तुलसी दास जी ने बिल्कुल सत्य लिखा है ,---
कथनी करनी भिन्न जहाँ हैं ,
धर्म नहीं पाखंड वहाँ है ।
'देखने मे आता है कि ,लोगों की कथनी कुछ और है करनी कुछ और ,ऐसी ही एक प्रथा है ,दहेज प्रथा जिसके परिणाम स्वरुप ना जाने कितनी अबलाओं ने दम तोड़ दिया है। कितनी बेवस लाचार बन कर रह गयी हैं।
इस प्रथा को जनम कोई नहीं देता बल्कि हम सब इसके लिये जिम्मेदार हैं ,बाकया यह हुआ कि मै एक दिन अपने घर के बाहर लेट रहा था कि तभी एक अध्यापक आए जो प्राइवेट स्कूल मे पढाते थे मैने उनका स्वागत किया और चाय-पानी की, बात होती रहीं उन्होने मुझसे कहा कोई लड़का बताओ जो सरकारी नौकरी पर लगा हो, घर बार अच्छा हो और दहेज प्रथा के विरुद्ध हो,हम भी इस प्रथा के विरुद्ध हैं हमारे पास तो दुल्हन ही दहेज है।
मैने कहा ठीक है, जी बताऊंगा । कुछ दिन बाद उनकी लड़की की शादी एक छोटे से किसान परिवार मे हो गयी,दिन ज्यो -ज्यो बीते फिर मास्टर जी एक दिन हमारे घर आये और कहा कि तुमने कोई लड़का तो बताया नहीं ,लड़की की शादी तो हमने कर दी अब हमारा लड़का सरकारी स्कूल मे लग गया है कोई रहीस से घर की लड़की बताओ जो धन ,धान्य लेकर घर मे प्रवेश करे, मै अचंबे मे रह गया और बोला , मास्टर जी आप तो दहेज विरोधी हो फिर आप ऐसी सोच क्यों रखते हो किसी गरीब सी कन्या देखकर अपने पुत्र का विवाह कीजिये।
इतनी बात सुनकर मास्टर जी खडे हो गये और बोले यार मै तो तुमसे इसलिये कह रहा था कि तुम्हारी समाज मे अच्छी जान पहचान है ,कोई अच्छा रिश्ता लाओगे ,मालदार आसामी, चलता हूँ कहकर मास्टर जी चल दिये।
सब लोग हँसने लगे, देखो मास्टर जी को जिनकी कथनी कुछ और है करनी कुछ और बहुत खूब मास्टर जी , आप जैसे लोग ही तो है जो समाज को आइना दिखाकर पत्थर मारते हैं।
सच मे आज ये शब्द सच से लगते है कि "जब आप हमारे घर आओगे तो क्या लाओगे और जब हम तुम्हारे घर आयेंगे तो क्या खिलाओगे" इसी प्रकार रिश्बतखोरी और भ्रष्टाचार है, जिनको आइना दिखाकर पत्थर मारा जा रहा है । किसी ने कहा है ,"खुद को सुधार लो ,जग तो स्वम ही सुधर जायेगा "
आशा है सुधिजन मेरे इस आलेख से सहमत होंगे इसी कामना के साथ ,,,
डॉo हिमांशु शर्मा (आगोश)
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