आदरणीय साथिओ,
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इस जानकारी के लिए आप बधाई के हक़दार हैं,उस्मानी जी ।
बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब।
सिविल सर्विसेस की प्रिलिम परीक्षा की तैयारी कर रहरही शिवानी ने अपने आप को दिन दुनिया से अलग कर लिया था। आजकल उसके संगी साथी उसकी किताबें और अपने चुने गए विषयों से सम्बंधित नोट्स रह गए थे। परीक्षा की तैयारी करने में परिवार का पूरा सहयोग मिल रहा था । उसके अपने कमरे के बाहर क्या कुछ चल रहा है, कौन आया, कौन गया, उसे इसकी कोई खबर नहीं रहती थी। हां उसने नोट किया कि पिछले तीन-चार दिनों से नन्हकी, जो उसके घर बर्तन और सफाई करने वाली की बेटी थी, किसी न किसी बहाने से उसके कमरे में चक्कर लगाती रहती है। कभी कहती -"दीदी तुम इतनी देर से बैठी हो पीठ दुःख गयी होगी। मैं थोड़ा दबा देती हूँ।" कभी कहती - "दीदी तुम थोड़ा लेट जाओ, मैं तुम्हारा सर दबा दू। " कभी पानी का गिलास लेकर हाजिर होती तो कभी चाय के लिए पूछने आ जाती। आखिर शिवानी ने उससे पूछ ही लिया - "नन्हकी, आजकल तुझे मेरी इतनी चिंता क्यों रहती है।" तब नन्हकी ने अपनी मंशा जाहिर कर दी - "दीदी तुम कोई इंतिहान दे रही हो तो आंटी, अंकल, भैया और छोटी दीदी सब तुम्हारा कितना ख्याल रखते हैं। मुझे बहुत अच्छा लगता है। दीदी, हमारे घर में हम लोग भी पांच प्राणी हैं। लेकिन माँ ही पूरा घर का खर्चा चलाती है। बापू तो शराबी है, घर से कोई मतलब ही नहीं है। घर चलाने में माँ की मदद करती हूँ। छोटी बहन बी.ए. की पढ़ाई कर रही है। भाई भी बी.ए. के बाद की पढ़ाई कर रहा है। दीदी तुम तो कोई नौकरी लगने की परीक्षा दे रही हो न । क्या तुम छोटी बहन और भाई को सरकारी नौकरी लगने की परीक्षा देना सीखा दोगी।"
"अच्छा सरकारी नौकरी की परीक्षा ही क्यों ?" "भाई पिराइवेट नौकरी करता था लेकिन तीन बार उसकी नौकरी छूट गयी। सरकारी नौकरी तो पक्की नौकरी होती है न।" आँखों में एक उम्मीद की किरण लिए नन्हकी को देख रही थी क़ि शिवानी उसके भाई को सरकारी नौकरी की परीक्षा देने में उसकी सहायता करेगी।
उस बात के चार वर्षों के बाद आज नन्हकी का भाई सिविल सर्विसेज की परीक्षा में मेरिट अंक लेकर आई ए एस पास हो गया है। उसकी छोटी बहन भी सरकारी महकमे में राजपत्रित अधिकारी है। नन्हकी के पिता का अत पता नहीं है। उस्की माँ पिछले साल गुजर गयी और नन्हकी अब शिवानी के घर बर्तन और सफाई का काम करती है।
हार्दिक बधाई आदरणीय नीलम जी।बेहतरीन लघुकथा।
बहुत बहुत आभार आदरणीय तेजवीर सिंह साहब।
ओह, कैसी विडंबना है।जो बहन अपने भाई बहनों के लिए सरकारी नौकरी के लिए इतना जतन करती हैं वह.ही उसे भूल गए।स्वार्थी रिश्ते।भावुक लघुकथा नीलम दी।परन्तु एक प्रश्न है क्या इसमें कालखंड दोष नहीं आ गया क्योंकि वर्तमान से ठीक चार साल बाद का जिक्र है।
आदरणीया दिव्या शर्मा जी, बहुत बहुत आभार। जहाँ तक कालखंड दोष की बात है, शायद आपको पता नहीं हो, सिविल सर्विसेज की परीक्षा और इसी लेवल की अन्य परीक्षा के लिए फॉर्म भरने से लेकर प्रिलिम, फिर मेंस परीक्षा पास करने, साक्षात्कार देने, पास होने, ट्रेनिंग पूरी होने के बाद पोस्टिंग होने तक लगभग दो से ढाई वर्ष का समय लग जाता है। वो भी तब अगर एक ही बार में सभी लेवल पास होते जाएँ। लघुकथा में इतना डिटेल नहीं दिया जा सकता कि ऍप्लिकेंट ने कितनी बार में परीक्षा पास किया। शायद इससे स्थिति कुछ स्पष्ट हो गयी होगी।
दीदी यह मुझे पता है कि सिविल सर्विसेज मे इतना समय लगता है।मेरी जिज्ञासा लघुकथा में कालखंड को लेकर थी।जिसे शायद मुझे अभी और समझना होगा।बाकी बारिकियों को वरिष्ठ ही बताएंगे।अपनी जिज्ञासा वश मैं आपसे यह कालखंड का जिक्र कर बैठी।
एक बहुत ही अहम उदाहरण पेश करते हुए विषयांतर्गत बढ़िया प्रेरक रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरमा नीलम उपाध्याय साहिबा। यदि यह सच्ची घटना हो, तो जवाबी टिप्पणी में उसकी पूरी जानकारी ज़रूर दीजिएगा, ताकि हम घटना के लघुकथांतरण में आपकी परिकल्पना कोशिश को समझ कर लाभान्वित हो सकें। शीर्षक बेहतर हो सकता है जैसे : /संगत/, /उत्प्रेरण/ /उत्प्रेरणा/... आदि। इसके ऊपर बिना शीर्षक वाली यही रचना कृपया डिलीट कर दीजिएगा।
आदरणीय शेख उस्मानी जी, बहुत बहुत आभार। आपको इतना बताना चाहूंगी कि कथा का लगभग पूरा प्रकरण सच्ची घटना पर आधारित है। ये वाकया तब का है जब मैं यू पी एस सी में कार्यरत थी और मेरे अंडर के साथ काम करने वाले एक ग्रुप डी कर्मचारी साथ कुछ ऐसा हुआ था। यू पी एस सी में काम कर चुकने की वजह से इससे अधिक और कुछ नहीं बताने के लिए मैं बाध्य हूँ.
शुक्रिया आदरणीया नीलम जी।
बिना शीर्षक वाली रचना को डिलीट करने का प्रयास किया था पर मुझे सफलता नहीं मिली। वैसे भी लैप टॉप पर काम करने मैं अधिक सिद्धहस्त नहीं हूँ.
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