श्री गणेश जी बागी:
1. "प्रतियोगिता से अलग" अन्नदाता कहलाते, भारत की ये शान है, धरती के पुत्र हम, देश के किसान है | पूरा परिवार मिल, अन्न को हैं उपजाते, सबको खिलाते खुद, दरिद्र समान हैं | मंदी और महंगाई, द्वय पाटन के बीच, गेहूं संग पिस-पिस, हो रहे पिसान है | योजना किसान हेतु, बनी जो सफ़ेद हाथी, कर्ज बीच डूब सदा, देते रहे जान हैं || 2. "प्रतियोगिता से अलग" पिया खेती कराई तकनीक से, हट के तनिक लीक से ना,
खेत बरध से ना जोताई, नया टेक्टर किनाई, पइसा बैंको से आई, कुछ बापू से मांगल जाई,
पिया पटवन कराई अब नीक से, हट के तनिक लीक से ना,
खेत से नमूना उठवाई, शहर से माटी जँचवाई, पहिचान कमी के कराके, खेत में खाद डलवाई,
किनाई बीया दूकान "सैनिक" से, हट के तनिक लीक से ना ,
लड़ब पंचाईत के चुनाव , संगे बावे सारा गाँव, बनब हमहूँ मुखियाइन, सगरो होई हम्मर नाँव,
होई गाँव के विकास अबरी ठीक से, हट के तनिक लीक से ना,
पिया खेती कराई तकनीक से, हट के तनिक लीक से ना,
3. "प्रतियोगिता से अलग" हवाओं से बिजली बनाते वो देखो, 4. "प्रतियोगिता से अलग" सीखिए सिखाइए व, सभी को समझाइये, ओ बी ओ का मंच है ये, ठठा् ना बनाइये, आप जो भी लिखते वो, सारा जग देखता है, अपने सम्मान पर, बटा् ना लगाइए,
ध्यान से ही गुनिये जी, कभी ना गुस्साइये ,
ऐसी बानी बोल जिन, दिल को दुखाइए, अम्बरीष श्रीवास्तव 1. "प्रतियोगिता से अलग" बदला भारत देश है, बदल गया परिवेश, पर किसान को देखिये, बदल न पाया वेश. बदल न पाया वेश, दिखे जैसे का तैसा, 2. "प्रतियोगिता से अलग" मैं किसान का बेटा हूँ
3. "प्रतियोगिता से अलग" चित्रण कर लें चित्र का, जो भी दृश्य अदृश्य.
श्री आलोक सीतापुरी ! 1. "प्रतियोगिता से अलग" कहलाये विकसित नहीं, भारत किसी प्रकार, जब तक निर्धन हैं यहाँ, लघु किसान परिवार, लघु किसान परिवार, चाहिए इन्हें सुरक्षा, बच्चों को मिल जाय, उचित सरकारी शिक्षा, कहें सुकवि आलोक, कृषक क्यों मान न पाये| रह के भूखे पेट, अन्नदाता कहलाये||
2. "प्रतियोगिता से अलग" दुखियारे सहते सदा, सूखा बाढ़ किसान,
3. "प्रतियोगिता से अलग" चाहें रहें भूखा पेट, कर्म ही प्रधान है| 4. "प्रतियोगिता से अलग" भूला भारत क्यों भला इस हलधर की शान,
श्री इमरान खान
1. इस मुल्क का जाने,
2. गगन समान महंगाई,
3. बिजली नहीं मिली बरसात कम हुई, बूंदें कटी हुई फसलों पे आ गईं, इक बाग पे गुमाँ वो भी चला गया, कैसे चुकाएंगे बच्चों की फीस को, बिटिया के हाथ भी पीले न कर सकें, अहले बाज़ार के क़र्ज़े में दब गए, लाखों की मिल्कियत फाकाकशी के दिन, हम आँहों फुगा करें या फिर बग़ावतें, 'इमरान' जिगर की बातें दबाए रख, 4. कर्म हमारा कठिन परिश्रम, फल की इच्छा किसे है भाई, 5. क्यों रे बिटुआ कहाँ गया था, तेरे बाबा पूछ रहे, श्री शशि मेहरा जी !
