For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिनांक - 11 नवम्बर’ 12 को सम्पन्न महा-उत्सव के अंक -25 की समस्त रचनाएँ संकलित कर ली गयी हैं और यथानुरूप प्रस्तुत किया जा रहा है.

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिरभी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे. 

सादर

सौरभ

******************************************

आदरणीय अविनाश बागेड़े जी

ये पैगामे रौशनी ,जिस पर हमको गर्व।
सबके आँगन में हंसें ,दीपों का यह पर्व।।

घर के अन्दर ही नहीं, बाहर भी आभास।
आँगन की रंगोलियाँ , मन का है उल्हास।।

अनुशासित से दीप हैं , जलती हुई कतार।
मन से मन की ज्योत का , जोड़ रहें हैं तार।।

पालें स्वस्थ परंपरा, खुद पर ही उपकार।।
ध्यान रहे पर्यावरण , होवे ना बेजार॥

रहें पटाखों से बचे , दें ना इनपे तूल।
मनमोहक वातावरण , मौसम भी अनुकूल।।

दूसरी प्रस्तुति - हाइकु

नूर में ढली
रात कितनी भली
है दीपावली .
---------
दीप कतारें
अनुशासन -पर्व
साथ हमारे .
---------
अन्धकार क्यूँ?
एक उजली रात !!
ये करार क्यूँ?
---------
सितारे फीके
दीप-दीप मुस्काए
तेल या घी के
--------
रंग-रंगोली
आँगन मुस्कुराया
शुभ दिवाली
---------
रंग-रोगन
दीवारों पर फ़िदा
मन-मोहन
---------
दीपों की रात
खुशियों की बारात
तम को मात
-----------
बारूद न हो
ख़ुशी इस तरह
मनाते रहो
-----------
जलता रहे
दीप का ये सफ़र
चलता रहे
------------
सम्मान रहे
औरों की भावनाएं
यूँ ध्यान रहे
-----------
साफ ह्रदय
सुरक्षित मलय
मंगलमय

तीसरी प्रस्तुति

दिया कहे ऐ ! बाती तुझसे
जनम-जनम का बंधन है।
अपने जलते रहने से ही,
नाम वफ़ा का रौशन है।।
कितने कीट -पतंगे तुझपर,
आकर यूँ मंडरातें हैं।
लेकिन अपनी प्रीत देखकर,
जल जल कर मर जातें हैं।।
राह बड़ी पर चलना होगा,
रात बड़ी पर जलना होगा।
जीवन की मुश्किल राहों में ,
गिरना और संभलना होगा।
तम की ये दीवार तोड़ के ,
सुबह की मंजिल पाना है।
इक दूजे के लिए बने हैं ,
सबको ये बतलाना है।।

*****************************************

आदरणीय अरुण कुमार निगमजी

गीत -- दीपक क्या कहते हैं

दीवाली की रात प्रिये ! तुम इतने दीप जलाना
जितने कि मेरे भारत में , दीन - दु:खी रहते हैं |

देर रात को शोर पटाखों का , जब कम हो जाए
कान लगाकर सुनना प्यारी, दीपक क्या कहते हैं |

शायद कोई यह कह दे कि बिजली वाले युग में
माटी का तन लेकर अब हम जिंदा क्यों रहते हैं |

कोई भी लेकर कपास नहीं , बँटते दिखता बाती
आधा - थोड़ा तेल मिला है ,दु;ख में हम दहते हैं |

भाग हमारे लिखी अमावस,उनकी खातिर पूनम
इधर बन रहे महल दुमहले, उधर गाँव ढहते हैं |

दीवाली की रात प्रिये ! तुम इतने दीप जलाना
जितने कि मेरे भारत में , दीन - दु:खी रहते हैं |

दूसरी प्रस्तुति -- दीपावली पर ग्राम्य-दृश्य : स्मृतियाँ

मिट्टी की दीवार पर , पीत छुही का रंग
गोबर लीपा आंगना , खपरे मस्त मलंग |

तुलसी चौरा लीपती,नव-वधु गुनगुन गाय
मनोकामना कर रही,किलकारी झट आय |

बैठ परछिया बाजवट , दादा बाँटत जाय
मिली पटाखा फुलझरी, पोते सब हरषाय |

मिट्टी का चूल्हा हँसा , सँवरा आज शरीर
धूँआ चख-चख भागता, बटलोही की खीर |

चिमटा फुँकनी करछुलें,चमचम चमकें खूब
गुझिया खुरमी नाचतीं , तेल कढ़ाही डूब |

फुलकाँसे की थालियाँ ,लोटे और गिलास
दीवाली पर बाँटते, स्निग्ध मुग्ध मृदुहास |

मिट्टी के दीपक जले , सुंदर एक कतार
गाँव समूचा आज तो, लगा एक परिवार |

*****************************************

आदरणीया लता आर. ओझाजी

मिथ्या सारा नेह - बैर ,आडम्बर बीड़ा पान ..
पीछे खुखरी घोपते ,आगे बड़ गुडगान ..

