For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रतिवेदन साहित्य-संध्या ओबीओ लखनऊ-चैप्टर, जनवरी 2021            प्रस्तोता :: डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव

              (संचार माध्यम से युगपत साहित्यिक गतिविधि)

 दिनांक – 24 जनवरी 2021 ई० (रविवार)    संचालक – सुश्री नमिता सुन्दर 

समय – 3 बजे अपराह्न                   अध्यक्ष – श्री मनोज शुक्ल ‘मनुज’

 माँ वीणापाणि के स्मरण के साथ ही ओबीओ लखनऊ चैप्टर की पहली साहित्य संघ्या वर्ष 2021 ई०  का विहान हुआ I सुश्री नमिता सुन्दर ने कवयित्री सुश्री कौशांबरी जी की कविता- ‘माँ कब पूरी हो पाती है‘ पर परिचर्चा आरंभ की I  इसमें सभी उपस्थित सदस्यों ने प्रतिभाग किया और जो उपस्थित नहीं  थे, उनमें से कुछ लोगों ने वाया वाट्स ऐप उपलब्ध कराया I परिचर्चा का प्रतिवेदन अलग से बनाया गया है I

इसके बाद एक सरस काव्य गोष्ठी हुई I प्रथम पाठ हेतु कवयित्री सुश्री निर्मला शुक्ला का आह्वान हुआ I निर्मला जी ने ‘चाँद’ शीर्षक से अपनी  रूमानी कविता सुनाई –

शुभ्र ज्योत्सना खिले गगन में

तारों की बारात सजे

जब पूनम का चाँद उदय हो

मन वीणा के तार बजे।

डॉ. अर्चना प्रकाश की कविता का शीर्षक ‘प्रहरी’ था I देशानुराग की इस कविता की बानगी निम्नवत है - 

जब देश नींद में सोता ,

सीमा पर तुम जागते ।

शत्रु को अपनी तोपों से ,

बढ़ कर छलनी करते I

श्री अजय श्रीवास्तव 'विकल' ने ‘युवा‘ शीर्षक से एक उद्बोधन गीत प्रस्तुत किया,जिसमें युवा को देश का नायक माना गया है I यथा-

नायक जन में नायक मन में नायक विश्व विधाता है l

नायक प्रण में नायक तृण में नायक सबको भाता है ll

युवा  सिंह  जब  गरज  उठे  पर्वत  में मार्ग  बनाए l

धार  समय  विपरीत बहे वह, नव प्रतिमान दिखाए ll

श्री आलोक रावत ‘आहत लखनवी’ ने उपालंभ व्यंजना से आप्त शृंगार का एक गुदगुदाता हुआ गीत पेश किया-

हृदय मिलन संभव होता है अगर प्रेम अकुलाता है I

कोई मनमोहक छवि लेकर हृदय-द्वार तक आता है II

मैं तो प्रेम-पथिक हूँ बोलो मेरी पीर बढ़ाते क्यूँ हो ?

और अगर घबराते हो तो मुझसे नयन मिलाते क्यूँ हो?

सुश्री कुंती मुकर्जी ने ‘सूफी मन’ के अंतर्गत जीवन-पुस्तक के पृष्ठ टटोले -

हम सपनों के जाल बुनते रहे

मकड़ी सी उन जालों में उलझते रहे

तब भी ,वाक्यों ने अपना खेल न छोड़ा

हर घटना कथानक बनती रही___

और___

देखते-देखते जीवन एक किताब बनके रह गयी."

श्री मृगांक श्रीवास्तव ने हास्य रस की कुछ चुटीली रचनाएँ सुनाई और सब का मन मोह लिया I उनकी निम्नांकित रचना विशेष रूप से सराही गयी -

चाय की चुस्की लेते लेते, पति से कीमती कप गिर गया।

पत्नी की उपस्थिति के कारण, पति बेहद सहम गया।

पति ने देखा कप टूटा न था, बोला हें हें बच गया।

घूरकर पत्नी बोली बच गया नहीं... बच गये ।

डॉ. अंजना मुखोपाध्याय द्वारा प्रस्तुत कविता का शीर्षक था- ‘हाशिये का किरदार’ I नारी को हाशिये पर रखने की सामाजिक प्रवृत्ति को दर्शाती इस कविता का एक अंश यहाँ प्रस्तुत है –

हलक से नीचे उतर रहा है

हकीकत भीनी हलचल,

हाँ, मैं हिमाकत करती हूँ

आस्नात रहूँगी कल।

अब न होगी उपेक्षा अपनी

हाशिये में स्थान I

 श्री भूपेन्द्र सिंह ‘होश‘ ने जो ग़ज़ल पेश की उसके चंद अशआर इस प्रकार थे -

अब चश्म न होंगे नम, दुनिया में कभी उनके,

है मर ही गया उनकी, जब आँख का पानी है.

