आदरणीय साथिओ,
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बेहतरीन अंतिम विचारोत्तेजक पंक्तियों के साथ विषयांतर्गत बढ़िया रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और शुक्रिया मुहतरम जनाब मुज़फ़्फ़र इक़बाल सिद्दीक़ी साहिब। (कुछ संवादों में इन्वर्टेड कौमाज़ नहीं लग सके हैं)
बहुत बहुत शुक्रिया , शेख साहब
हार्दिक बधाई आदरणीय मुज़फ़्फ़र इक़बाल सिद्दिकी साहब जी। बेहतरीन लघुकथा ।यह घर घर की कहानी है।अकसर सासु बहू को तंग करती है और ससुर उसे सहारा देता है।कुछ मामलों में विपरीत भी होता है।लेकिन बिरले ही घर मिलेंगे जहाँ सासु और ससुर दोनों ही भले और नेक हों।
हार्दिक आभार , आपका ।
बेहतरीन कथा सिद्दिकी साहब । कभी कभी सच्चाई को भी आईना दिखलाना जरूरी हो जाता है । बधाई ।
बहुत बहुत शुक्रिया , आपका।
आदरणीय इक़बाल सिद्दीकी जी । आज की भागमभाग वाली जिंदगी के बीच हर परिवार की लगभग यही कहानी है। बहुत ही अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।
आ नीलम जी आपका बहुत बहुत आभार।
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा.रचना के माध्यम से परिवार की सास बहू की समस्या और फिर सच का आईना दिखाना ,बहतरीन लघुकथा.
आ बबीता जी उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद।
आदरणीय, ये ऐसी पृष्ठभूमि है जिस पर अनेक तरह से लिखा जा चुका है फिर भी आपने लघुकथा को एक नया आयाम दिया है। पढ़कर अच्छा लगा। आप सभी को पढ़ने के उपरांत ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी में हमने भी एक सच्ची घटना को शब्दों में पिरोने का प्रयास किया है आपका मार्गदर्शन चाहते हैं।
आशीष जी ,आपका बहुत बहुत आभार ,कथा पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन हेतू।
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