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आभार आप का आ कांता जी
आप ने लघुकथा पर अपना विचार रखा .
इस बढ़िया प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीय ओमप्रकाश जी सर | कांता जी की बातों से मैं भी सहमत हूँ, परन्तु जो कुछ आपने कहा है वो निःसंदेह ही बहुत बढ़िया है|
आदरणीय चंद्रेश जी
आप की प्रतिक्रिया के लिए मन से आभार
शुक्रिया आ नीता जी
आप का आभार ।
मेरी प्रतिक्रिया को केवल स्नेह हेतु ही ग्रहण कीजिएगा ।
३. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
जी . भाई साहब , आगे ध्यान रखूँगा
बढ़िया लघुकथा है आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय जी। खून में रचे बसे संस्कार कभी न कभी हिलोरे मारने ही लग जाते है। सम्भवत: यही संस्कार प्रेम और मोह की बुनियाद होते हैं। रचना अच्छी है किन्तु छोटे भाई द्वारा कागज़ का पुर्जा रख कर यूँ चले जाना थोड़ा अस्वाभिक लगा। चलिए मान लेते हैं कि भाइयों की बोलचाल नहीं है, जिस कारण वह अपने मन की बात कागज़ पर लिखकर चला गया। तो क्या रजिस्ट्री वाली बात उस कागज़ में नहीं लिखी जा सकती थी ? ज़रा विचार करें।
आ भाई साहब
प्रणाम ।
लघुकथा में अनकहा डालने के लिए ऐसा प्रयास किया है ।
राजिस्ट्री वाली बात लिखने से अनकहे का प्रभाव कम हो जाता । यह सोच कर कागज में नहीं लिखा ।
आप की राय को ध्यान में रखूँगा आ भाई दहब ।
आपने फ़रमाया कि :
//राजिस्ट्री वाली बात लिखने से अनकहे का प्रभाव कम हो जाता ।//
किन्तु अंतिम पंक्तियाँ तो किसी पहेली की तरह लग रही है।
//” जिसे पढ़ते ही पतिपत्नी के मन में एक ही सवाल उठा था, ‘ वह कौन था ? जिसे मकान दिखाते समय इस ने दलाल से कहा था कि मकान की रजिस्ट्री कर के मकान मालिक को दे देना .”//
लघुकथा – बुनियादी संस्कार “पासपोर्ट की जाँच करवाने गया है. थोड़ी देर में अमेरिका रवाना हो जाएंगे. मगर यूं तक नहीं कहा है कि मैंने अपने हिस्से का मकान बेच दिया है.” पत्नी ने देवर पर चिढ़ते हुए कहा. “अरे तू जाने दे. उस के हिस्से का मकान ही तो बचा था. हमारे हिस्से का मकान तो हम पहले ही बेच चुके है.” “वह मकान पिताजी के केंसर के इलाज के लिए बेचा था. वे उस के भी पिताजी है.” “तो क्या हुआ ?” “लोग सही कहते है, विदेशों में जा कर लोग अपने मातापिता और अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं .” “हो सकता है. तेरी बात सही हो. या उस की कोई मजबूरी रही हो. देख. वो आ रहा है. चुप हो जा.” उस ने आते ही दोनों के चरण स्पर्श किए और कागज का टुकड़ा पकड़ा कर चल दिया. उस में लिखा था, “ मैं जा रहा हूँ. आप मुझे याद करते रहिएगा और मैं आप को. और हाँ. आप यहाँ आनंद से रहिएगा और मैं वहां .आप को मकान की रजिस्ट्री मिल जाएगी .”
(मौलिक और अप्रकाशित )
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