ये इल्म जो है तेरा, वो साथ न छोड़ेगा,     

दौलत का भरोसा क्या, आनी है तो जानी है.

 डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने समकालीन  किसान आन्दोलन का आलंबन लेकर व्यवस्था पर तंज कसा I एक बानगी प्रस्तुत है –

यहीं

टूटा है फिर रथ का पहिया

सारथी था जिसका मेरे अन्तस् का पौरुष 

यहीं पर गिरेगा रथी आत्मबल भी 

यहीं खत्म होगी फिर एक चुनौती

यहीं पर मिटेगा

एक बीज माटी में 

यहीं पर --------- I

डॉ. शरदिंदु मुकर्जी ने ‘कवि सम्मलेन’ नामक कविता प्रस्तुत की I सम्मेलनों के पाखंड को उजागर करती इस कविता का सार इन पंक्तियों में है - 

कविता मंच पर पिछली पंक्ति में

हिरणी की तरह दुबक कर बैठी थी,

मचान पर शिकारियों का बोलबाला था,

भाषण जारी था

मैं का साम्राज्य था,

कविता ने मुड़ कर देखा

वादियों में संध्या

समय से पहुँच गई थी

सूर्य की खुशामद किए बिना

वह उठी और दबे पाँव,

पगडंडियों से उतर गई अपने चौबारे में I

सुश्री कौशांबरी जी ने ‘जीना अभी बाकी है’ शीर्षक कविता प्रस्तुत की I जीवन में तृप्ति कभी नहीं मिलती I कवयित्री का मानना है कि जीवन में तमाम काम अभी बाकी हैं और जीवन भी बाकी है, किन्तु कब तक ?

कर्ज कितना चुकाना बाकी है

लेना बाकी है या कि देना बाकी है

इन्तजार किसका है क्या किसी का

उतारना बोझ बाकी है ?

ये साँसें भी कैसी हैं जाने किस

ख्वाहिश में अटकी बैठी हैं

क्या सच में इतना लम्बा सफ़र

बाकी है I

      विभिन्न जीवों के बीच प्रेम के स्वाभाविक रिश्ते को मान्यता देती है संचालिका सुश्री नमिता सुन्दर जी की कविता ‘रिश्ते ऐसे भी हुआ करते हैं’ I इस कविता का एक टुकड़ा प्रस्तुत है -

न हो दाने बाजरे के

गर टेरेस पर के डबरे में

हक से आवाज दे मांग लेती हैं

अपना हिस्सा

मेरे घर रोज आती

ढेर-ढेर गौरय्या I

अंत में अध्यक्ष श्री मनुज शुक्ल ‘मनुज’ ने प्रेम और प्रणय के बीच रेखा खींचते हुए एक मनोहारी गीत प्रस्तुत किया, जिसकी कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं  –

उम्र  की  सीमा  हमेशा  है प्रणय को बाँधती,

प्रेम की आँधी समय के चक्र को भी लाँघती।

प्रेम  ईश्वर की कृपा है, इंद्रियों का सुख प्रणय,

प्रेम को कहते प्रणय यदि ये सरासर है अनय।

      आप परिणय युक्त हों शुभ तृप्त नव जीवन मिले,

      डूबना लगता  सहज  जब कामिनी कंचन मिले।

सभी साहित्य अनुरागी अभिवादन का आदान-प्रदान कर विदा हो रहे थे I मेरा ध्यान लरजती संध्या की ओर था I मैं सोचने लगा -

 पथ प्रशस्त कर निशागमन का द्वाभा अंतर्धान हुयी I

संध्या को आंचल से ढँककर रजनी आयुष्मान हुयी II

                       सन्नाटे का शासन गहरा  पंथ हए सारे सूने I

                       लगा तिमिर भी निर्भय होकर विभावरी का पट छूने I

 सरिताएं पायल छनका कर लगी लोल नर्तन करने I

शांत समीरण सभी दिशा में संशय-राग लगा भरने II

                     वृक्ष लताएं पादप पल्लव सभी ध्यान में लीन हुये

                      जागृति जग-जीवन के लक्षण तम में सभी विलीन हुए II

 चंदोवा रचकर तारों  ने धरती का सम्मान किया I

कुमुद कली ने मंद हास से रजनी का जयगान किया II

                     धुर निशीथ में राग छेड़कर मालकोस गाया किसने ?

                     और शर्वरी के माथे से क्यों श्रम बिंदु लगा रिसने ?

 क्या उस लंपट तमसासुर ने  कुछ अनर्थ है कर डाला I

तो दुर्दांत ठहर तू दो पल सूरज है आने वाला II -------(सद्य रचित)

[मौलिक/ अप्रकाशित)

Views: 334

Reply to This

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
9 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service