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बदन पर कपडे नहीं ,पेट में अनाज नहीं ,पैर में चप्पल नहीं,होठो से शराब लगी होती है .
गरीबी ,जाती और महंगाई से ज्यादा जो चीज़ देश की जनता के लिए बड़ा खतरा है,वह है शराब .शराब के बढ़ते ठेके और बढती खपत गरीबो को गरीब ही नहीं रख रही ,गरीबो के घरो को गाली,मारपीट ,गुस्से,तोड़-फोड़ का निशाना बना रही है.शराब पर तो हर गरीब अपनी आमदनी के बड़ा हिस्सा खर्च कर ही डालता है,बाद में उसका खामियाजा सहने पर और खर्चना पड़ता है .
रत्नेश भाई प्रणाम, आज Open Books के मन्च से बहुत ही खाश और समाजिक सरोकार के मुद्दे को आपने उठाया है। शराब खराब है इसमे किसी को कोई शक नही होना चाहिए, रह गई इसके असर की बात तो गरीब और अमीर पर इसका व्यापक और अलग अलग प्रभाव पड़ता है, आपने जैसा कि लिखा भी है, अगर किसी कि कमाई १००० प्रति दिन कि है यानि ३०००० प्रति माह और वो माह मे १५०० का शराब पी गया तो वो केवल अपनी कमाई का ५% शराब पर खर्चा कर अच्छे क्वालिटी का शराब पिया जिससे उसके सेहत पर और जेब पर कुछ खाश अन्तर नही आया, पर वही जब एक दिहाड़ी मजदूर जो दिन भर मे १५० मुश्किल से कमाता है, और उसमे से ५० रू घटिया शराब पर लगा देता है तो उसका सेहत और जेब दोनो बर्बाद हो जाता है साथ मे उसका पूरा परिवार बर्बाद हो जाता है ।
क्या इतनी शराब की छूट देना फायदेमंद है ?अगर नहीं तो सरकार को जरुर ऐसा कोई कानून बनाना चाहिए जिसमे कुछ शर्ते हो जिन्हें पूरा करने के बाद ही आदमी को शराब छूने की इजाजत हो .
और शराब के दुकानों की संख्या में कमी लानी चाहिए ,शराब को केवल शहरी छेत्र में ही बेचने की इजाजत हो,जिस से गरीब जनता इस से दूर रह सके
बात शराब पीने कि छुट देने कि नही है, बात ये है कि शराब से होने वाली मौतो के प्रति आम आदमी को जागरूक कैसे किया जाय, अधिकतर मौत अवैध जहरीली शराब पीने से होती है, जो कही ना कही पुलिस के नाक के नीचे चल रही होती है, अगर प्रशासन चाह ले तो ये सब अवैध शराब की फैक्टरिया एक दिन मे बन्द हो सकती है,
दुकान केवल कम कर देने से तो अवैध धन्धेबाज सब की चान्दी हो जायेगी,
कुछ मेरे समझ से उपाय---
१- आम आदमी को शराब के बूराई और नुकसान के प्रति जागरूक एवं sikchhit करना
२- अवैध शराब के कारोबारियो पर रोक लगाना,
३- जिस एरिया मे जहरिली शराब का केस आये उस एरिया के थाना प्रभारी पर कार्यवाही करना ।
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