1. जिन्हें, लोग कहते, किसान हैं | वो, खुदा समान, महान हैं || वो ही, पैदा करते हैं, फसल को | वो ही, जिन्दां रखते हैं, नस्ल को || वो तो, ज़िन्दगी करें, दान है | जिन्हें, लोग कहते, किसान हैं || उन्हें, अपने काम से काम है | वो कहें, आराम , हराम है || वो असल में, अल्लाह की शान हैं | जिन्हें, लोग कहते, किसान हैं || जिन्हें, बस ज़मीन से, प्यार है | करें जाँ, ज़मीं पे, निसार हैं || वो तो, सब्र-ओ-शुक्र की, खान हैं | जिन्हें, लोग कहते, किसान हैं ||
2. जहाँ को जिसने बनाया, खुदा है, दाता है | किसान खल्क-ए-खुदाई का, अन्न-दाता है || बहा के खून-पसीना, जो अन्न उगाता है | सुना है,खुद वो कभी, पेट भर न खाता है || उम्र भर, जिसका रहे, गुर्बतों से नाता है | वो सब्र-ओ-शुक्र, न जाने, कहाँ से पाता है || अजीब बात है, मुश्किल में, मुस्कराता है | 'शशि' सलाम, करे उसको, सर झुकाता है ||
3. तरक्की जिसको कहते हैं, हुई है बस फसानों में | हकीकत देख लो जाकर के, गावों में, किसानों में || किसी हसरत को, दिल में सर, उठाने वो नहीं देते | जुबां से बदनसीबी के, उलाहने वो नहीं देते || ख़ुशी वो ढूंढ़ लेते हैं, वैसाखी के तरानों में | हकीकत देख लो जाकर के, गावों में, किसानों में || है, पूजा काम करना, वो ज़माने को, सिखाते हैं | उमीदों के भरोसे ही, ज़मीं पे हल चलाते हैं || उन्हें मालूम है, जो फर्क है, वादों-बयानों में || हकीकत देख लो जाकर के, गावों में, किसानों में || फलक को ताकता है, गो, ज़मीं से उसका नाता है | लगा कर दाँव पर मेहनत ,वो किस्मत आजमाता है || 'शशि' खाका किसानों का, बयाँ कर तू तरानों में | हकीकत देख लो जाकर के, गावों में, किसानों में ||
4. लिखे, आत्म-कथा, जो किसान है |
श्रीमती वंदना गुप्ता जी !
1. "ये मेरे साथ ही क्यों होता है ?" मेहनत तो किसान कर सकता है मगर कब तक कोई भाग्य से लड सकता है
2. सोचता हूँ किसान हूँ मैं इस बार इक नयी फ़सल उगाऊँ फ़ल सब्ज़ी बहुत उगा लिये फिर भी ना गरीबी मिट पाती है हर बार फ़ांके की ही बारी आती है तो क्यों ना इस बार वो कर जाऊँ जिससे जीवन सुधर जाये और मेरे देश से गरीबी का कलंक मिट जाये मेरा काम तो फ़सल उगाना है फिर चाहे फ़सल अन्न की हो या हथियार की सोचता हूँ इस बार एक ऐसी नयी कौम उगाऊँ जो आतंक और नेताओं से त्रस्त जनता को मुक्त कराये सबके दिलो मे देशभक्ति की लहर जाग जाये हम जैसे आम किसान ही ऐसा कर सकते हैं और देश और समाज को इक नयी दिशा दे सकते हैं ये जज़्बा तो हम मे ही भरा होता है किस्मत से भी लड ज़ाते हैं जब हम अपनी पर आ जाते हैं तो क्यों ना हर दिल मे देशभक्ति की वो लहर जगाऊँ फिर ना कोई आतंक का शिकार हो इस देश से बाहर भ्रष्टा्चार हो इक नये जहाँ का आगाज़ हो जिसमे एक बार फिर जय जवान जय किसान का नारा बुलन्द हो और मेरे देश मे हर किसान फिर से सुखी समृद्ध हो
श्रीमती शन्नो अग्रवाल जी !
