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ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 65 की समस्त रचनाएँ चिह्नित

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आदरणीय प्रमोद श्रीवास्तवजी, आपका सादर स्वागत है. 

बन पड़े तो पिछले आयोजनों को भी देख जाइये. आअको रचनाओं के साथ-साथ कई सार्थक चर्चाओं को पढ़ने का अवसर मिलेगा. और, सम्यक जानकारी भी मिलेगी.

सादर 

आदरणीय सौरभ भाई , कुछ दिनों से ओबी ओ साइत और नेट दोनो से परेशान रहा , इसलिये आयोजन मे सक्रिय सहयोग नही दे पाया । मंच से इस लिये माफी चाहता हूँ । मेरी रचना की सराहना के लिये सभी पाठक मित्रों का हार्दिक आभार मानता हूँ
चित्र से काव्य तक की सफलता के लिये आपको एवँ मंच के सभी प्रतिभागियों को हार्दिक बधाइयाँ
आदरनीय , देखिये भला शुतुर्गुर्बा अब तो नही है ? अगर अब सही हो तो कृपया अंतिम दोहे को इस दोहे से प्रतिस्थापित करने की कृपा करें ।
पहले पूछें राष्ट्र  से, दोषी इसका कौन
फिर समझें दोषी उसे, जो अब साधे मौन

जय हो ! आप और शुतुर्ग़ुर्बा ? कभी नहीं ! वो तो ऊँटवा अपनी आँख बन्द किया होगा और बिलरिया ऊछल-कूद मचा गयी थी ...

हा हा हा... .:-))

आदरणीय लगातार दौरे में होने के कारण और लम्बी-लम्बी मीटिंग के कारंण मैं भी मंच से दूर-दूर ही रह पा रहा हूँ. यह आपको पता ही है.

अभी रास्ते में ही हूँ और नेट की उपलब्धता के कारण सफ़र में समय का सदुपयोग कर रहा हूँ.

सादर

 

श्रद्धेय श्री सौरभ पांडेय जी, सादर नमन!
आदरणीय मार्गदर्शन के अनुसार ताटंक छन्द व दोहा छन्द में सुधार के लिए पुनः प्रयास किया है । आपसे विनम्र निवेदन है कि मेरी ताटंक छन्द व दोहा छन्द रचना में निम्न प्रकार से प्रतिस्थापित कर कृतार्थ करें :-
ताटंक छन्द :-
क ख ग घ की सूरत क्या होती, कौन मुझे बतलाएगा ।
त थ द ध की मूरत मेले में, कौन मुझे दिखलाएगा ।
के स्थान पर :-
कवर्ग की सूरत क्या होती, कौन मुझे बतलाएगा ।
तवर्ग की मूरत मेले में, कौन मुझे दिखलाएगा ।
इसी प्रकार दोहा छन्द में :-
तख्ती सलेट खो गई, गया ज्ञान आधार ।
के स्थान पर :-
तख्ती सलेट खो गये, चला गया आधार ।
तथा
निज भाषा मुंह मोड़कर, पर का करते गान ।
के स्थान पर :-
निज भाषा मुँह मोड़कर, करते पर का गान ।

आदरणीय आशा करता हूँ कि आप इसे यथासंभव प्रतिस्थापित करने की कृपा करेंगे । सादर ।

इस सम्यक प्रयास के लिए हार्दिक धन्यवाद व शुभकामनाएँ.  

यथा निवेदित तथा संशोधित 

आदरणीय श्री सौरभ पांडेय जी सादर आभार ।
आद. सौरभ जी,अंतिम प्रस्तुति मेरी थी। तो ऐसा तो नहीं कि अन्वेषण से रह गयी हो ? या लाल-हरी पंक्तियों की अनुपस्थिति से आत्ममुग्ध हो सकता हूँ। सादर

आदरणीय पवन मिश्र जी, आत्ममुग्ध होना या तदनुरूप सोचना इस मंच पर स्वयं के प्रति गाली की तरह लिया जाता है. क्यों कि इस मंच पर सदा से रचनाओं के परिप्रेक्ष्य में ही किसी रचनाकार को देखा जाता है. 

आपकी इस प्रस्तुति में प्रथम दृष्ट्या कुछ ऐसा नहीं दिखा, जिसे इंगित किया जाता. कमसेकम मुझे तो नहीं दिखा. इसे कोई मेरी कमसमझी भी कह सकता है. मुझे आपत्ति नहीं होगी, आदरणीय.. :-))

शुभेच्छाएँ

अरे ऐसा नहीं है आद. सौरभ जी। मैं अभी लेखन के प्रारंभिक काल में हूं। मुझे लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि अंतिम प्रस्तुति होने के कारण चिन्हित होने से रह गयी हो। आपके सुझाव अमूल्य होते हैं हमारे लिये

सुधीजनो ! मुझे नहीं मालूम, संकलित और संशोधित रचनाएँ कैसे डिलीट हो गयीं ! हतप्रभ हूँ. आज आखिरी बार आदरणीया अलका जी की रचना संशोधित हुई थी. अभी उन्होंने ही टिप्पणी कर यह सूचना दी है. कहीं यह किसी बड़ी तकनीकी समस्या की आहट है तो नहीं ?

आदरणीय श्री सौरभ पांडेय जी, सादर नमन! ओ बी ओ चित्र से काव्य छंदोत्सव अंक-65की सभी चिन्हित रचनाएँ गायब हैं।क्या उनको पुनः चिन्हित किया जाना है?
सादर ।

आदरणीय सुरेश कल्याण जी, इस अंक के संकलन की रचनाएँ कैसे ग़ायब हुई हैं, यह मेरे लिए भी आश्चर्य है. संकलित रचनाओं की कॉपी न होने से इनका दुबारा संकलन कष्टसाध्य ही है. अंक -66 की प्रस्तुत रचनाओं का संकलन आ गया है आप उक्त रचनाओं पर ध्यान केन्द्रित करें. 

सादर

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"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
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"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
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