झूठी प्रीत को ओढ़ के,लील गए विश्वास
अपने सर जो आपदा ,तो सबसे बांधे आस ..

अबकी रंगोली बनो ,हृदय दीप उजास ..
सारा तम हर कर करो,हर मानव में वास ..

हे गणपति !मानव करो बना हुआ जो पाप ..
माता अबकी तुम हरो ,ह्रदय ह्रदय संताप ..

सही राह फिर चल पड़े ,दुनिया ये बावली
सही उजाला जगे फिर इस दीपावली ..

दूसरी प्रस्तुति

चंदा छुट्टी पर गया,हुआ तामस घनघोर
नन्हे दीपक अड़ गए ,चमक गया हर छोर ..

फुलझड़ियों की झड़ी लगी ,राकेट उड़ा गगन ..
चकरी नाची झूम के ,हुआ अनार मगन ..

कान फाड़ता शोर करे , सुतली वाला बम ..
मिर्च जलाते हाथ से ,सांसें गयीं हैं थम ..

घंटी ,पूजा आरती तो कहीं शंख करे नाद ..
दीपावली के दिन ज़रा भूलो सभी विवाद ..

लक्ष्मी जी को पूजिए संग पूरे परिवार ..
हसी ख़ुशी मनाइए ये प्रकाश त्यौहार ..

फिर से फलने लगेगा जो धंधा था मंदा ..
वापस फिर आजाएगा ,छुट्टी पर गया चंदा

*****************************************

आदरणीय अलबेला खत्रीजी

कवित्त - दीपावली

काली कलमुंही रात, काली ही रहेगी यारा, फौजियों के लिए सियाचीन की दीपावली
दीपावली पर्व बनी या तो धनपतियों का या फिर मनेगी सत्तासीन की दीपावली
गाँवों में भले ही लोग खाते हों मिठाई पर, शहर में दारू-नमकीन की दीपावली
दीये चाइनीज़ यहाँ, लड़ियाँ भी चाइनीज़, भारत में मन रही चीन की दीपावली

दीपावली आई है तो स्वागत करो रे भाई, ऐसे वैसे जैसे तैसे, खुशियाँ मनाइये
पैसे नहीं तो क्या हुआ, लोक दिखावे के लिए, क़र्ज़ ले के आँगन में लड़ियाँ लगाइए
पड़ोसी को अस्थमा है, भले होवे तुम्हें क्या है, छोड़िये लिहाज़ फुलझड़ियाँ जलाइये
लक्ष्मीजी की पूजा भला, इससे अच्छी क्या होगी, लक्ष्मी छाप पटाखों के चीथड़े उड़ाइये

दूसरी प्रस्तुति - दोहे : दीपावली अभिनन्दन

दीया बालो प्रेम का, करो नेह का नूर
हर घर में आलोक हो, तम हो जाये दूर

पावन हो वातावरण, प्रसरे ज्योति सुगंध
सम्भव हो तो रोकिये, अब बारूदी गंध

वयस्कजन को चाहिए, रखें सतत यह ध्यान
नहिं दुर्घटनाग्रस्त हो, शिशु कोई नादान

लीपा चूल्हा अब कहाँ, कहाँ छाज की थाप
परम्परा को खा गया, आलसपन का शाप

अलबेला की आरज़ू, केवल इतनी यार
हरा भरा इस देश को, देखे सब संसार

भितरघातियों की करो, खोज खोज पहचान
ज़मींदोज़ कर दीजिये, उनके नाम-निशान

नंगा भूखा नहिं मरे, अब कोई इन्सान
निर्धन में भी है वही, जो हम में भगवान

दमक ये ज्योति-पर्व की, उर का यह उल्लास
ज्यों सरसों के खेत में, फूटे पका कपास

नयनों में आतिथ्य की, भरी रहे मनुहार
अविरल सबको बाँटिये, प्यार प्यार बस प्यार

तीसरी प्रस्तुति - छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया - छन्न पकैया, सबको खूब बधाई
नव नूतन उजियारा लेकर, नई दिवाली आई

छन्न पकैया - छन्न पकैया, कर लो काव्य-किलोलें
ओ बी ओ के रजत महोत्सव की मिल कर जय बोलें

