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हाशिये की दौड़...
पंचायत सभा में रेवती दीदी का सम्मान महिलाओं के उत्थानपरक क्षेत्र में योगदान देने के लिए किया गया।उनके उत्कृष्ट कार्यो की सराहना करते हुये सरपंच महोदय ने कहा, 'रेवती दीदी ने घर-घर जाकर हम सबके घरों की औरतों में अलख की ज्योति जलायी और सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाकर अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया, हम सब उनकी मेहनत और लग्न के आभारी हैं।'
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच रेवती ने धन्यवाद देते हुये कहा, 'ये तो हमारी बहनों की मेहनत, लग्न का फल हैं जिन्होनें कुछ कर गुजरने की ठानी...अक्षरों को पहचानने और अपने औरत शब्द की महत्ता समझी।'
'अगर आपने हमारे अंदर की क्षमता को ना जगाया होता तो हम तो कूपमंडूक ही थे बस चूल्हे-चौके तक... ।'
'और नहीं तो का?देखों, आज दो अक्षर वांचने का फायदा...अब मुनीम हमें जितना हाथ में देवे करे उतने पर ही साईन करत हैं नही तो कछु देता था और कछु पर अगूंठा ठोके करे।'
'आज हमारे बने अचार,बड़ी,पापड़ बगैरह बाजार में बिकते हैं तो छोटे-मोटे खर्चा के लिए आदमी के सामने हाथ तो नहीं फैलाना पड़ता।'
'जो पहले विरोध करवे करत थे उन्हें भी समझ आ गई...हम औरतें भी घूंघट डालकर भी बहुत कुछ कर सकत हैं।'
'हमने तो सोच लई...अपनी बिटिया को तो रेवती दीदी जैसा ही बनावेगे,तबही हाथ पीले करेंगे।'
'सही कहत हो बहन!कोऊ आफत आन पड़े तो चिट्ठी-पत्री लिखकर बता तो देवेगी...!'
'दूर कायको जाबत हो...अपने सरपंच की विधवा बहू... अगर पढ़ी-लिखी होती तो काहेको दो जून रोटी के लिए नौकरानी सा जीवन जीवे करे।'
'अरे बहन!वो तो वा बहुरिया के साथ हम सबकी तकदीर अच्छी थी...सो रेवती दीदी, देवी बनकर आई,जिनने हम सबको जीना सिखाया..नहीं तो...।'
भीड़ में महिलाओं की आपस की खुसर-पुसर से बढ़ते शोर को सरपंच महोदय ने शांत करते हुये कहा, 'सही कहा बहनों...माताओं...आप सबने अहंकारी मर्दों की सोच को दरकिनार कर दिया,जो गाड़ी के एक पहिये को कमतर आंकते हैं। '
रेवती को स्मरण हो आया जब यही सरपंच महोदय अपनी अहंकारी सोच के कारण उसके विरोध में दीवार बनकर खड़े हो गये थे।लेकिन उसने भी हार नहीं मानी...आत्मविश्वास से भरी महिलाओं की ओर देखकर मन-ही-मन सोचने लगी...आखिर ये आधी आबादी की पूरक जो हैं।
स्वरचित व अप्रकाशित हैं।
बबीता गुप्ता
आ. बबीता जी, सादर अभिवादन। सुन्दर रचना हुई है ।हार्दिक बधाई।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
सादर नमस्कार। गाड़ी के उपेक्षित अनिवार्य पहिए को उसकी महत्ता बता कर एक्टिवेट करतीव कराती बहुत ही प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता गुप्ता जी। शीर्षक भी बढ़िया हैऔर क्षेत्रीय भाषा संवाद भी।
अपरिहार्य कारणों से विलंब हुआ गोष्ठी से लाभ लेने में।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
गोष्ठी का आरंभ एक सशक्त रचना से करने के लिये हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता जी। नारी को कम आँकने के दिन लद गये। वो हर दौड़ में पुरुषों के बराबर खड़ी है।
सही कहा,अब वो अबला नही, सक्षम हैं ।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
आदाब। विषयांतर्गत संस्मरणात्मक शैली में बहुत ही भावपूर्ण, प्रेरक व उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई जनाब अतुल सक्सेना साहिब। ईमोजी व लिंक से परहेज़ करने का नियम भी है यहाँ। फ़्लैशबैक का बढ़िया इस्तेमाल हुआ है, इसलिए लगता है कि कालखण्ड दोष से रचना बच गई है। शीर्षक व समापन पंक्तियाँँ भी बेहतरीन हैं।
रिश्तों की प्रगाढ़ता में बुने ताने बाने ने एक खूबसूरत रचना को जन्म दिया है। हार्दिक बधाई आदरणीय अतुल सक्सैना जी। आगे भी इस मंच पर आपकी सशक्त रचनाएँ पढ़ने का मौका मिलेगा ये विश्वास है।
आ. भाई अतुल जी, अभिवादन। अच्छी लघुकथा हुई है । हार्दिक बधाई।
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