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अबतक के इस सफलतम आयोजन पर सर्वप्रथम संचालक महोदय को मेरी अनेकानेक शुभकामनाएँ.. हार्दिक बधाइयाँ.
समस्त सहयोगियों को मेरा शत्-शत् नमन.
इस तरह के आयोजनों की सफलता इस बात से भी आँकी जानी चाहिये कि आयोजन विशेष के माध्यम से निहित संदेश का सकारात्मक संप्रेषण हो पाया या हो पारहा है या नहीं. इस लिहाज से मैं पूरे विश्वास से उद्घोषित करता हूँ कि ओबीओ का अभिनव मंच वास्तव में नवोदितों को न केवल आकर्षित करने में बल्कि हिन्दी-साहित्य संस्कार हेतु उन्हें सकारात्मकतः उत्प्रेरित करने में भी सफल रहा है. मानसिकतः प्रौढ रचनाधर्मियों के लिये तो आकाश उपलब्ध है ही, उनके आलोकित आकाश में नवोदित अपने लिये विस्तार पा अपने आप में उत्फुल्लता और नवीन ऊर्जा-संचरण का भान करते हैं. किसी साहित्य-मंच की इससे बढ़ कर उपलब्धि और क्या हो सकती है! ओबीओ की सफलता इस बात से बहुगुणित हो जाती है कि अपने शैशवाकाल में ही इसने न केवल लोकप्रियता के लिहाज से बल्कि गंभीर सृजन के क्षेत्र में भी इसने अन्य मंचों के लिये ज्वाजल्यमान मानदण्ड स्थापित किये हैं.
प्रविष्टियों का या संप्रेषणों का आदान-प्रदान किसी प्रतियोगिता को रोचक तो बनाता ही है, इन परस्पर वार्त्तालाप से सभी प्रतिभागियों को अनायास जानने-सुनने-समझने को बहुत-कुछ मिल जाता है. सत्य के प्रति आग्रह, मान्य के प्रति स्वीकृति और असत्य के प्रति नकार ज्ञान-विन्दु हैं. इस प्रतियोगिता विशेष में भी इस सूत्र का अनुमोदन हुआ और भरपूर हुआ है. अग्रजों और अनुजों की एक मंच पर परस्पर सक्रियता और संचालक महोदय, प्रधान संपादक तथा समस्त कार्मिक सदस्यों का नम्र दिशा-निर्देशन इस सफलता में विशेष कड़ियाँ जोड़ गये हैं.
इस बार मेरी आंशिक उपस्थिति और इस आंशिकता के पीछे के समस्त भौतिक कारण मुझे लगातार कचोटते रहे और मैं निरुपाय बना रहा. इसका हार्दिक खेद है. मुझे गर्व है कि मैं आपके इस अभिनव मंच का हिस्सा स्वीकारा गया हूँ.
मेरे अनुज गणेशभाई की साहित्यिक उपलब्धि ’एकादशी’ पर मेरी अनेकानेक बधाइयाँ. माँ शारदे की कृपा सदा बनी रहे. और, आदरणीय योगराजभाई जी से सादर निवेदन कर रहा हूँ कि इस ’एकादशी’ की पंक्ति-मात्रायें गणेशभाईजी ने ३-५-३=११ रखा है. सही नहीं है न?
पुनः, इस ऐतिहासिक आयोजन हेतु मेरा साधुवाद.
आदरणीय योगराजभाईजी, आपने मुझे मान दिया.
आपकी व्यापक समीक्षा/विशद रिपोर्ट ओबीओ के पटल पर आयोजनों और प्रतियोगिताओं के समापन के उपरांत अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान हैं. हम आभारी हैं.
वाह,
आनंदम प्रतीतम
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