1. "प्रतियोगिता से अलग" नहीं आधुनिक साधन जीवन बड़ा ववाल मेहनत करके खेत में कृषक होत निढाल l
भरते सबका पेट उगाकर धरती पर अन्न खुद खायें आधा पेट फिर भी रहें प्रसन्न l
ठाठ-बांठ ना कोई हो मुश्किल से निर्वाह इन गरीब किसानों की कौन करे परवाह l
बस कुछ लोगों को ही मिल पाती मजदूरी किसी तरह जीवन जीना हो जाता मजबूरी l
इनकी हालत पर हमसब आओ करें बिचार साथ में जाग्रत हो जाये ये सोयी सरकार l
2. "प्रतियोगिता से अलग" घास-फूस की झोंपड़ी, बहा रहे हैं खून रात-दिन मेहनत करें, खाने को दो जून खाने को दो जून, मौज करती है दौलत खाते हैं भरपेट, दिखाकर शानो-शौकत ‘’शन्नो’’ किन्तु गरीब, तड़पते रह जायें इनकी प्रगति में भी, आओ हाथ बंटायें l
3. "प्रतियोगिता से अलग" तड़के उठकर खेत में, बहा रहे हैं खून रात-दिन मेहनत करें, खाने को दो जून l
चाहें घर में मौत हो, या आँधी-बरसात बिन विराम देते हमें, फसलों की सौगात l
साधारण भोजन करें, घर में कम सामान ना आभूषण कीमती, सस्ते से परिधान l
खेतों में बसती सदा, है किसान की जान हरियाली को देखकर, गाने लगते गान l
उपजाते हैं ये फसल, पकने की कर आस अक्सर आती बाढ़ जब, होता सत्यानाश l
खेती-बाड़ी पर जिये, इनका सब परिवार इनकी पूंजी बैल हैं, खुशियों का संसार l
बलिहारी इनकी सदा, मिलती अनुपम भेंट इन पर निर्भर हम सभी, भरते अपना पेट l
हमें खिलाकर अन्न ये, स्वयं रहें गरीब प्रगतिशील ये भी बनें, कुछ सोचो तरकीब l
श्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी कोई राजा नहीं कोई रानी नहीं ,
श्री वेद "व्यथित " जी
1. फसल नही सपने बोये हैं
2. राजनीति ने छला इन्हें भी
श्री अतेन्द्र कुमार सिंह 'रवि' जी 1. हम करते रहे खेतों में अनवरत काम सबका पेट भरते, कहलाते 'किसान'
भोर हुई कि चल पड़े डूबके अपने रंग ले हल कांधो पे और दो बैलों के संग बहते खून पसीना तज कर अपने मान सबका पेट भरते, कहलाते 'किसान' ---१
हैं उपजाते अन्न सब मिलकर खेतों में हम फिर भी मालियत पे इसके हैं अधिकार खतम सबकुछ समझ कर भी हम बनते है नादान सबका पेट भरते, कहलाते 'किसान' ---२
भूखे हैं हमसब या अपना है पेट भरा हैं देखने आते हमको, यहाँ कौन जरा बस ''रवि'' के संग हमसब देते हैं अंजाम सबका पेट भरते, कहलाते 'किसान' ---३
2. खेतवा में लिखल बाटे जेकर हो करमवा हथवा में हल लेईके चलेले हो किसनवा l
नाहीं कौनों फईसन बाटे अपने त देहियाँ बचल खुचल उमड़ेले बचवन पे नेहियाँ खईहैन कि भूखे सोईहैन इहै किसनवा l ....१
कहाँ बाटे नैनों कार कईसन बा सफारी इनके दुआरे ख़ाली सजेले बैलगाड़ी कभी पूरा होइहै भाई इनकर अरमनवा ?....२
का बनिहैं साक्षर इहाँ महँगी बा पढाई रूपरेखा खाली इनकर खेतवे रही जाई केकर बा सहारा ना सोचेले नादानवा l ...३
इनके हथेलिया पे का ई लिखला विधाता पलटी जाई समय कहिओ ना हमके बुझाता जबकि पेटवा भरलें सबकर मान हो कहनवा l....4
श्रीमती शारदा मोंगा जी
1. खेती है कठिन परिश्रम, व्रत- महान चाहिए, हरियाली खेती लहलहाए, का ध्यान चाहिए, कृषक को उचित शिक्षा दान चाहिए , धरा उर्वरा का वैज्ञानिक ज्ञान चाहिए, स्वस्थ बीज, कीटनाशक, खाद चाहिए, उचित मात्रा में पानी लगातार चाहिए, ट्रेक्टर आदि आधुनिक औजार चाहिए, खरपतवार निकालने को परिश्रमी किसान चाहिए.