छन्न पकैया - छन्न पकैया, मार गयी मंहगाई
रॉकेट की कीमत में भैया केवल चकरी आई

छन्न पकैया - छन्न पकैया, घी का दाम सुना है ?
हमने सुना है और सुनते ही अपना शीश धुना है

छन्न पकैया - छन्न पकैया, सोना सचमुच सोना
भाव पूछने से पहले तुम, सोडे से मुंह धोना

छन्न पकैया - छन्न पकैया, पुनः मुबारकबाद
अब आयेंगे खाना खा कर, लंच ब्रेक के बाद

*****************************************

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला

दीपों का त्यौहार

शुभ तिथि और वार को हर्षोल्लास मनाते हम त्यौहार
दीपावली है जगमग करते, जलते दीपों का त्यौहार ।
इनसे होता कला ज्ञान विज्ञानं संस्कृति का विकास,
इसमें लौकिक परलौकिक दर्शन का होता अहसास ।
दीपों के प्रकाश मूल में निहित है, वेद सम्मत मार्ग,
और निहित इनमे आर्थिक सामाजिक प्रगतिका मार्ग।
दीपावली त्यौहार में होती जलते दीपों की जगमगाहट,
आठ दिन पूर्व अहोई अष्टमी सेही होजाती इसकी आह्ट ।
अहोई अष्टमी में निहित चरम सीमा कीत्याग कहानी,
ननद की खातिर बनती छोटी बहु अपनी कोख की दानी ।
राजपुत्री होकर भी लक्ष्मी करती दरिद्र पति से अनुराग,
यत्र नार्यस्तु पूज्यते,रमते तत्र देवेता, है नारी का त्याग ।
लक्ष्मी के स्वागत मे तेल के दीपक से घर में करे प्रकाश,
स्वर्गलोक तक सात्विक प्रभाव,घी का दीपक करे प्रकाश ।
बंदनवार बाँध द्वार पर करते त्यौहार निर्विघ्न संपन्न,
विधि विधान से लक्ष्मी गणेश और शारदा का पूजन ।
पूजत कलम दवात बही खाते, आँखों में माँ का अंजन,
प्रातः बेला में कचरा कर घर बाहर,माँ को शीश नमन ।

दूसरी प्रस्तुति - दोहे

दस ग्यारह बारह आज, प्रगति का दिन आज
थोडा और श्रम करले, पूरण हो सब काज । (1)

गौरी पुत्र कार्तिकेय, माह यह उनके नाम,
आये जग के भले को, प्रथम उन्हें प्रणाम । (2)

धन दौलत को छोड़कर, नहीं ओर है ध्यान
अगर नहीं धन प्रेम का, लक्ष्मी करे न मान । (3)

निर्धन को नित डस रही, किस विध बेटी ब्याह,
इस दिवाली देख रहा, धन लक्ष्मी की राह । (4)

अँधेरी अमावस करे, दियाबत्ती की आस,
माँ कमला के आन की,रखे रात भर आस । (5)

माँ लक्ष्मी को भूल कर, बेटा गया विदेश,
रूठी लक्ष्मी छोड़ गयी, कंगाली में देश । (6)

ज्योतिर्मय करे सबको, दीपक करते कर्म,
खुद रहे अन्धकार में, निभा रहे स्व धर्म । (7)

बाती कहे दीपक से, तुझ बिन क्या मेरा,
मिल तेल में मै जलू , धर्म कहे यह मेरा । (8)

दीन दुखियो का जीवन, ज्योतिर्मय कर जाय
सबके गम को दूर कर, मन दीप जला जाय। (9)

दीप सबके जीवन में, खुशिया खूब भर दे,
सबके आँगन कुटी में, प्रकाश पुंज भर दे । (10)

तीसरी प्रस्तुति - छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया- छन्न पकैया, सबको मिले मलाई
अँधेरी अमावस में दीवाली,नूतन उजियारा लाई

छन्न पकैया-छन्न पकैया,माँ शारदे की जय बोंले
लक्ष्मी गणेश विष्णुजी की,आओ हम सब जयबोले

छन्न पकैया- छन्न पकैया,धन तेरस में धन बरसे
दुनिया को देगए धन्वन्तरी, निरोगी रहने के नुक्से

छन्न पकैया- छन्न पकैया, महामानव गणित के,
आविष्कारी आर्यभट्ट इसके,शून्य बिना क्या बढ़ते

छन्न पकैया- छन्न पकैया,प्रथम विद्यालय विश्व का
तक्षशिला नाम है उसका, ईसा पूर्व सातवी सदी का

