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प्रिय साथियो ,

बच्चों की अनगिन बातें और उनके मन में उठते हज़ारों सवाल ! जिन्हें सुलझा पाना आसान नहीं.. आज के इस प्रतिस्पर्धा के तकनीकी युग में बच्चों की आवश्यकताएं उनके सवाल भी बदले हैं, जिन्हें आधुनिक सोच के साथ ही समझा-बूझा जा सकता है फिर भी हर किसी का उसे सुलझाने का अंदाज़ भी निराला ही होता है .

बाल साहित्य समूह की संचालिका के नाते मैं प्रस्तुत कर रही हूँ ‘एक अधूरी कहानी’ जिसे आप सबको पूरा करना है अपने-अपने शब्दों में, एक नवीनता के साथ.....

डॉ० प्राची 

संचालिका बाल साहित्य समूह 

प्रस्तुत है कहानी......

देव अब आठ साल का हो गया था. उसे अपना नया स्कूल बहुत पसंद था. खुश हो कर टाइमटेबल देखता और बस्ता लगाता, स्पोर्ट्स के पीरियड के दिन तो उसकी खुशी का ठिकाना ही न रहता.. ट्रैक सूट पहन , स्पोर्ट शूज़ की लेसेज कस, सुबह माँ कुछ कहे उससे पहले ही तैयार हो जाता.

स्कूल में खेल का बड़ा सा मैदान, स्टेडियम की तरह चारों ओर बैठने वाली सीढ़ियाँ, क्रिकेट पिच, बास्केट बौल और बैटमिंटन कोर्ट, बड़ा सा स्वीमिंग पूल, आदि आदि थे. स्पोर्ट्स रूम तो तरह तरह के स्पोर्ट्स के सामानों से भरा हुआ था.. ढेर सारे बेस बौल के बल्ले, हॉकी स्टिक्स, क्रिकेट किट्स, बास्केट बौल, फुट बौल, बोक्सिंग ग्लब्स आदि ढेर सारी चीजें थीं.

सबसे बड़ी बात तो उसे अपने स्पोर्ट्स के सर बहुत पसंद थे, जो उन्हें हर खेल के बारे में नयी नयी जानकारियाँ देते थे , मैदान में ले जा कर खेल की बारीकियां सिखाते थे.

चाहे इनडोर गेम्स, कैरम बोर्ड हो या चैस, या फिर आउट डोर गेम्स क्रिकेट हो या बेस बौल.. देव हमेशा ही सबसे आगे रहता और हर कम्पीटीशन में उसकी ही टीम जीतती. लेकिन देव को क्रिकेट सबसे ज्यादा पसंद था, वो कभी बौलिंग के अलग अलग स्टाइलस की प्रेक्टिस करते रहता तो कभी बैटिंग की अलग अलग पोजीशन्स की.. यहाँ तक कि फील्डिंग के लिए भी वो बहुत प्रेक्टिस करता... उसने तय कर लिया था कि ‘उसे तो बड़ा होकर एक क्रिकेटर ही बनना है और नेशनल टीम को रीप्रेसेंट करना है.’

वैसे तो देव पढाई में बहुत अच्छा था क्योंकि उसके टीचर्स भी नए नए तरीकों से पढ़ाते थे और उसकी माँ भी बहुत ध्यान देती थी उसकी पढाई पर, लेकिन उसे पढ़ना लिखना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था. अक्सर अपनी माँ से  पूछता, कि क्रिकेटर बनने के लिए तो खेलना ज़रूरी है.. आप मुझे मैथ्स क्यों कराती हो ये डिवीज़न के लेंग्वेज सम्स- ये क्रिकेटर बनने के लिए कैसे ज़रूरी हैं, ये इंग्लिश क्यों पढाती हों – अब ये माई स्कूल और माई लाइब्रेरी पर एस्से का क्रिकेट से क्या लेना देना और हिन्दी की संज्ञा सर्वनाम क्रिया विशेषण का क्या काम, और तो और कम्प्यूटर के पेंटब्रश, वर्ड इन्हें सीखना तो क्रिकेटर बनने के लिए बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं है.

माँ नें देव को प्यार से अपने पास बैठाया और.......

इस कहानी को आप अपने शब्दों में पूरा कीजिए और नीचे बने रिप्लाई बॉक्स में ही पोस्ट कर दीजिए... 

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Replies to This Discussion

आदरणीय बृजेश जी आपका हार्दिक आभार ।

आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेई जी,

इस अधूरी कहानी के आगे के भाग ले किये आपका हार्दिक स्वागत है.

