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मुझे यह बताते हुए बहुत ही खुशी हो रही है कि मैथिली मे गजल विकसित तो हो ही रही है साथ ही साथ " बाल गजल " की अवधाराणा भी आयी है और प्रचुर मात्रा मे बाल गजल लिखी जा रही है। वैसे तो हिन्दी-उर्दू मे बाल विषयक कई गजल और नज्में हैं मगर अलग से कोई बाल गजल की अवधाराणा नहीं आयी इसका कारण वीनस केसरी जी ने बड़े धैर्य के साथ मुझे बताया।

विदेह ( मैथिली की पाक्षिक ई पत्रिका) ने आज इस पक्ष का अपना अंक बाल गजल पर केन्द्रित किया हैं |

... आज मैथिली गजल जिस जगह पर हैं उसका बहुत कुछ श्रेय कुँअर बेचैन, पंकज सुबीर, गौतम राजरिषी, तिलक राज जी, गणेश जी बागी, सौरभ पांडेय और अन्यान्य मनीषीयों को जाता है क्योंकि गजल का जो कुछ भी सीखा वह इन्हीं लोगों से सीखा और उसे मैने मैथिली के अन्य गजलकारों में बाँट दिया।

सभी को सादर आभार प्रगट किया जाता है।

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भाई आशीष अन्चिन्हारजी,

जिस समाज का बालसाहित्य उन्नत होता है और समय के साथ सकारात्मक रूप से परिवर्तित और परिवर्धित होता जाता है, उस समाज की वैचारिक गरिमा तथा उसका सांस्कृतिक इतिहास ही केवल समुन्नत नहीं होता जाता बल्कि आने वाली पीढ़ियाँ भावनाओं और वैचारिक रूप से सुदृढ़ होती जाती हैं. किसी समाज का भविष्य उस समाज के बालसाहित्य को देख कर जाना जा सकता है.

इस क्षेत्र में आपकी एकाकी तपस्या ने मिथिलांचल के कितने स्थापित और ऊर्जस्वी रचनकारों को प्रभावित किया है इसका सटीक उत्तर ’विदेह’ से मिला. अभिभूत हो कर आपकी प्रबल साधना के लिये, साथ ही साथ, मैथिलभाषी रचनाधर्मियों को ’बाल-गज़ल’ के प्रति वैचारिक ही नहीं सक्रिय रूप से उत्प्रेरित करने के लिये आपके प्रति हार्दिक रूप से आभारी होने के साथ-साथ आपको हार्दिक धन्यवाद भी कह रहा हूँ. जिस उत्फुल्लता और उत्साह से मिथिलांचल में ’बाल-ग़ज़ल’ की अवधारणा को स्वीकृति मिली है और जिस तरह से ग़ज़लें कही गयीं हैं या अन्य उच्च रचनाएँ प्रसूत हुई हैं कि मिथिलावासियों (पाठकों) के सद्भाग्य पर मुझे गर्व होता है.

आपको पुनः धन्यवाद कहते हुए मिथिलाभाषा की सर्वोन्नति के लिये विश्वास अभिव्यक्त कर रहा हूँ.  ओबीओ का प्रस्तुत मंच आपके इस सद्प्रयास में कदम-दर-कदम सहभागी है.

सादर

आप मैथली ग़ज़ल के लिए जो कार्य कर रहे हैं वह आने वाले समय में वैसे ही सराहा जायेगा जैसे हिन्दी ग़ज़ल के लिए दुष्यंत त्यागी जी के कार्यों को याद किया जाता है

बधाई एंव आभार

धन्यवाद आप सभी का। यह तो आप लोगों के सहयोग से ही हुआ है।

आशीष जी, बाल ग़ज़ल की अवधारणा को हिन्दी ग़ज़ल के क्षेत्र में भी प्रयोग के रूप में अपनाया गया है और यह प्रयोग सफल भी रहा है

सफल इन मायनों में कि भारत के कई नामचीन शायर बाल ग़ज़ल लिख रहे हैं और इसके विस्तार के लिए प्रयत्न शील हैं
हिन्दी में बाल ग़ज़ल लिखने का सिलसिला बाल साहित्यकार श्री निरंकार देव सेवक से आरम्भ हुआ है
यदि आप रोहिताश्व अस्थान की पुस्तक हिन्दी ग़ज़ल -'उद्भव और विकास'  पढ़े तो आपको उसमें बाल ग़ज़ल पर ८ पेज का एक  अच्छा खासा लेख पढ़ने को मिलेगा जिससे स्पष्ट होता है कि बाल ग़ज़ल को हिन्दी ग़ज़लकारों में किस रूप में स्वीकार किया है 


पुस्तक विवरण
हिन्दी ग़ज़ल -'उद्भव और विकास'
(ग़ज़ल आलोचना)
रोहिताश्व अस्थान
सुनील साहित्य सदन, दरियागंज, दिल्ली
मूल्य ६३० रुपये

धन्यवाद इस अमूल्य ज्ञान को बाँटने के लिये।

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