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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-21 (विषय:अँधेरी राहों के मुसाफ़िर)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पिछले 20 सफल आयोजनों की अपार सफ़लता के बाद वर्ष 2016 के अंतिम 21 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत हैI प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-21
विषय : "अँधेरी राहों के मुसाफ़िर"
अवधि : 30-12-2016 से 31-12-2016 
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 30 दिसम्बर  2016 लगते ही खोल दिया जायेगा)
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2.  रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि भी लिखे/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
5. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
6. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
7. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
8. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
9. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आप सब ने लघुकथा में कमी बता कर मुझे चुनोती दी थी इसलिए इसे मैं ने मन से स्वीकार कर इस में संशोधन करने का मन बना लिया था. अब यह आप ही बता सकते हैं कि प्रयास कितना सार्थक रहा ?

आदरणीय ओमप्रकाश जी, आयोजन के दौरान ही आपने संशोधित लघुकथा प्रस्तुत कर इस विधा के प्रति अपने समर्पण को व्यक्त किया है. लघुकथा के इस शानदार वर्जन पर दिल से बधाई स्वीकारें. सादर 

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आप सब ने लघुकथा में कमी बता कर मुझे चुनोती दी थी इसलिए इसे मैं ने मन से स्वीकार कर इस में संशोधन करने का मन बना लिया था. अब यह आप ही बता सकते हैं कि प्रयास कितना सार्थक रहा ?
कथा के जरिये आपने सार्थक संदेश देना चाहा है।माता ,पिता ही बच्चे को संस्कार व कुसंसकार देते है यदि माँ उसे पहिले ही रोक देती तो वह इतना आगे ना बढ़ता ना उसके मन में माँ के प्रति इतनी कटुता पैदा होती ।बधाई आपको आद० ओम भाई जी ।
आदरणीय नीता दीदी जी शुक्रिया आप का लघुकथा को अपना मत देने के लिए.

प्रद्दत विषय और अच्छी लघु कथा के लिए बधाई श्री ओम प्रकाश क्षत्रीय जी 

आ.ओम प्रकश जी, बढ़िया कथ्य।बाक वरिष्ठ जनों की बात से सहमत हूँ।

आदरनीय जानकी वही जी शुक्रिया आप का .

आदरणीय ओमप्रकाश जी, प्रदत्त विषय के अनुरूप बहुत बढ़िया प्लाट लिया है. इस हेतु हार्दिक बधाई. किन्तु यह भी अवश्य है कि कथा शाब्दिक होने के क्रम में तनिक बोझिल सी हो गई है. एक ऐसा सस्पेंस पंक्तिशः बढ़ता जाता है जिसे कभी खुलना नहीं है. राजन बचपन से अपनी माँ की शह पाकर अँधेरी राहों का मुसाफिर बन जाता है और इसी क्रम में उससे अनजाने में हत्या होने के कारण जेल हो जाती है. राजन के आत्मग्लानी और आत्ममंथन के क्रम में स्वयं से बात करने के घटनाक्रम का शब्दिक हुआ प्रयास अपरिपक्व होने के कारण अस्पष्ट भी लग रहा है. लघुकथा का मूल भाव तो स्पष्ट हो गया है किन्तु लघुकथा नहीं. विश्वास है कि आप आवश्यक संशोधन कर इस प्रस्तुति को परिपक्व और सुगठित कर लेंगे. सादर 

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी शुक्रिया अपना मत और लघुकथा पर अपने विचार देने के लिए. आप का बेबाकी से रखा गया मत मुझे सहर्ष स्वीकार है. शायद, जल्दबाजी के क्रम में लघुकथा अस्पष्ट रह गई.

आदरणीय ओमप्रकाश जी, आपने मेरे कहे को मान देकर मुझे आश्वस्त किया है. आपकी सदाशयता को नमन है. मंच और मंच से इतर आपकी कई प्रभावशाली लघुकथाएं पढ़ चुका हूँ. उनमें से कई लघुकथाओं पर मुग्ध भी रहा हूँ. संभवतः यही कारण है कि आपसे सदैव और बेहतर की आशा रहती है. वैसे भी मंच पर रचनाकार की नहीं, रचना पर बात की जाती है. यह भी अवश्य है कि 'वाहवाही' से बेहतर रचना पर शिल्पगत चर्चा एक अभ्यासी के लिए सदैव लाभकारी होती है. मेरी बात को सहर्ष स्वीकार कर आपने, अपने भीतर के गंभीर और संवेदनशील अभ्यासी से ही परिचित कराया है. पुनः सादर आभार 

जनाब ओम  प्रकाश  साहिब, प्रदत्त विषय को परिभाषित करती लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं -

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