छन्न पकैया- छन्न पकैया,खगोल विज्ञानं भी आया
दूसरी सदी में हमने ही विश्व को, यह उपहार दिलाया ।

छन्न पकैया- छन्न पकैया,पहला गणतंत्र भी यही का
बिहार के वैशाली में स्थापित, ईसा पूर्व छटी सदी का ।

छन्न पकैया- छन्न पकैया, भारत ने ही कर्मयोग बताया
भगवत गीता में श्रीकृष्ण ने,सर्वप्रथम कर्मयोग सिखाया

छन्न पकैया- छन्न पकैया, इस दिवाली ऐसे दीप जलाओ
सम्रद्ध छवि सब दुनिया देखे, भारत की छवि चमकाओ ।

छन्न पकैया- छन्न पकैया,ख़ुशी ख़ुशी यह त्यौहार मनावे,
सभी गुरुजन व् मित्र गणों को, दीपावली की शुभ कामनाए

*****************************************

आदरणीय अशोक कुमारजी

कविता

दीप और चिराग के प्रकाश से दीवालियाँ/
आज हम मना रहे समाज में दीवालियाँ//

उतरने अमीरों कि पहन रहा समाज जो,
शान से अमीरों कि सहम रहा समाज जो/
तन जलाया रातदिन दीप ना जला सका
उस गरीब भुखमरे समाज में दीवालियाँ//

बहु को दहेज ही समझ रहा समाज जो,
पुत्री के जन्म से सहम रहा समाज जो/
छेडछाड मारपीट आम अब तो हो चली
लुटती हैं अस्मतें समाज में दीवालियाँ//

नेता आंदोलन का पनप रहा समाज जो,
फ़ैल रही भ्रष्टता को खोलता समाज जो/
लूटते हैं हुक्मरान कोई ना बचा सका
लोक भ्रष्टतन्त्र के समाज में दीवालियाँ//

जात पात और वर्ग भेद का समाज जो,
टूट और बिखर रहा देश में समाज जो,
रोजगार ढूंढता कहीं उसे ना मिल सका
बेकार बढती फौज के समाज में दीवालियाँ//

दूसरी प्रस्तुति - सवैया (दो)

कार्तिक मास कि रात अमावस,दीप जलाकर की उजियारी/
पूजन पाठ करें धन की अरु, सज्जन बाँटत देत मिठाई/
नार विधान करे सब भांति लगाकर तोरण द्वार सजाती/
बन्धु सखा सब आपस में मिलि कण्ठ लगावत देत बधाई//१//

चौपड खेलत दांव लगावत माल लुटाकर होत भिखारी/
और भए कछु खाकर पीकर लेकर माल उधार शराबी/
नाचत गावत बाल सखा सब शोर मचावत हैं हर बारी/
झूमत गावत रंग जमावत भारत देश मनाय दिवारी//२//

तीसरी प्रस्तुति - कुंडलिया छंद (हास्य)

दीपक दमके चहुँ दिशा,आज दिवाली रात,
दीपमाल नारी लगे, नर अरु दीपक बात/
नर अरु दीपक बात,लगाती हिय में अगनी,
पाकिट करती साफ़, दीपावली में पत्नी/
देखूं दिन अरु रात, खर्च करती जम जमके,
बना नर बुझी बात, नार बन दीपक दमके//

कंगन झुमका पायली, करधन चकमक हार,
नारी आभूषण कई, सजती भांति प्रकार/
सजती भांति प्रकार,सूट पहनाती नर को,
देती तिलक निकार,प्यार से कहती सरको/
कैसी नाजुक मार, वार है एटम बम का,
नर का देखो प्यार, दिलाए कंगन झुमका//

*****************************************

आदरणीया राजेश कुमारीजी

रोले

(1)
देखो देखो आज ,दीपावली है आई
खुशियों की सौगात ,वरदायिनी है लाई
आओ फिर इक बार ,दीप से दीप जला लें
भूलें सब तकरार ,प्यार की ज्योति जगा लें

(2)
पुण्य अमावस रात ,घर घर दीप जलाये
लखन सिया औ राम ,अयोध्या में जब आये
बच्चे ,बड़े ,जवान , पर्व ये सबको भाता
सच की होती जीत , ज्ञान ये सबको होता

(3)
जुवा खेलते लोग ,नशा भी उत्तम मानें
झूठा है ये भ्रम ,सुकर्मों को पहचानें
सच्चे मन से आज ,प्रेम के पुष्प चढाओ
श्री लक्ष्मी को पूज , सम्रद्धि घर की बढ़ाओ

