क्या ये सच है ?
ऐसा लगता तों नहीं।
बहुत बीमार हैं ?
अरे नही , ईश्वर जल्द स्वस्थ करे.. ईश्वर से प्रार्थना।
हमारे बीच नहीं रहे----------
तेरा मेरा साथ --एक अधूरा सफर - आदरणीय अलबेला खत्री जी
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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 30, 2012 at 3:03pm
आदरणीय अलबेला जी, सादर
उस घड़ी मत रोकना "अलबेला" को
जब लबों पर हो तराना प्यार का --------------अलबेला जी
कतई नहीं रोकेंगे , हम भी प्यार का तराना साथ साथ गायेंगे. बधाई - कुशवाहा
Comment by Albela Khatri on May 30, 2012 at 3:17pm
आपका हार्दिक धन्यवाद प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी,
हम प्यार का तराना गायेंगे साथ साथ
मौसम-ए-आशिकाना लाएंगे साथ साथ
जय हो आपकी......बहुत बहुत शुक्रिया
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विशाल दिल वाला.
साहित्य ,संगीत और सामजिकता की हर विधा का पारंगत ---
Comment by Albela Khatri on May 31, 2012 at 12:56pm
सादर प्रणाम श्रीमान सौरभ पाण्डेय जी,
आपके माध्यम से मैं सर्वप्रथम तो सभी वरिष्ठ विद्वान मित्रों से यह विनम्र निवेदन करना चाहता हूँ कि कृपया मुझे केवल अलबेला या ज़्यादा से ज़्यादा अलबेला खत्री ही कहें, क्योंकि जिस प्रकार से आप प्रेम और लगाव के वशीभूत हो कर मुझ जैसे नौसिखिये को सम्मानजनक संबोधन से नवाज़ते हैं वो लगते बहुत अच्छे हैं पर मैं अभी उनके काबिल नहीं हूँ . अभी नया नया रंगरूट हूँ और आपकी महफ़िल में एक विद्यार्थी की तरह हाज़िर रहना चाहता हूँ .
मैं यहाँ सीखने आया हूँ इसलिए आप मेरी पीठ थपथपाने के बजाय मेरी खाल उधेड़ेंगे तो मेरा ज़्यादा फायदा होगा . जब भी आपको लगे कि मैं यहाँ गलत हूँ कृपया मुझे बताएं ताकि वही भूल दोबारा न हो.
आपके स्नेह के लिए कृतज्ञ हूँ.........सादर
Comment by Saurabh Pandey on May 31, 2012 at 1:44pm
भाई अलबेलाजी, आप आश्वस्त रहें. इस खाल उधेड़ने की प्रक्रिया में हम ओबिओ वाले सिद्धहस्त हैं. इससे कोई बच भी नहीं पाता. :-)))
लेकिन इस खाल उधेड़ू प्रक्रिया का उद्येश्य सकारात्मक हुआ करता है. न कि किसी की हिनाई होती है. भाई, अभी तक तो यही परंपरा रही है कि ओबिओ मंच पर कोई नाम नहीं बल्कि एक रचना ही बोले. स्तर के अनुसार ही किसी रचना का नीर-क्षीर होता है.
आप मंच पर बने रहे, सारा कुछ स्वयं स्पष्ट होता जायेगा. आपकी उत्फुल्ल उपस्थिति हम सभी के लिये प्रसन्नता का कारण बनी है.
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साहसी -----
Comment by Albela Khatri on June 2, 2012 at 9:14am
गम्भीर मुद्दों पर लिखने का मतलब ये तो नहीं आदरणीया राजेश कुमारी जी कि लेखक भी गम्भीर ही हो जाये....और लेखक हों तो हों...अपन जैसा मसखरा क्यों गम्भीर हो भाई ? व्यंग्य का मज़ा ही तब है जब आँखों के आँसू भी थोड़ी देर के लिए मुस्कुरा दे.......हा हा हा
बहरहाल आपकी सराहना अच्छी लगी. शुक्रिया दिल में है, लफ़्ज़ों में नहीं उतारूंगा
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 2, 2012 at 5:35pm
आदरणीय अलबेला जी
आपको परोडी हेतु बड़ी बड़ी बधाई
रोते हुए लोगों को हँसने की राह दिखाई
बेरोजगार रह कर कितनी तकलीफ उठाई
कर लेते गर शादी रोजगार मिल न जाता
खाली मूली जीवन की अनमोल घड़ियाँ
कहीं न कहीं तार जुड न जाता
बाबा को मिलता पोता सास को अदद बहु
आमिर का सत्य मेव जयते एकता का सिरिअल
माथे पर गहरा पसीना एक साथ आता
आगे फिर कभी. जाइयेगा नहीं
ब्रेक के बाद
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बाबा जी---- दोहा छंद कह मुकरियाँ गीत हो या गजल ---बाबा जी का प्रयोग जम कर किया।
Albela Khatri on June 24, 2012 at 6:47pm
जय हो श्री प्रदीप बाबा की ...
