आदरणीय साथिओ,
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बहुत ही बढ़िया लघु कथा , सुनील भाई !
आजकल का चलन ही ऐसा है कि लोग घर मे बुजुर्गों को झेल नहीं पाते । बधाई आपको ।
ममता की ऊर्जा
मधुरा तनाव में थी।समय पूरा होते ही नार्मल डिलेवरी हो गई।घर पर नवागंतुक के साथ दिनचर्या प्रारंभ हो गई थी। खाने की थाली पर हाथ रखते हुए वह बोली
" बस-बस गर्म रोटी ज़्यादा खायी जाती है।मोटी हो जाउंगी! "
" बिटिया ,गरम-गरम खाओगी तभी तो तुम और बेबी स्वस्थ रहोेगी! "
" चलो, नारियल- तिल की चटनी भी खाओ।अच्छा बताओ खाना कैसा बना है? "
" बहुत स्वादिष्ट!"
" यह पान भी खाओ... अजवाईन से बेबी के पेट में गैस
नही बनेगी।"
"अभी वह सो रही है, तुम भी थोडा आराम कर लो।"
तभी बेबी उठ गई।धीरे-धीरे करके उसके रोने की आवाज़ तेज़ होने लगी।मिताली ने उसे धीरे से गोद में लेकर तकिये पर रख फीडिंग कराने की कोशिश की।
" ओह!कैसे सम्हालूं इसे? "
" रुको-रुको! इधर से सपोर्ट देना ज़रुरी है।हाँ, अब ठीक है।"
" आप ने सब सम्हाल लिया, मैं तो टेंशन में आ गई थी।यहाँ यू. एस. में डिलेवरी, सासुमाँ की अचानक तबियत खराब होना, ऑपरेशन ...अकेले सौरभ यहाँ कैसे देख पाते!"
" बेटी, सुरेखा मुझसे हमेशा कहती थी,' नन्हा मेहमान आयेगा ऐसा करुंगी, वैसा करुंगी ...' आखरी समय में कुछ कहना चाहती थी।वही मेरी उर्जा बन गया है।"
" सच पापा... यू आर ग्रेट.." कहते हुए मिताली की आँखें छलछला आई।पापा का ममत्वपूर्ण हाथ मिताली की पीठ पर संबल बना ममता उडेल रहा था।नये मेहमान को भी ममता की ऊर्जा मिल रही थी।
मौलिक व अप्रकाशित
बेहद खूबसूरत प्रस्तुति प्रदत्त विषय पर, दूर किसी और देश मे इतना सहारा मिलना बहुत बड़ा संबल होता है| बहुत बहुत बधाई आपको आ
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