(4)
मात जलाती दीप ,बच्चे पटाखे फोड़ें
चकरी और अनार ,जलते रॉकेट छोड़ें
रखो तुम जरा ध्यान , होवे रात ना काली
प्रेम स्नेह से आज , मनाओ शुभ दीवाली

दूसरी प्रस्तुति

दीवाली पर (हास्य रचना )

पिछले बरस जब दीवाली आई
पलटन बाजार में आमने सामने
दो नई दुकाने आई
एक का मालिक रामचंदर हलवाई
दूजे का जुम्मन कसाई
एक प्रातः दुकान में अगरबत्ती घुमावे
दूजा खूँटी पर नंगे बकरे लटकावे
एक कड़ाही में जलेबियाँ तोड़े
दूजा मुर्गों की गर्दन मरोड़े
रामचंदर जी तलते खारी
जुम्मन मजे से चलावे आरी
घूरें दुकान पर आते जाते
एक दूजे को फूटी आँख ना भाते
शाम को जुम्मन दुकान की करते सफाई
मानो रामचंदर जी की आफत आई
कपडे से नाक मुंह ढकते
जोर जोर से बुडबुड करते
जुम्मन मन ही मन मुस्काते
रामचंदर जी मक्खियाँ भगाते
जो ग्राहक पहले सामने जाते
उसे रामचंदर दूर से भगाते
कई बार बात इतनी बढ़ आई
हाथा पाई तक नौबत आई
जैसे तैसे बीत गया साल
कम हुआ ना उनका मलाल
इक दिन अतिक्रमण का भुजंग है आया
दोनों की दुकान पे नोटिस चिपकाया
दोनों के जीवन में जब कहर है आया
भूल के सब कुछ हाथ मिलाया
निकला जुलूस जैसे सब भागे
हाथ पकडे वो थे सबसे आगे
एक सुर में जब गुहार लगाई
उनके दुःख दर्द की हुई सुनवाई
दुःख बांटे फिर मिले जुले
इस दीवाली पे गले मिले

*****************************************

आदरणीया सीमा अग्रवालजी

गीत - दीपावली के नन्हे दीप को समर्पित

एक नन्हा दीप जो
मावस निशा में जल रहा है
है बहुत कुछ कह रहा वो झिलमिला कर
मुस्कुराता सा मेरी दहलीज़ पर जो
बल रहा है

एक नन्हा दीप जो
मावस निशा में जल रहा है

है नहीं यह ज्योति
का बस पुंज, इक सन्देश भी है
जीत की प्रस्तावना है कर्म का आदेश भी है
है अकिंचन, दल रहा पर तिमिर दुष्कर
विषमताओं की चुनौती
भेदता अविरल
रहा है

एक नन्हा दीप जो
मावस निशा में जल रहा है

एक ज्योतित
सार है, आधार है पावन प्रथा है
साधती 'सकार' को आभामयी निर्मल कथा है
पीढ़ियों दर पीढ़ियों पोषित निरंतर
संस्कारों का अलौकिक
चिरंतन संबल
रहा है

एक नन्हा दीप जो
मावस निशा में जल रहा है

*****************************************

आदरणीय रविकर फ़ैज़ाबादी

कुण्डलिया

डेंगू-डेंगा सम जमा, तरह तरह के कीट |
खूब पटाखे दागिए, मार विषाणु घसीट |
मार विषाणु घसीट, एक दिन का यह उपक्रम |
मना एकश: पर्व, दिखा दे दुर्दम दम-ख़म |
लौ में लोलुप-लोप, धुँआ कल्याण करेगा |
सह बारूदी गंध, मिटा दे डेंगू-डेंगा ||

दूसरी प्रस्तुति - कुण्डलिया

देह देहरी देहरा, दो, दो दिया जलाय ।
कर उजेर मन गर्भ-गृह, कुल अघ-तम दहकाय ।
कुल अघ तम दहकाय , दीप दस घूर नरदहा ।
गली द्वार पिछवाड़ , खेत खलिहान लहलहा ।
देवि लक्षि आगमन, विराजो सदा केहरी ।
सुख सामृद्ध सौहार्द, बसे कुल देह देहरी ।।

देह, देहरी, देहरा = काया, द्वार, देवालय
घूर = कूड़ा
लक्षि = लक्ष्मी

तीसरी प्रस्तुति

दोहा-2

दीवाली का अर्थ है, अर्थजात का पर्व ।
अर्थकृच्छ कैसे करे, दीवाले पे गर्व ।|

अर्थजात = अमीर, अर्थकृच्छ =गरीब

एक लगाए दांव पर, खलु शकुनी अवतार ।
रोज दिवाली ले मना, करके गुने हजार ।।

कुण्डलियाँ-2

बत्तीसा जोडूं अगर, ग्यारह नोट हजार ।
इक पल में वे फूंकते, पर हम तो लाचार ।
पर हम तो लाचार, चार लोगों का खाना ।
मँहगाई की मार, कठिन है दिया जलाना ।
केरोसिन अनुदान, जमाया रत्ती रत्ती ।
इक के बदले चार, बाल-कर रक्खूँ बत्ती ।।