2. सपना देखे किसान बेचारा,
3. एक पिता के चार बेटे भारत माँ की शान बने ! पढ़ लिख कर जब युवा हुए चारों फ्रंट संभाल लिए एक बना जवान सेना में देश-दुश्मन पर वार किया दूसरा हुआ कुशल इंजिनीअर भवनों का निर्माण किया तीसरे ने वाणिज्य पढ़ा था कुशलता से व्यापर किया चौथे ने चुना पिता का पेशा खेतिहर किसान बना देश की भूख मिटाता था वह धरती माँ की आन बना चारों बेटों के योगदान ने माँ बाप का बढाया मान जय जवान! जय किसान !
4. उचित शिक्षा, होगा ज्ञान, कृषक अवगत, नहीं अनजान, वे धरा के असली लाल, सूदखोर का आया काल, खेत भी हैं, और मकान, स्कूल अस्पताल का भी भान, बैंक में खाता मिला है चांस, सस्ती दर से लो एडवांस, खुद ही मालिक है किसान, उचित शिक्षा देगी ज्ञान, कृषक करेंगे अपना पोषण, अब न होगा उनका शोषण तब वे गायेंगे यह गीत: "दुःख भरे दिन बीते रे भैय्या ! अब सुख आयो रे" !! 5. यह देश कृषि प्रधान है. कुछ नहीं वहां सामान है. वह देश का पेट तो भरता है,
6. पवन चक्की की उर्जा, काम हुआ आसान, ख़ुशी ख़ुशी से खेत में, व्यस्त हुआ किसान, पत्नी बच्चे मिल कर, कर रहे हैं काम, सुध बुध खोये खेत में, बिना किये विश्राम, मिले हवाई उर्जा , रहट होगा बलशाली , चमकेगा घर खूब अब, बिजली दे उजयाली, बदरा रे अब समय से, करना हम पर मेहर, पड़े न अब सूखा कहीं, और न बाढ़ का बेहढ़., इंद्र देवता की स्तुति में , हाथ जोड़ प्रणाम, अब प्रभु कृपा करो ,बहुत सह चुका किसान. 1. हे भगवन हम खेतिहर मजदुर , देखो न किस कदर हुए मजबूर , हे भगवन हम खेतिहर मजदुर , सरकार एक सौ बीस दिलाती हैं , उसमे तो दो बक्त की रोटी ना आती हैं , खेत में खटे बीबी बच्चो के संग हैं , सब कमाते फिर भी अधनंग हैं , यात्रा करते हैं अब मेरे युवा हुजुर , हे भगवन हम खेतिहर मजदुर ,
2. माई हो हम नाही बनब अनपढ़ किसान ,
3. एक बाप तिन बेटे , तीनो ने किया पढाई , एक ने पढ़ कर , सेना में अपनी जोड़ लगाई , अंत समय सब कुशल , घर बैठे पेंशन आई , एक बाप तिन बेटे , तीनो ने किया पढाई , दूसरा बेटा इंजिनियर , दौलत खूब बनाई, अंत समय वो राजा सा , अपनी दिन बिताई , एक बाप तिन बेटे , तीनो ने किया पढाई , चौथा बेटा बाप किसान , उसपे रहम वो खाई , डिग्री को घर में रख के , खेत में किया कमाई, अंत समय बुरा हाल हैं इसका , बेटा ना किया पढाई , एक बाप तिन बेटे , तीनो ने किया पढाई,
4. आओ दोस्तों आज कुछ कर जाये , जो किसान करते हैं , वही हम कर जाये , हाथ में खुरपी लिए , सोहते (फसल के बिच से घास को हटाना ) है वो , हम भी कुछ वैसा ही कर जाये , सबसे पहले हिंदुस्तान की छाती से , आतंकबाद रूपी घास को हटाये , उसके बाद जातीबाद को जड़ से मिटाए , जब भाई चारा की उपज आएगी , तो जम कर खुसिया मनाये , 5. हा मैं एक किसान का बेटा हूँ , सत्य कहता हूँ , वो सब देखा हूँ , हा मैं एक किसान का बेटा हूँ , अन्य की