेख में गुरुदेव के बहुश्रुत, बहुपठ और बहुज्ञ होने की झाँकी तो है ही इसमें उनके व्यक्तित्व के इतने सारे रहस्यों का खुलासा है कि पाठक को लगने लगता है, गुरुदेव सहज मानव नहीं थे I वे अवश्य असाधारण या उससे बढ़कर अतिमानवीय या अमानवीय थे I ज्ञान, संस्कृति और कला के सभी वृहत्तर रूप अपरूप उनमे विद्यमान थे I एक ही कवि और उसके लिखे गीत तीन संप्रभुता सपन्न देशों के राष्ट्रगान हों, यह अविश्वसनीय भले लगे पर सत्य है I उनका रचना संसार बड़े से बड़े लेखक को चुनौती देने में समर्थ है I डॉ. शरदिंदु कहते हैं कि -रवींद्रनाथ के चिंतन की ऊँचाईयों तक पहुँचने के लिए उनकी रचनाओं में, विशेष रूप से कविता और गीतों के महासागर में निमग्न होना आवश्यक है I वर्तमान लेख के माध्यम से सीमित समय और अपरिपक्व अभिव्यक्ति के परिसर में इस महामानव को आँकना संभव नहीं I’

मेरा प्रश्न है कि क्या बड़े बड़े शोध-प्रबंधों और बोझिल दस्तावेजों में गुरुदेव को समेट पाना सभव है I इसका उत्तर तो गुरुदेव की कविता में ही अन्तर्हित है - अंत में यह मन कहे I हुआ समाप्त फिर भी/ हुआ नहीं शेष

इस आलेख से हम जान पाते है कि गुरुदेव में ज्ञान और गुण का अद्भुत समन्वय था I बहुत संभव है मनुष्य में ज्ञान की कमी न हो पर हो सकता है वह उदार न हो, दयाभाव न रखता हो, कट्टर धर्मावलंबी हो I ऐसे में ज्ञान कुंठित होता है,  पर यदि उसे उदात्त विचारों का सहारा मिलता है तो व्यक्ति धरातल से ऊंचे उठ जाता है i आलेख में गुरुदेव की उद्धृत कविता से हमें यही संदेश मिलता है I

दृष्टि उठाकर देखो  जरा / नहीं देवता घर में –/ वह गये जहाँ पर है/’ कृषक जोतता खेत/ पथ बनाता, शिला तोड़ता/ और मलता रेत/ धूप और बारिश में हैं / वे सबके साथ / मिट्टी से सने हुए हैं/ उनके दोनों हाथ, / उनकी भाँति पवित्र वसन त्याग/ आओ सबके साथ./ मुक्ति ? ओ रे मुक्ति कहाँ मिलेगी / मुक्ति कहाँ है! / स्वयं प्रभु ही सृष्टि बंधन में/ बँधे यहाँ हैं –/

सूफी और अद्वैतवादी ईश्वर को प्रकृति में देखता है I द्वैतवादी उसे अपने घट में ढूंढता है I सबकी खोज की अपनी नई दृष्टि और उससे उपजे अपने संतोष है I यह आलेख भी एक दृष्टि (VISION) देता है I यह व्याख्या नहीं करता,  केवल सूत्र और संकेत देता है I यह मंजिल पर नहीं पहुंचाता,  केवल पथ का निर्देश करता है I आगे यह पाठक का दायित्व है कि वह इस प्रकाश-स्तंभ को लेकर निर्दिष्ट मार्ग पर कितनी दूर तक जा पाता है या फिर थक का हार मान लेता है i

कवयित्री संध्या सिंह ने कहा कि प्रस्तुत आलेख में में टैगोर जी का दर्शन सधे हुए शब्दों में हमारे सामने है l 'अभिलाष' के पहले बंद से ही अनमोल संदेश मिलता है कि सफ़र में ठहरने के निमंत्रण और और आगे जाने का कौतूहल और साहस बढ़ाते हैं l ग्यारह वर्ष की अवस्था से एक दुर्लभ आलेख से शुरू हुआ ये जीवन सीधे नोबल पुरस्कार से होता हुआ आजीवन चलता रहा l शरदिंदु जी का अनुवाद कार्य अद्भुत है l जिस तरह वह अनूदित रचना में शब्द प्रवाह, यति और गति बनाये रखते हैं वह निसंदेह एक विलक्षण प्रतिभा है l

