Tags:
Replies are closed for this discussion.
आदरणीय सुशील भाईजी
लिखना सार्थक हुआ , लघु कथा की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार
कथा अच्छी किन्तु प्रस्तुति ढ़ीली हुई है. वैसे कथा प्रदत्त विषय को सन्तुष्ट कर रही है, बधाई आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी.
आदरणीय गणेशभाईजी
लिखना सार्थक हुआ , लघु कथा की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार
आदरणीय अखिलेश कृष्णा श्रीवास्तव जी, आपकी इस लघु - कथा पर हार्दिक बधाई आपको !
आदरणीय सचिन भाई
लघु कथा की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार
प्रयास अच्छा है आदरणीय अखिलेश जी पर जैसा कि आदरणीय योगराज जी कह चुके हैं कि ये दो अलग अलग समय पर हुई घटनाओं का संगम है देखिए
घटना - १
राजधानी के एक प्रसिद्ध निजी महाविद्यालय में असि. प्रोफेसर पद के लिए साक्षात्कार में तीन सदस्यीय कमेटी के समक्ष यामिनी उपस्थित हुईं। लगातार घूरती छः आँखें । ऐसी निगाहों का सामना तो वह रोज ही करती है हर कहीं, लेकिन शैक्षणिक संस्थान - माँ सरस्वती के इस मंदिर में भी ....
प्राचार्य- “ ग्रेजुएशन पीजी सभी में मार्क्स अच्छे आये हैं, पीएचडी में आपके गाइड कौन थे । ”
“ डा. बाटली ”
प्रो. (डा.) नागवार - “ परिवार में और कौन हैं।”
“ बस माँ हैं, सारी ज़िम्मेदारी ... ।”
“ हम समझ सकते हैं कि आपको इस नौकरी की कितनी ज़रूरत है।”
प्राचार्य - “यामिनीजी आप जा सकती हैं। कल सूचित किया जाएगा। और हाँ, नियुक्ति होती है तो आपको कैम्पस क्वार्टर में ही रहना होगा।”
उठते हुए... “ जी, धन्यवाद ।”
प्रो.(डा.) बचकानी - “ हमें ऐसी ही मज़बूर लड़की की तलाश थी सर।”
प्राचार्य- “ बस चुनाव तो हो चुका, लेकिन सुशील और संस्कारित लगती हैं।”
डा. बचकानी- “ डा. बाटली को मैं जानता हूँ, वे अच्छे अच्छों के संस्कारों की नींव हिलाकर ही दम लेते हैं। डा. रूबिका भी तो उन्हीं की देन है सर।”
घटना-२
यामिनी रात भर बेचैन रही, जब भी नींद लगती ... पलंग को घेरे तीन भेड़िये, लाल बल्ब, घूरती लाल आँखें, बड़े नाखून, नुकीले दाँत, कैम्पस का लाल क्वार्टर, सीलन की गंध... यही स्वप्न बार बार ।
सुबह मोबाइल की घंटी बजी “ बधाई यामिनीजी, प्राचार्य बावरा बोल रहा हूँ, आप चाहें तो आज ही ज्वाइन कर सकती हैं, डा.बचकानी और नागवारजी भी आपको बधाई दे रहे हैं।”
“ धन्यवाद सर, लेकिन माँ पैतृक मकान छोड़ना नहीं चाहतीं, क्षमा करें, माँ की ज़िद के आगे मैं भी मज़बूर हूँ।”
डा. नागवार- “ क्या हुआ सर, आपका चेहरा...... ।”
“ जिसे मज़बूर समझे वो मजबूत निकली। यामिनी के संस्कारों की मजबूत नींव से टकराकर हमारे हसीन सपने चकनाचूर हो गये।”
इसलिए ये लघुकथा की श्रेणी में नहीं आ सकती।
प्रयास के लिए दिली दाद कुबूल करें।
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई
लघु कथा के संबंध कई प्रश्न अब भी अनुत्तरित हैं
1.. लघु कथा में अधिकतम शब्द सीमा [ लम्बाई ] क्या होना चाहिए ।
2.. क्या एक ही बैठक , एक ही समय में लगातार संवादों के बाद लघु कथा समाप्त करना आवश्यक है, तभी वह लघु कथा कहलाएगी।
3.. इस लघु कथा में पूरी घटना एक है विषयांतर नहीं हुआ है पात्र भी वही हैं , साक्षात्कार का परिणाम तुरंत नहीं दिया जाता इसलिए कुछ घंटों का अंतराल आवश्यक था यह दूसरी घटना कैसे हो गई।
सादर
प्रदत्त विषय पर लघुकथा लिखने का अच्छा प्रयास हुआ है लेकिन कथानक को और छोटे में समेटा जाता तो ज्यादा प्रभावी होती | बहरहाल इस रचना के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय.
आदरणीय विनय भाई
लघु कथा की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार
आदरणीय वीरेन्दर वीरजी
लघु कथा की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |