आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय ओमप्रकाश जी, आयोजन के दौरान ही आपने संशोधित लघुकथा प्रस्तुत कर इस विधा के प्रति अपने समर्पण को व्यक्त किया है. लघुकथा के इस शानदार वर्जन पर दिल से बधाई स्वीकारें. सादर
प्रद्दत विषय और अच्छी लघु कथा के लिए बधाई श्री ओम प्रकाश क्षत्रीय जी
आदरनीय जानकी वही जी शुक्रिया आप का .
आदरणीय ओमप्रकाश जी, प्रदत्त विषय के अनुरूप बहुत बढ़िया प्लाट लिया है. इस हेतु हार्दिक बधाई. किन्तु यह भी अवश्य है कि कथा शाब्दिक होने के क्रम में तनिक बोझिल सी हो गई है. एक ऐसा सस्पेंस पंक्तिशः बढ़ता जाता है जिसे कभी खुलना नहीं है. राजन बचपन से अपनी माँ की शह पाकर अँधेरी राहों का मुसाफिर बन जाता है और इसी क्रम में उससे अनजाने में हत्या होने के कारण जेल हो जाती है. राजन के आत्मग्लानी और आत्ममंथन के क्रम में स्वयं से बात करने के घटनाक्रम का शब्दिक हुआ प्रयास अपरिपक्व होने के कारण अस्पष्ट भी लग रहा है. लघुकथा का मूल भाव तो स्पष्ट हो गया है किन्तु लघुकथा नहीं. विश्वास है कि आप आवश्यक संशोधन कर इस प्रस्तुति को परिपक्व और सुगठित कर लेंगे. सादर
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी शुक्रिया अपना मत और लघुकथा पर अपने विचार देने के लिए. आप का बेबाकी से रखा गया मत मुझे सहर्ष स्वीकार है. शायद, जल्दबाजी के क्रम में लघुकथा अस्पष्ट रह गई.
आदरणीय ओमप्रकाश जी, आपने मेरे कहे को मान देकर मुझे आश्वस्त किया है. आपकी सदाशयता को नमन है. मंच और मंच से इतर आपकी कई प्रभावशाली लघुकथाएं पढ़ चुका हूँ. उनमें से कई लघुकथाओं पर मुग्ध भी रहा हूँ. संभवतः यही कारण है कि आपसे सदैव और बेहतर की आशा रहती है. वैसे भी मंच पर रचनाकार की नहीं, रचना पर बात की जाती है. यह भी अवश्य है कि 'वाहवाही' से बेहतर रचना पर शिल्पगत चर्चा एक अभ्यासी के लिए सदैव लाभकारी होती है. मेरी बात को सहर्ष स्वीकार कर आपने, अपने भीतर के गंभीर और संवेदनशील अभ्यासी से ही परिचित कराया है. पुनः सादर आभार
जनाब ओम प्रकाश साहिब, प्रदत्त विषय को परिभाषित करती लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं -
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