आपने तो सचिन और अनिल कुंबले जैसे क्रिकेट धुरंधरों के उदाहरण से बच्चे के मन में शिक्षा के प्रति निष्ठा के बीज रोपने का प्रयास किया है... इस सकारात्मक प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई. 

सादर शुभकामनाएँ 

आदरणीया प्राची जी आपकी शुभकामनायें शिरोधार्य है , इस प्रकार के  आयोजन की पहल के लिए आपको भी शुभकामनायें ।  

बहुत ही सुंदर आयोजन! कहानी बहुत ही सुन्दर है. इस कथा का अंत देखना बहुत ही सुखद होगा. देखें कितने तरह के अंत आते हैं.

इस अनोखी पहल के लिए आदरणीया प्राची जी का साधुवाद! इस तरह की पहल से समूह में सक्रियता बढ़ती है जो बढ़ रही है. जिस उत्साह के साथ सदस्यों ने इस प्रयास में सहभागिता देनी प्रारभ की है, वो प्रशंसनीय है. सभी को हार्दिक बधाई!

आदरणीय बृजेश जी,

इस 'अधूरी कहानी को पूरा कीजिये' के कंसेप्ट को मंच पर आपका समर्थन मिलना उत्साहवर्धक है.. इस तरह के आयोजन जिसमें एक आधार दिया रहता है उसी पर अपनी सोच को शब्द देते हुए आगे बढ़ाना होता है...विशुद्ध पाठकों को भी कलम उठाने के लिए प्रेरित करते हैं.

बच्चों के लिए लिखे जाने के विषय बहुत व्यापक हैं पर बच्चों के लिए रुचिकर शैली में लेखन को निभाना एक चुनौती सा होता है...

देखते हैं कैसे कैसे कहानी बढ़ती है आगे...और क्या क्या अंत मिलते हैं इसे.

सादर.

kaha dekho beta yah sach ha ki cricketer banane ke liye padhne se jyada jaroori cricket ki practice karna ha par ek achcha insan banne ke liye ushka padha likh hona bhi jaroori ha. tumne dekha ha Ravi Shashtri aur Gavaskar  kitni achchi English bolte ha. ve videsho mein bhi apne desh ko apne gyan dwara hi represent karte ha. atah khelne ke sath sath padhna bhi utna hi jaroorti ha. padh likhkar hi tum apne papa jaise achche insan ban sakoge aur duniya tumhe na kewal tumhare khel se janegi balki tumhare gyan aur usase bane vyaktitava ke karan bhi janegi aur pahchanegi tab tumn ek kamyab insan kahlaoge.  Dev ko ma ki bat kuch kuch samajh mein aayee aur vah usi din se cricket ke sath hi sath padhne mein bhi man lagane laga.

आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ,

बाल साहित्य समूह की इस "अधूरी कहानी को पूरा कीजिये" में आपका स्वागत है..

आपने माँ के पात्र के माध्यम से बच्चों को बहुत ही व्यवहारिक नज़रिए से समझाते हुए कहानी को दिशा दी है... खेल के हुनर के साथ साथ ज्ञान की महत्वता व ज्ञान का ही व्यक्तित्व निर्माण और कामयाबी का आधार होना सुन्दर सन्देश है..छोटे बच्चे अपने पिता जैसा ही बनना चाहते हैं और पिता ही उनके आदर्श होते हैं, सो 'पिता जैसे अच्छे इंसान बन सकोगे' ऐसी बातें बच्चों में मन में अनायास ही संस्कार के बीज रोपती हैं ..

इस ख़ूबसूरती से कहानी को पूरा करने के लिए बहुत बहुत बधाई.

विशेष* : मंच पर ही देवनागिरि लिपि में लिखने के लिए दो साधन दाहिने कॉलम में दिए गए हैं ..गूगल ime डाऊनलोड करके भी देवनागिरि में लिखा जा सकता है.

सादर.

आदरणीया प्राची जी,

बाल साहित्य का सार्थक प्रयोजन! यह एक ऐसी कहानी है जो हर घर, हर माँ व हर बच्चे की कहानी है|

इस कहानी का अंत अरुन जी ने बहुत ही सुन्दर तरीके से दिखाया है| इतना बढ़िया समापन तो शायद ही कोई दूसरा मिले, पर मैं कोशिश ज़रूर करना चाहती हूँ|

 

आदरणीया ऊषा तनेजा जी 

बाल साहित्य समूह में यह कोशिश आपको सार्थक लगी..इस अनुमोदन पर आपका हार्दिक धन्यवाद.

इस कहानी को पूरा करने की कोशिश अवश्य करें ...आपका स्वागत है..

सादर.

