आदरणीय साथिओ,
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बढ़ीया कथा है आदरणीय रश्िम जी। तस्वीर का दूसरा रूख बहुत ही सार्थक व साकारात्मक है जिस ओर समीर ने ध्यान नहीं दिया। आ. समर कबीर जी से भी सहमत हूं। /हैलो ! मम्मी, अगर....../ यदि आरंभ हैलो! से आरंभ होता तो कथा में स्पष्टता अधिक आती। बहरहाल इस सद्प्रयास हेतु आपको असीम शुभकामनाएं ।
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