घर में कमी न थी , खूब सब्जी होता था बागो में , पर एक एक पैसा को तरसा हूँ , हा मैं एक किसान का बेटा हूँ , बड़े पापा रहते थे विदेशो में , पर कहा यही करते थे , नहीं लिया एक दाना तुझसे , इसीलिए पैसा नहीं देता हूँ , हा मैं एक किसान का बेटा हूँ , जब वो आते थे गावं में , तब पापा अन्य बेचा करते थे , स्वागत में खूब जेवन बनते , यहा कोई कमी नहीं उनकी समझ मैं जनता हूँ , हा मैं एक किसान का बेटा हूँ , होली और दिवाली में , बस दो समय ही कपड़े सिलते थे , छठ और तेवहार में , पकवान मिलते थे ये कहता हूँ हा मैं एक किसान का बेटा हूँ , पापा के मेहनत से , और मेरी तैयारी , बन बैठा मैनेजर , मौज खूब उराया करता हूँ हा मैं एक किसान का बेटा हूँ , 6. हाय रे भारत अब तेरा क्या होगा , खेतो में बुजुर्ग औरत और बच्चे , क्यों नदारद हैं नौजवान हैं जबाब , सोच इन किसानो की और बुडा होगा , हाय रे भारत अब तेरा क्या होगा , अब कोई किसान बनना चाहता नहीं , पढ़ा हो या न पढ़ा खोजता नौकरी , किसान को प्रगति से जोड़ना होगा , हाय रे भारत अब तेरा क्या होगा , नौजवानों की कंधो पे भारत की शान हैं . नौजवानों के बिना कुछ सोचना बेकार हैं , नौजवानों को खेतो में मोड़ना होगा , हाय रे भारत अब तेरा क्या होगा , 7. ये नौजवा सुन तुझे पुकारता हिदुस्ता , वीर हैं तू वीर क्यों करता कायरता , माना सब कुछ बन चूका हैं नौकरी यहा पे , अगर अन्य नहीं मिला तो पावोगे कहा पे , मिलेगा तुझे सब मिलेगा दूर कर अज्ञानता , ये नौजवा सुन तुझे पुकारता हिदुस्ता , शर्म कर बच्चे बुजुर्ग ,औरते हैं खेत में , नहीं करेगा किसानी तो क्या जायेगा पेट में , तू हिन्दुस्ता का हैं संतान जो कभी ना हारता , ये नौजवा सुन तुझे पुकारता हिदुस्ता , 8. आओ सब मिल के उतारे इनकी आरती , जिसे पाकर खुश हैं मईया भारती , आओ सब मिल के उतारे इनकी आरती , जब हम सोते हैं ये खेतो में होते हैं , शर्दी गर्मी हो या वर्षा सब इन्हें हारती , आओ सब मिल के उतारे इनकी आरती , पहले हल बैलो का जोड़ा अच्छा लगता था , अब खेतो में ट्रेक्टर हैं फराटा मारती , आओ सब मिल के उतारे इनकी आरती , बच्चो को स्कुल भेजो औरते घर में जाये , बुजुर्ग जाकर खलिहानों में बन बैठे सारथि , आओ सब मिल के उतारे इनकी आरती , सोने की चिड़िया थी फिर सोने की बनायेंगे , हम भारत को आत्म निर्भर बनायेंगे , खुश हैं इनको पाके मईया भारती , आओ सब मिल के उतारे इनकी आरती , 9. एक तरफ हैं उन्नति , हम अवनति के घोतक , खबर आई हैं की होगी प्रगति , अब हम सब को कुचलकर , बेटा छोड़ पहले चला गया हमें , बहु का जो दुःख कैसे हम कहे , फिर ये सरकार की फरमान आ गई , लगेगी यहा पे एक फेक्ट्री नई , छोटी सी पोती बुड्ढी पत्नी , जवा बहु हैं सर पे पड़ी , सरकार की मर से परेसान , सोहनी कर रहे हैं हम पूरा परिवार , बेटा नौकरी के चक्कर में शहर गया , ना