तो ऐसा रचया है छा गया वसंत बाबा जी
दर्शन सारे करा दिए कौन जाए कशी वाशी काबा जी
बाबाओं के चर्चे आम हुए थे कौड़ी के अब बेदाम हुए
महलों में प्रवचन करते थे जंगल में धूनी लगाएं बाबा जी
बधाई.
इसे भी अखबार में छपवा दें नहीं तो हमें बनवा दें बाबा जी
Comment by Albela Khatri on June 5, 2012 at 5:30pm
धन्य हो प्रदीप जी,
आपकी टिप्पणी ने तो आनन्द करा दिया ........जय हो !
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बाबा जी को पेटेन्ट करा लो
घर पीछे टेंट एक लगा लो
महंगायी बन छा जायेंगे
ओ.बी.ओ. सहित आ जायेंगे
आपको फिर कमी न लगेगी
कविताओं की कली खिलेगी
आपकी नक़ल करने लगा हूँ
अकड के चलने मैं लगा हूँ
अलबेला जी हैं मेरे संग
देख रह गए लोग दंग
कहते हैं परिचय करवा दो
हम सब को भी मिलवा दो
मैं बोला कवि बन जाओ
बढ़िया कविता उन्हें सुनाओ
मिलने कि आ जायेगी बेला
सुन्दर सहज है अलबेला
बधाई.
आपकी तर्ज पर बाबा जी मेने है लिखी
न जाने क्यूँ न आप की द्रष्टि पडी
सादर आदरणीय अलबेला जी
Comment by Albela Khatri on June 14, 2012 at 12:25pm
वाह जी वाह प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी, आप तो कमाल पे कमाल किये जा रहे हो....अपने स्नेह से मालामाल किये जा रहे हो....बाबाजी आपके बहुत आभारी हैं.....हा हा हा हा
सादर
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ख़ून न चूसें, कह दो खादी वालों से
प्यासे हैं तो चूस लें गन्ना बाबाजी----अलबेला जी
तुकबंदी को भी सराहते हुए---
गन्ना से गुड है बनता गुड से बनती चीनी
चीन पाकिस्तान एक से भैया जनता बड़ी कमीनी
एक तो अपने ही भाई दूजे न क्या दोस्ती निभाई
छुरा घोपते पीठ पीछे गाते हिंदी चीनी भाई भाई
मैं प्रदीप आप अलबेला खूब लिखते भाई
देता हूँ इस रचना पर लंबी चौड़ी बधाई --कुशवाहा
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गम की बेला --दुखी अलबेला
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हाय पहले जगजीत, गये अब मेहदी भी
किसने चिट्ठी भिजवाई है बाबाजी
अल्लाह ताला उनको जन्नत अता करे
दुआ यही लब पर आई है बाबाजी
कैसे कहूँ 'अलविदा' उसे मैं 'अलबेला'
वाणी मेरी भर्राई है बाबाजी ---अलबेला जी
आदरणीय अलबेला जी, सादर अभिवादन
निश्चय ही ये अपूरणीय क्षति है. दुःख की बेला है. जीवन का ये खेला . चले जाते दूर हमसे लोग रह जाते हैं हम लेने जीवन का भोग स्थूल तो रहता नहीं कभी सूक्ष्म में जीवन पाते हैं लोग . उनकी कृतियाँ हमें उनकी याद दिलाएंगी खट्टी मीठी यादें कभी हसायेंगी तो कभी रुलायेंगी . भगवान उनकी आत्मा को परम शांति प्रदान करे. ये हमारी प्रार्थना है.---कुशवाहा
Comment by Albela Khatri on June 14, 2012 at 12:27pm
जी प्रदीप जी,
आपने सही फरमाया
सादर
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वृद्धों की फ़िक्र ----
पत्नी ख़ुश है क्योंकि बूढ़े पापा की
घर के बाहर खाट लगादी बाबाजी--अलबेला जी
आदरणीय अलबेला जी, सादर अभिवादन
एक से बढ़ के एक , बधाई.