लगा टके पर टकटकी, लूँ चमचे में तेल ।
माड़-भात में दूँ चुवा, करती जीभ कुलेल ।
करती जीभ कुलेल, वहाँ चमचे का पावर ।
मिले टके में कुँआ, खनिज मोबाइल टावर ।
दीवाली में सजा, सितारे दे बंगले पर ।
भोगे रविकर सजा, लगी टकटकी टके पर ।।

किरीट सवैया ( S I I X 8 )

झल्कत झालर झंकृत झालर झांझ सुहावन रौ घर-बाहर ।
दीप बले बहु बल्ब जले तब आतिशबाजि चलाय भयंकर ।
दाग रहे खलु भाग रहे विष-कीट पतंग जले घनचक्कर ।
नाच रहे खुश बाल धमाल करे मनु तांडव हे शिव-शंकर ।।

*****************************************

आदरणीय अखिलेश मिश्रजी

दीपावली

लौटे आज सिया के वर,
धरती को करके कष्टमुक्त,
दिया जलाओ,आगमन पर,
अंबर उतार दो,धरती पर ।

झेले हैं बनवाष,बरस चौदह,
मिले कष्ट हैं कम नहीं,
स्वागत करो,कुछ इस तरह,
मन में बचे कोई शोक नहीं ।

प्रेम है उनके अंदर इतना,
नहीं चाहते कुछ तुमसे ,
पर कर्तव्य है अपना ये,
राजा का स्वागत,करें अलग ।

तरस गए हैं ये नैना,
अंधेरा छा रहा था इनमें,
जलाओ दिया इतने की,
फिर प्रकाश लौट आए इनमें ।

देख लें जी भर राम को,
बचें न कोई लालसा रे,
व्यर्थ हो गया था जो जीवन,
उसमें लौट आए साँस रे ।

जगमग जगमग दिया जल उठें,
आतिशबाजी हो कम नहीं,
आए थे आज मेरे राम,
इससे बड़ा कोई दिन नहीं ।

मर्यादा पुरुषोत्तम हैं ये,
कष्ट झेलें हैं सब हँसकर,
ला दो सारे तारे जमीं पर,
इसके सच्चे हकदार ये ।

शुभ हो दीपावली का दिन,
रहे जीवन पर प्रकाश इसमें,
खूब फलें फूलें इस देश के लोग,
करता हूँ ऐसी प्रार्थना मैं ।

दूसरी प्रस्तुति - दीपावली

जगमग जगमग दिया जल उठे,
हो रही है आतिशबाजी भी,
स्वर्ग से सुंदर लग रही धरती,
अपने ऐश्वर्य को बता रही धरती ।

जल उठा कुटिल हृदय इन्द्र का,
स्वर्ग से सुंदर कैसे हुई धरा,
कौन हो सकता है बड़ा मुझसे,
इसका पता लगाओ जरा ।

मंत्री ने बोला, महाराज,
राम आगमन का है स्वागत,
राम हैं आज के राजा वहाँ,
इसीलिये स्वर्ग से सुंदर है धरा ।

डर गया इन्द्र राम नाम से,
याद आई जयंत की कथा उसे ,
चुप हो,देखने लगा पृथ्वी को,
सोचा,सजाऊँगा ऐसे ही अपने मिट्टी को ।

ये है दीपावली का दिन,
दुख को भगाकर,खुशी के,
आगमन का दिन,आओ,
जलाये दीप आज के दिन ।

फैले इतना प्रकाश चारो ओर,
नष्ट हो जाए सारा अंधकार,
बने भविष्य की रूपरेखा आज,
सदगुणो को करे सब अंगीकर ।

दुनिया में रोशन हो मेरा देश,
फैले इसकी कीर्ति सदा ,
मिट जाए गरीबी और कष्ट,
चारो ओर प्रकाश हो ।

बताओ नई पीढ़ी को ,
राम आगमन की कहानी,
सिखा दो दिया जलाना उन्हें,
कर दो सुरक्षित भविष्य को ।

जल्दी जल्दी आए,शुभ दिन ये,
राम का सुमिरन हम सब करें ,
अमर हो जायें ,अपने लोग,
ऐसी कामना,दीप जलाकर करें ।

*****************************************

आदरणीय धीरेंद्र सिंह भदौरिया

दोहे

दीपक करने आ गए,धरती पर उजियार
आलोकित संसार है, भाग रहा अंधियार.