जाने कहा वो बहक गया , 10. धिक्कार हैं , तुम बातें करते प्रगति की , तुम सम्बेदंशील हो , पेपरों में हमें बहुत कुछ दिए , हम कैसे हैं आकर तो देखो , तुम्हारा मन बोलेगा , तुझे धिक्कार हैं , हम आठ घंटे के बाबु नहीं , चौबीस घंटे का मजदुर हैं , अकेला नहीं पुरे परिवार के साथ , खटने पर मजबूर हैं , फिर भी आपने बच्चो को , स्कुल नहीं भेज सकता , अच्छा कपड़ा नहीं पहना सकता , क्या इतना सभ सहकर , दिल से दुआ निकलेगी या बददुआ, मगर मेरा दिन बस इतना कहा , धिक्कार हैं , 11. प्रगति पे किसान परेशान . मेहनत दिन रात खाली हाथ . खेत से नेह पर खाली देह . नाड़ी बुजुर्ग बच्चा नौजवान ? . प्रगति के पंख गपोड़ शंख . गावं की ओर शहर कहर 12. बबुआ गईले कोट में फरमान आइल बा , बगले में प्रगति के बेयार आइल बा , इ जमीन दिया गइल बाटे टाटा बिरला के , पैसा हमके मिल जाई कमिसन कटवा के , पूरा परिवार एकरे पे आसरा कईले बा , मिया बीबी बच्चा संगे खुरपी धइले बा , तन पर कपडा नइखे मन परेशान हो , खेतवा छिना जाई त कहा होई धान हो , खुसी के त बात बाटे स्टे आइल बा , फेक्ट्री ना बनी कोट से रोकल गइल बा , शहर बना के इ बर्बाद करिहे गावं हो , पंखा लगा दिहले एकर का बाटे काम हो , चाही प्रगति इ त हमारो बुझाता , बुद्धि दिही ये लोग के राउआ बिधाता , फसल वाला खेतवा के मत हमसे छीनs , उसर चवर चापर के तुहू चीन्ही किनाs ,
अभिनव अरुण 1. "प्रतियोगिता से अलग" क्षणिकाएं ! {1}. लील रहे हमारे खेत - तुम्हारे तार पेट पर वार ! {2}. यहाँ चक्की वहाँ बिजली - वहाँ सबकुछ गए हम लुट ! {3}. विकास ? छोड़ दी आस नहीं विश्वास सत्यानाश ! {4}. तुम्हारा छल तुम्हारा बल हमारा आज ? हमारा कल ?? {5}. हमारी खुरपी हंसिया हमारे हल - रहट सब ये कॉलर खा गए हैं कि हालर आ गए हैं ! {6}. तुम्हारी घुड़कियों से डर रहे हैं है मजबूरी तभी तो , किसानी कर रहे हैं मर रहे हैं ! {7}. हमीं हम बो रहे हैं नफे में वो रहे हैं नियति है ढो रहे हैं !
2. "प्रतियोगिता से अलग" ग़ज़ल : - दुआ है कलम और हल दोनों दौड़ें ! न समझो इसे तुम हमारी नादानी , ये है अपनी किस्मत कि करते किसानी |
हुनर ये हमारा भी कम कुछ नहीं है , कहो वर्ना पाते कहाँ दाना पानी |
दुआ है कलम और हल दोनों दौड़ें , तुम्हारी रवानी हमारी जवानी |
बहुत खूबसूरत शहर का सनीमा , बला की मगर गाँव कहते है कहानी |
महल और अटारी तुम्हे हों मुबारक , हमारे लिए चूल्हा चौका चुहानी |
नहीं जानते हम ग्रीटिंग्स और तोफे , दुआएं हमें देती हैं आजी नानी |
श्रीमती अनीता मौर्या जी
हम सब का जो पेट है भरता, उस इन्सां का नाम किसान..
कड़क धुप हो, या हो गर्मी, कभी न रोके काम किसान...
छुट्टी हो या हो त्यौहार.. कभी न करता आराम किसान....
खुद को जलाता, खुद को खपाता, दो जून की रोटी तब खाता...
फिर भी अपनी मेहनत के लायक, क्यों नहीं पाता दाम किसान...