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वंश को बढ़ाना हो तो,
देश को बचाना हो तो,
भ्रूणहत्या रोक कर, बेटी को बचाइये --अलबेला जी
आवाज दो तुम कहाँ हो
पुकारता सिपाही हिंद का
नारी करे नारी का अपमान
हत्या करती अपने अंश का
कैसे बढ़ेगा तुम्हरा वंश
बेटी झेल रही सर्प दश
बधाई आपको अलबेला
जागृति का मन्त्र ठेला --कुशवाहा
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इसी तर्ज पर मैने भी रचना लिखी-----
तुम भी खाओ, हम भी खायें बाबाजी
आओ, मिल कर देश चबायें बाबाजी
राजनीति में किसी तरह घुस जाएँ तो
जीवन भर आनन्द मनायें बाबाजी --अलबेला जी
आदरणीय अलबेला खत्री जी, सादर अभिवादन
आपकी रचना देख कर मैं आपकी नक़ल कर रहा हूँ. एक फिर लिख दी है. अनुमोदन पोस्ट को मिलेगा तो ठीक नहीं तो आपकी वाल पर पोस्ट कर दूंगा .रचना के बारे में क्या कहना अनुकरणीय है मेरे लिए.
बधाई.
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आदरणीय अलबेला जी के विदेश भ्रमण पर जाने पर ----
आदरणीय अलबेला जी, सादर अभिवादन.
आपकी गतिविधि मोबाइल पर मिल रही है. आपसे दूरी खाल रही है लगा रहा हूँ कई दिनों से पी.जी.आई के चक्कर डाक्टरों को दिल गुर्दे की दूरी मिल नहीं रही है , ठीक होते हि जमेगी महफ़िल अगर आप बंदे को समझते हैं अपने काबिल . स्नेह हेतु आभार
आदरणीय प्रदीप जी......कहाँ थे अब तक
बहुत विलम्ब से आये........
प्रतीक्षा कर रहा था मैं आपके कमेन्ट की.........
___आपकी टिप्पणी सर आँखों पर जनाब !
जाना था हमसे दूर बहाने बना लिए
लौट के आजा मेरे मीत
तुझे मेरे गीत बुलाते हैं
सुना पड़ा ओ.बी.ओ.
काहे बाबा जी रुलाते हैं --कुशवाहा
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चिंता ------------
प्यासा प्यासा तरसा तरसा
सावन में भी तनिक न सरसा
ताक रहा है मेघ मुहूरत
क्या सखि साजन ?
नहिं सखि सूरत ----अलबेला जी
सब जगह गरज रहे
सब जगह बरस रहे
मेघ ममता की moorat
aap कोई करो उपाय
प्यासा न रहे सूरत.
बधाई.---------- कुशवाहा
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सरल स्वभाव ------विनम्रता
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ओपन बुक्स ऑन लाइन ने दी अलबेला खत्री को एक साथ दो सौगात
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Posted by Albela Khatri on August 16, 2012 at 9:30pmSend Message View Blog
digg
मेरे प्यारे मित्रो ! आपको यह जानकार ख़ुशी होगी कि "ओपन बुक्सऑन लाइन" द्वारा आयोजित "चित्र से काव्य तक " प्रतियोगिता में मेरी प्रविष्टि को प्रथम पुरस्कार मिला है . साथ ही "ओपन बुक्स ऑन लाइन" द्वारा मुझे जुलाई 2012 के लिए महीने का सक्रिय सदस्य घोषित करके पुरस्कृत किया गया है . आज ही प्रमाण-पत्र और रुपये 2100 का ड्राफ्ट प्राप्त हुआ है . इस ख़ुश खबर को आपके साथ सांझा कर रहा हूँ......आपकी दुआ से आज मैं ख़ूब प्रसन्न हूँ.....
दो दो पुरस्कार एक साथ मिलने की बात ही अलग है मित्रो..........और मेरे लिए ये इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि मेरा नहीं, लेखनी का सम्मान हुआ है |
जैसा कि मैंने पहले भी बताया था कि ओपन बुक्स ऑन लाइन एक ऐसी साहित्यिक साईट है जहाँ कविता सिखाई जाती है और सीखी जाती है . आत्ममुग्ध लोगों के लिए तो कदाचित वहाँ कुछ नहीं है . परन्तु जो लोग शब्द साधने को अपना पूजन -अर्चन समझते हैं उनके लिए यह जगह किसी तीर्थ से कम नहीं, जहाँ सर्वश्री सौरभ पाण्डेय, योगराज प्रभाकर, गणेश जी बागी, अम्बरीश श्रीवास्तव, संजय मिश्रा हबीब, राणा प्रताप सिंह और धरमेन्द्र कुमार सिंह जैसे दिग्गज साहित्यिक हस्ताक्षरों के सान्निध्य में विभिन्न उत्सव -महा उत्सव होते हैं और कविता के फूल खिलते हैं
नवोदित लोगों को तो यहाँ ज़रूर आना चाहिए....ऐसा मेरा अनुभव और मत है . बस एक शर्त है यहाँ टिके रहने के लिए..........सतत सृजन ! क्योंकि यहाँ केवल अप्रकाशित रचनाएं ही स्वीकृत होती हैं . तो जल्दी कीजिये और बन जाइए सदस्य obo के...............