धन्यवाद आदरणीया प्राची जी, यह कहानी मैंने अपने बड़े हो चुके बेटे से डिस्कस की जो खुद ऐसी ही बातें करता था| उसका जवाब बिलकुल वही निकला जो अरुन जी ने सुझाया है|

अब, मैंने एक अध्यापक होने के नाते एक दूसरा सुझाव निकाला है कि अगर बच्चों से सम्बंधित किसी समस्या का हल ढूँढना हो तो वही समस्या उनके सामने पेश कर दो और उन्हीं से ही हल निकलवाया जाये तो अधिक कारगर होता है| 

//अगर बच्चों से सम्बंधित किसी समस्या का हल ढूँढना हो तो वही समस्या उनके सामने पेश कर दो और उन्हीं से ही हल निकलवाया जाये तो अधिक कारगर होता है//

बहुत सार्थक सकारात्मक और व्यवहारिक रवैया है ये...और बच्चे अपने बाल मन के अनुरूप स्वतः ही निश्छलता से सही हल निकाल भी पाते हैं..और इससे आत्मविश्वास भी पैदा होता है.

अध्यापन सम्बंधित किसी भी कार्य को सम्पन्न करने के तरीके की मौलिकता और रचनात्मकता किसी भी शिक्षक को ख़ास बना देती है....

आपके सद्प्रयास के लिए हार्दिक साधुवाद आदरणीया ऊषा जी 

और...

कहा बेटा “तुम कह तो सही रहे हो| चलो इस बारे में बाद में फिर कभी सोचेंगें| आओ अब मंदिर चलें|”

दोनों मंदिर पहुँच गए| मंदिर में ज्यादा भीड़ नहीं थी| वे श्री कृष्ण जी की मूर्ति के आगे बैठ गए| देव को श्री कृष्ण जी बहुत अच्छे लगते थे| वह मूर्ति को बड़े ध्यान व चाव से देख रहा था| तभी माँ ने उससे कहा बेटा, “इसमें क्या ख़ास बात है? यह तो केवल एक पत्थर का टुकड़ा है|”

देव ने नाराज़ होते हुए कहा, “नहीं माँ, आप मेरे कान्हा जी के बारे में ऐसा मत कहो|”

“क्यों?”

“सबसे बड़ी बात तो यह है कि ये भगवान हैं|” देव ने माँ को समझाते हुए कहा|

“हाँ ठीक है| पर क्या बाहर पड़ा हुआ पत्थर भी भगवान है?” माँ ने हैरानी से पूछा|

“नहीं माँ, वो पत्थर देखने में इतना सुन्दर तो नहीं लगता| यहाँ देखो, भगवान् की आँखें, नाक, गाल, होंठ, हाथ और मुस्कराहट! मुझे तो ऐसा लगता है कि भगवान् मुझे बुला कर मुझसे बातें कर रहे हैं| इसके बाद उनकी बाँसुरी, उनके वस्त्र व गहने आदि सभी उनको बहुत सुन्दर व आकर्षक बनाते हैं|”

“अच्छा! तो इसका मतलब तो यह हुआ कि एक आम पत्थर को किसी ने भगवान बना दिया है”, माँ ने नकली जिज्ञासा दिखाते हुए कहा|

“हाँ माँ, आपने ही तो एक बार बताया था कि पत्थर को मूर्तिकार तराश कर तथा पुजारी जी उसे सजा कर इतना सुन्दर बना देते हैं है कि वही पत्थर हमें पूजनीय लगने लगता है” देव ने माँ को याद दिलाते हुए कहा|

“हाँ! हाँ! याद आया| अब इसके साथ एक बात और भी याद आई कि अगर तुम भी केवल क्रिकेटर बन जाओ और हम माता-पिता व तुम्हारे अध्यापक इंग्लिश, हिंदी, मैथ्स व साइंस के बेसिक सब्जेक्ट्स से तुम्हें न तराशें या तुम खुद न चाहो कि कोई तुम्हें तराशे तो तुम केवल एक आम पत्थर की तरह रह जाओगे जो क्रिकेट तो खेलेगा पर समाज में प्रतिष्ठा पाना मुश्किल है|”

“क्या तुम नहीं चाहते कि लोग तुम्हें एक क्रिकेटर के साथ साथ प्यार व आदर भी दें?” माँ ने देव के चेहरे पर बदलते हुए भावों को गौर से देखते हुए पूछा जो घर चलने की जल्दी में था|

माँ ने रोकते हुए कहा, “अभी चलते हैं बेटा| इतनी भी क्या जल्दी है?”

“माँ मुझे अपना होमवर्क भी तो पूरा करना है”, देव ने जल्दी का कारण बताया तो माँ भी उठ कर चल पड़ी देव का हाथ पकड़कर|

  

  

 

 

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