गज़लकार भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि मुझे यह कहने में ज़रा सी भी संकोच नहीं है कि कविवर रवींद्रनाथ ठाकुर के साहित्य के सान्निध्य ने अनुज डॉ. शरदिंदु मुकर्जी को भी उनके रंग में रँग दिया है I यह एक यथार्थ है कि गुरुदेव रवींद्रनाथ के साहित्यिक जीवन को एक छोटे से आलेख में समेटना असंभव है I किन्तु डॉ. शरदिंदु जी ने सागर को गागर में यदि समेटा नहीं है तो भी सफलता पूर्वक प्रतिबिंबित अवश्य किया है I

कवि एवं गज़लकार आलोक रावत’ ‘आहत लखनवी’ के अनुसार गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर विश्व की उन महान विभूतियों में से हैं जो देश काल की सीमाओं से परे हैं । वे विश्व मानव के कवि 'कविनाम् कवितमः' कहे जाते हैं । गीतांजलि उनकी वह रचना है जिसने विश्व में न केवल भारत का नाम गर्वोन्नत किया है अपितु उनकी यह सर्वश्रेष्ठ रचना भी मानी जाती है । आज यहाँ पर हम उनकी प्रारंभिक रचनाओं में से एक 'अभिलाष'  के कुछ पदों पर परिचर्चा कर रहे हैं । यद्यपि उनकी प्रारंभिक रचनाओं में 'बनफूल, ' 'कवि काहिनी' तथा 'संध्या संगीत' आदि भी सम्मिलित हैं । आश्चर्य होता है कि बाल्यावस्था में ही, जब लोगों के खेलने-कूदने की आयु होती है, आदरणीय रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी के चिंतन का स्तर इतना गहन, इतना विस्तृत, परिपक्व और इतना भावपूर्ण था । कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं । निस्संदेह वे एक ऐसे ही प्रतिभावान व्यक्ति थे।

कवयित्री कुंती मुकर्जी की मान्यता यह रही कि वह रविंद्रनाथ टैगोर को उनके गीतकाव्य गीतांजलि के माध्यम से जानती हैं और उनका एक तीव्र आकर्षण शांतिनिकेतन को देखने का था I उनकी समझ से शांतिनिकेतन देखे बिना टैगोर को समझना मुश्किल है. वैसे उनके विषय में जितना कुछ कहा जाए कम ही है I वे प्रकृतिप्रेमी तो थे ही एक अद्भुत मानव भी थे I

मनोज शुक्ल ‘मनुज’ ने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर निश्चित ही एक महामानव थे और उनके प्रति आदरणीय शरदिंदु जी का प्रेम और ज्ञान विशिष्ट है । समय-समय पर हमने उनसे टैगोर जी की अनेक अनुदित कविताएं सुनी हैं । एक कवि, उपन्यासकार, संगीतज्ञ, नाट्यकार, लघुकथाकार, निबंधकार, अभिनेता, गायक और दार्शनिक टैगोर को एक लेख में बांध पाना सहज नहीं है फिर भी शरदिंदु जी गुरुदेव के व्यक्तित्व को उकेरने में बहुत सीमा तक सफल हुए हैं।

अजय श्रीवास्तव के अनुसार गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की साहित्यिक यात्रा अनंत थी और भारतीय साहित्य को उन्होने सम्पन्न किया I डॉ. शरदिंदु जी ने जो आलेख प्रस्तुत किया वह अनूठा है l गुरुदेव की पंक्तियों के माध्यम से उन्होंने उनके जीवन का वर्णन बहुत ही विद्वता से किया l विशेष कर उनका आग्रह जो विश्वबंधुत्व की ओर है वह गुरुदेव की अनुपम दृष्टि है l लेखक ने उनकी चित्रकारी के विशेष गुण का उल्लेख भी किया l शब्द से चित्रकारी और रंग और भावनाओं से चित्रकारी का रूप बिलकुल अलग होता है l गुरुदेव जैसा महामानव सूक्ष्म दार्शनिकता को ग्रहण कर बड़ी सरलता से इसे व्यक्त कर देता है I इस आलेख में डॉ शरदिंदु जी ने अपनी अद्भुत लेखन क्षमता का परिचय दिया है l कुल मिलाकर सम्पूर्ण विश्लेषण तर्क और ज्ञान से परिपूर्ण है l