उजलापन यह कह रहा,मन में भर आलोक
खुशियाँ बिखरेगी सतत,जगमग होगा लोक.

दीपक नगमे गा रहे,मस्ती रहे बिखेर
सबके हिस्से है खुशी,हो सकती है देर.

छत पर उजियारा पला,रौशंन हुई मुडेर
या खुद लक्ष्मी आयगी, या उसको ले टेर,

जगमग सारा जग हुआ,नगर और हर गाँव
संस्कार की जय हुई ,मिली नेह को ठांव.

दूसरी प्रस्तुति - दोहे

अंतर्मन उजला हुआ,दीपों का यह पर्व
हर इंसा अब कर रहा,आज स्वमं पर गर्व,

सत्य आज फिर पल रहा,धर्म करे जयघोष
अहंकार मत पालना,वरना खुद का दोष,

उजियारा इक भाव है,उजियारा गुणधर्म
उजियारे से प्रगति है,समझो प्रियवर मर्म.

आलोकित संसार में,हरदम पलता प्यार
उजलेपन से ही सदा,जीवन पाता सार,

दीपों की यह है कथा,जीवन में उजियार
संघर्षो के पथ रहो, कभी न मानो हार,

*****************************************

आदरणीय सतीश मापतपुरी

तब होती दिवाली थी
ख़्वाबों में जब वो आते , तब होती दिवाली थी .

जब याद उनकी आती , तब होती दिवाली थी .
वो दिन भी क्या गज़ब थे,छिप छिप के उनका मिलना .
ख़ामोश ज़ुबां होती , नज़रों से कहना -सुनना .
जब रु - ब - रु वो होते , तब होती दिवाली थी .
ख़्वाबों में जब वो आते , तब होती दिवाली थी .

नहीं भूल पाया अब तक , गुज़रा हुआ वो हर पल .
वो ज़ुल्फ़ - वो घटायें , वो ढलते हुए आँचल .
जब -जब वो खुलके हंसते , तब होती दिवाली थी .
ख़्वाबों में जब वो आते , तब होती दिवाली थी .

जानें वो दिन थे कैसे , वो कैसा ज़माना था .
कितना हसीं था मौसम , कैसा वो तराना था .
कैसे बतायें सबको , वो कैसी दिवाली थी .
ख़्वाबों में जब वो आते , तब होती दिवाली थी .

*****************************************

आदरणीय प्रदीप कुमार कुशवाहाजी

दीवाली कैसे मनाएं
---------------------------
टपकते न आँख से आंसू
बह रहा उनसे लहू
गृह शोभा बन जो आयी
घर घर जले वही बहू
दहेज़ दानव जब तक न जले
कैसे दिवाली मनाएं हम
आओ ज्ञान दीप जलाएं हम
-------------------------------------
नारी नारी भेद करती
पुत्री बजाये पुत्र चुनती
दोनों श्रष्टि संतुलन कारक
भ्रूण हत्या कर बनती मारक
लिंग भेद जब तक न मिटे
कैसे दिवाली मनाएं हम
आओ ज्ञान दीप जलाएं हम
------------------------------------
टूटती रिश्तों की डोर
जाग मानव हुई भोर
काला तन कलुषित मन
सुन्दर बना अपना जीवन
प्रेम गंगा धार जब तक न बहे
कैसे दिवाली मनाएं हम
आओ ज्ञान दीप जलाएं हम
--------------------------------
एक धरती एक गगन
सुन्दर है अपना चमन
धरती पर गिरा ये लहू
एक रंग किसका कहू
भेद भाव जब तक मिटे न
कैसे दिवाली मनाएं हम
आओ ज्ञान दीप जलाएं हम
----------------------------------
नफरत की आग में
जाने क्यों जल रहे
करना था हमें क्या
न जाने क्या कर रहे
हैवान जब तक इंसान न बने
कैसे दिवाली मनाएं हम
आओ ज्ञान दीप जलाएं हम
------------------------------------
जगमगा रहा नगर
वीरान पडी बस्तियां
भूख गरीबी अत्याचार
बलात्कार शोषित नारियाँ
दानव जब तक मानव न बने
कैसे दिवाली मनाएं हम
आओ ज्ञान दीप जलाएं हम
------------------------------------
चीर कर धरती का सीना
श्रम सींकर से सिंचित करे
भरते सेठ अपनी झोलियाँ
कृषक तिल तिल भूखा मरे
उपज का उचित मूल्य जब तक न मिले
कैसे दिवाली मनाएं हम
आओ ज्ञान दीप जलाएं हम
------------------------------------
हरी भरी थी वसुंधरा
काट रहे वन उपवन
कर रहे पानी को मैला
जल का हो रहा दोहन
प्राकृतिक संपदा की जब तक हो न रक्षा
कैसे दिवाली मनाएं हम
आओ ज्ञान दीप जलाएं हम
------------------------------------
सुसंसकृति सह्रदयता सुन्दर संस्कार
खोज मानव की अनोखी भ्रष्टाचार
दे मान बढ़ाई शान वे बने भगवान
पाप करते पुन्य कहते मर रहा इंसान
रावणों का बोझ जब तक धरा से न हटे
कैसे दिवाली मनाएं हम
आओ ज्ञान दीप जलाएं हम