श्री सौरभ पाण्डेय जी
1. खेल अजूबा बतर्ज़ प्रगति का हाल
देखो अपना खेल.. द्वारे बंदनवार प्रगति का पिछवाड़े धुर-खेल.. भइया, देखो अपना खेल. फसल निकाई, खेत गोड़ाई अनमन माई बाबू झक्की.. .. जतन-मजूरी खेती-बाड़ी भइया, देखो अपना खेल. खुल्लमखुल्ला गड़बड़-झाला आमद-खर्चा मेड़-कुदाली बाबू बौड़म करें बवाला - रात-पराती आँखन देखे - हाट-खेत बेमेल.. भइया, देखो अपना खेल. नाच-नाच कर खूब बजाया विकास-पिपिहिरी पीट नगाड़ा उन्नति फिरभी रही टिटिहिरी संसदवालों के हम मुहरे भइया, देखो अपना खेल.
2. बात है ये लाख टकी, सीख अनुभव-पकी सुनिये जी, सखा-सखी, सबको सुनाइये लगन से सीख रहे, पढ़े-गुने दीख रहे उज्बक ही चीख रहे, उनको मनाइये विकास परिवार का, उजास घर-बार का, आपसी व्यवहार का, नाम-गुन गाइये नहीं कोई गैर यहाँ, आपस में बैर कहाँ? छोटी-छोटी बात धरि, दिल न दुखाइये..
श्री धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी "प्रतियोगिता से अलग" पनचक्की उग रही, बंजर जमीन में औ’, खेत में किसान हैं, कपास बो रहे जहाँ । सीमा पे खड़े पहाड़, जिन पर हैं जवान दिन रात जागकर, खून बो रहे वहाँ ॥ हवा, धरा, पानी, धूप, नभ सभ मिलकर देश के विकास हेतु, श्रम करते तहाँ । जय जवान, जय किसान, जै विज्ञान कह कर खुश हो के लगता है, बापू रो रहे यहाँ |
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यह देश है कृषिप्रधान,
खेती है इस की जान,
मेहनत से करो न चोरी,
यह धरती माँ है तोरी,
माँ की सेवा करोगे,
आशीष में फल भरोगे,
माँ पहने हरियाली साड़ी,
पीली सरसों की किनारी,
फल फूलों की डिज़ाइन,
पेड़ों की ठंडी छाईन,
पर्वतों से पुष्ट उरोज,
तालाबों में फूलें सरोज,
नदिया साड़ी में सिलवट,
मुडती घूमती चमकत ,
माँ देती तुम्हे दुलार ,
करो तुम माँ से प्यार.
मेहनत से करो न चोरी,
यह धरती माँ है तोरी,
sir ji ye kavita sarda monga ji ka hain
धन्यवाद रवि जी ! आवश्यक संशोधन कर दिया गया है !
धन्यवाद भाई 'अभिनव' जी ! इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले सभी ओ बी ओ प्रतिभागियों व पाठकों के प्रति आभार !
धन्यवाद आदरणीय अम्बरीषभाईजी,
इस आयोजन के अबतक के सञ्चालन के क्रम आपने बहुत कुछ पर मनन किया होगा. इस प्रवाह में विस्तार और स्तर दोनों माँगों को संतुष्ट करना आवश्यक हो गया है. आयोजन की समस्त रचनाओं के इस महती संयोजन के लिये आपको पुनः धन्यवाद.
स्वागत है भाई सौरभ जी ! आपने सत्य कहा कि इस प्रवाह में विस्तार और स्तर दोनों माँगों को संतुष्ट करना आवश्यक हो गया है. अगले आयोजन में इसका ध्यान अवश्य रखा जायेगा ! इस हेतु हम हृदय से आपका आभार व्यक्त करते हैं !
इस आयोजन के कई दिन बाद भी इसका नशा उतरा नहीं है, अभी भी ........
अक्की-बक्की
पवन की चक्की
देखे मुनिया हक्की-बक्की
गुनगुना रहा हूँ , सभी रचनाओं को एक जगह संयोजित कर आपने बहुत ही बढ़िया काम किया है अम्बरीश भाई, यदि किसी को आयोजन में प्रस्तुत केवल रचनाएँ ही पढनी हो तो यहाँ पढ़ ले, किन्तु यदि आँखों देखा हाल सुनना/देखना हो तो "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक ४जरूर देखे, आनंद की गारंटी है :-))))
आपकी गारण्टी पर वारण्टी.. :-))))
धन्यवाद भाई बागी जी ! सच कह रहे है आप! आनंद की गारंटी है :-))))
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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