डॉ, अंजना मुखोपाध्याय के अनुसार रवीन्द्रनाथ ठाकुर के विशाल साहित्य सृजन की जो व्याख्या इस संक्षिप्त आलेख में मिलती है वह निर्देशित करती है कि कविगुरु करीब दो हज़ार गीतों के रचयिता थे। 'गीत वितान' में इन गीतों का भाषिक रूप मिलता है जो कि छन्दोबद्ध कविताएं हैं । भाषा की गहराई दर्शन की कितनी सतह को छू जाती है उसका कोई ओर छोर नहीं । जो गीत संगीत का रुप ले चुकीं थीं कवि ने स्वयं उसे स्वरबद्ध किया था । 'स्वर वितान' के कई खण्डों में इनका सुर लिपिबद्ध किया गया है । कहीं कहीं सुर की  सृष्टि पहले पहले हुई और कवि ने बाद मे उसमें शब्दों का संयोजन किया था । संगीतज्ञ की भूमिका में कवि ने विदेशी स्वर मूर्च्छनाओं से भी अपने संगीत को धनी बनाया था I उदाहरणस्वरूप "आमि चिनि गो चिनि तोमारे, ओगो बिदेशिनि‘ के कवि ने जितने नाटक लिखे थे उनमें अधिकतर बच्चों के लिए लिखे  I

कवयित्री कौशाबरी जी ने काव्यात्मक अंदाज में कहा कि -तुम मेरे मन मंदिर में बैठे हो I मैं आरती कैसे उतारूं ‘ गुरुदेव की रचनाओं की दार्शनिकता की व्याख्या मेर्री लेखनी से परे है I 

कवयित्री नमिता सुन्दर जी के अनुसार रवीन्द्र नाथ टैगोर को शब्दों में बाँध पाना असंभव है पर शरदिंदु मुकर्जी जी ने अपने इस आलेख में गुरुदेव के सक्षिप्त परिचय को समास में बाँधा है I यह बड़ी बात है I व्यक्तित्व, कृतित्व, जीवन के महत्वपूर्ण क्षण, घटनाएं, उपलब्धिया सभी कुछ समाहित है इस आलेख में I विभिन्न रचनात्मक विधाओं में, कलाओं में स्वयं को अभिव्यक्त किया है टैगोर ने पर यदि हमें ठीक याद पड़ता है तो अपने ही किसी भाषण में उन्होंने स्वीकारा था कि अंततः वे स्वयं को कवि रूप में ही सबसे अधिक स्पष्ट रूप से देख पाते हैं- आमि कोवि I शरदिंदु जी ने अनुवाद द्वारा इस आलेख में उनके इसी रूप से हमारा परिचय सर्वाधिक घनिष्ठ करवाया है I गुरुदेव के संबंध में बुद्धदेव बोस का एक वक्तव्य हमें बहुत सटीक लगता है जिसमें उन्होंने  कविवर की तुलना अबाध गति से प्रवाहित होते एक ऐसे निर्झर से की है जो एक साथ सहस्र धाराओं में फूटता है और प्रत्येक धारा की है अपनी एक धुन अपनी लय I डॉ. शरदिंदु मुकर्जी ने इस आलेख में गुरुदेव के इसी स्वरुप को पिक्चर परफेक्ट शॉट की तरह क्लिक किया है I  

अंत में लेखकीय वक्तव्य देते हुए डॉ. शरदिंदु मुकर्जी ने कहा कि ओबीओ लखनऊ-चैप्टर के संयोजक द्वारा यह आलेख लिखने के लिए कहा गया I मैं दुविधा में था । कारण विषयवस्तु । फिर भी येन-केन-प्रकारेण मैंने जो समझ में आया लिखा । नमिता जी और अंजना ने उसको बहुमूल्य विस्तार देकर सबका उपकार किया है ।

  (मौलिक/अप्रकाशित) 

 

 

 

 

 

Views: 228

Reply to This

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
6 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
7 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
9 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service