*****************************************

आदरणीय संदीप कुमार पटेलजी

देखो दीपों का आया त्यौहार है
जगमग हर एक द्वार है

नीले लाल गुलाबी फूल
रंगोली सी रगीं धूल
सारे दुख हम गए हैं भूल

लगी दीपों की ऐसी कतार है
जगमग हर एक द्वार है

लक्ष्मी पूजन करते लोग
मीठे के लगते हैं भोग
आयें खुशियाँ भागें रोग

रंग रोगन से सजी हर दीवार है
जगमग हर एक द्वार है

बम-पटाखे जले अनार
फुलझड़ियां चकरी औ हार
झिलमिल रंगों की बौछार

सोने चांदी का रोशन बाज़ार है
जगमग हर एक द्वार है

उपहारों का है त्यौहार
आपस में बढ़ता है प्यार
रोशन है सारा संसार

जीत मन की कहीं तो कहीं हार है
जगमग हर एक द्वार है

दीनों की फीकी है रात
फिर भी मीठी करते बात
शायद किस्मत कल दे साथ

असल धन तो हमारा व्यवहार है
जगमग हर एक द्वार है

*****************************************

आदरणीया (डॉ.) प्राची सिंहजी

तिमिरांचल दें पूर्व में, सूर्य रश्मियाँ चीर
ओजस्वी इक तेज से, हरें विश्व की पीर
हरें विश्व की पीर, दिलों से भेद मिटाएं
हृदय गुहा में सुप्त, ज्ञान का दीप जलाएं
दीपावली प्रदीप्त, करें धरती का आँचल
सर्वस सम स्वीकार्य, प्रेम भेदें तिमिरांचल ...

*****************************************

आदरणीय लतीफ़ ख़ान साहब

दोहे

इस दीवाली पर जलें, मन से मन के दीप।
नेह मोतियन से सजे, सम्बन्धों के सीप।।

चन्दन अगरु धूप जले, उच्चारित हैं श्लोक।
पूजा की थाली सजी, चहुँ दिक् है आलोक।।

संस्कारों के पर्व की, अजब अनोखी शान।
एक सूत्र में बंध गए, निर्धन क्या धनवान।।

रंगोली है आँगन में , द्वारे बन्दन वार।
घर घर में अब आ बसे, लक्ष्मी का अवतार।।

मंगल मय ऊषा हुई, इन्द्रधनुष सी साँझ ।
सुख की सूनी कोख अब, रह ना पाए बाँझ ।।

जब दीवाली में पड़े, लक्ष्मी जी के पाँव।
धन-धान्य से पूर्ण हों हर आँगन घर गाँव ।।

*****************************************

Views: 2841

Reply to This

Replies to This Discussion

आदरणीय सौरभ भाई जी, द्रुत गति से किये गए इस महती कार्य की जितनी प्रशंसा की जाये वह कम होगी। पूरे का पूरा आयोजन एक दफा जीवंत हो उठा, जो रचनाएँ पढने से रह गईं थीं उन्हें पढ़ कर आनंद आ गया। मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय।

आदरणीय योगराजभाईजी, आपसे प्रशंसा पाना गर्व का विषय है. आपने इस तरह के कार्यों के लिये अपनी कोशिशों से जो मानक तय कर दिये हैं उनका अनुकरण मात्र हो जाय वही संतुष्टिकारी हुआ करता है.

आपका सादर धन्यवाद.

बहुत बढ़िया संकलन.पांडे जी बहुत बहुत बधाई . 

भाई अखिलेश जी, आपका इस मंच पर उत्साह सुखकर है. आप मंच के अन्य आयोजनों में भी अपनी प्रतिभागिता तय करें.

सधन्यवाद

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service