जय ओ बी ओ
जय हिन्द !
आदरणीय गणेश जी,
जो है उसे स्वीकार करने में ही भलमानसहत है. नि:सन्देह ओ बी ओ से मैंने ऊर्जा पाई है. भले ही मैं इस क्षेत्र में नया नहीं हूँ.......लेकिन ओ बी ओ ने मुझे एहसास करा दिया कि मैं सचमुच नया नया रंगरूट हूँ और अभी बहुत कुछ जानना व समझना शेष है .
शब्दों के अथाह सागर से चार मोती चुरा कर कोई सुमाल ( रावण का नाना जो समुद्री लुटेरा था ) नहीं बन जाता . मुझे भी भ्रम था कि मैं कुछ हूँ..........परन्तु आपने दर्पण दिखा दिया ...मुझे इस बात का बड़ा आनन्द है भाईजी.........
आपने जो स्नेह व सम्मान दिया है वो मुझे याद रहेगा ........
सादर
यह सच है कि ओ बी ओ पर मैं जो भी लिखता हूँ, केवल लिखने के लिए ही लिखता हूँ.........परन्तु संयोग से अथवा देवकृपा से उसमे कुछ न कुछ ऐसा अवश्य आ जाता है जो कि पाठकों का प्यार पा लेता है . मुझे अफ़सोस है कि अपनी बेहतरीन रचनाएं मैं यहाँ नहीं दे सकूँगा क्योंकि अब तक जित्ता भी लिखा, सब का सब मेरे ब्लॉग पर पहले ही प्रकाशित हो चुका है . और यहाँ का नियम है कि अप्रकाशित होनी चाहिए रचना !
तो मैंने स्वयं को सक्रिय और सतत प्रवाहमान रखने के हेतु से ही यहाँ बाबाजी का अवतरण किया है..........परन्तु अब बाबाजी ने पैर जमा लिए हैं . उन पर किरपा आनी शुरू हो गयी है.
महामहिम, एक बात तो तय है कि जो चलता रहेगा वो कहीं न कहीं तो पहुंचेगा ही.................यही मैंने अनुभव किया है और यही मतलब आपके कथन का भी है.
__आपके स्नेह और आशीर्वाद का मैं ऋणी हूँ ....विनम्र आभारी हूँ
______जय हो !
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At 10:50am on July 16, 2012, PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA said…
आदरणीय अलबेला खत्री जी,
saadar अभिवादन.
माह का सक्रीय सदस्य चुने जाने हेतु बधाइयाँ.
आपकी सक्रियता हमें हमेशा प्रेरित करती रहे.
At 7:45pm on July 2, 2012,
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
आदरणीय अलबेला खत्री जी
सादर अभिवादन,
यह बताते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में आपकी सक्रियता को देखते हुए OBO प्रबंधन ने आपको "महीने का सक्रिय सदस्य" (Active Member of the Month) घोषित किया है, बधाई स्वीकार करे | कृपया अपना पता और नाम(जिस नाम से ड्राफ्ट/चेक निर्गत होगा) एडमिन ओ बी ओ को उनके इ मेल admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध करा दें |
हम सभी उम्मीद करते है कि आपका प्यार इसी तरह से पूरे OBO परिवार को सदैव मिलता रहेगा |
आपका
गणेश जी "बागी"
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन
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इतना विशाल व्यक्तित्व , कनवास में समां नही सकता
सहृदय सरल अलबेला खत्री को कोई और पा नहीं सकता
छमा के साथ विनम्र श्रधान्जली
आदरणीय अलबेला जी
विश्वाश नहीं होता
विनम्र श्रदांजली
भुलाना चाहे भी कोई ना तुम्हें भुला पायेगा
जो लिखा जो गाया आपने संसार भुला न पायेगा
सादर
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
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खुश रहिये
इंसान चले जाते हैं बस यादें ,बातें रह जाती हैं ,अभी भी विश्वास नहीं हो रहा कि अलबेला जी नहीं रहे ,मुझे याद आती है उनकी बात हमेशा कहते थे की राजेश जी आप मुझे ओबीओ पर लाई हो आपका हमेशा शुक्रगुजार रहूँगा ,दुःख है की ओबीओ पर दुबारा/वापिस नहीं ला सकती :(((
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