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इस प्रस्तुति के लिए बहुत बधाई आदरणीय मदनलाल श्रीमाली जी
आदरणीय मदनलालजी, आपकी यह प्रस्तुति दिल के अन्दर गहरे तक पैठ गयी. इन परिस्थितियों से हर ईमानदार अफ़सर संभवतः एक बार अवश्य गुजरता है. यह मेरा व्यक्तिगत अनुमान है. लेकिन जिस सहजता और प्रवाह में आपने कथ्य को प्रस्तुत किया है वह मुग्ध कर देता है. सादर शुभकामनाएँ आदरणीय
आपने बिल्कुल सही बात कही है, आदरणीय मदनलाल जी. आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ.
साजिश (लघुकथा)
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वंदना , देवर से पुनर्विवाह के मंडप में बैठी थी। मंत्रोत्चार के साथ वंदना के जेहन में पति के साथ अंतरंगता के यादों का सैलाब सा उठने लगा। पहली मुलाकात से उस अनहोनी काली रात तक की सारी तस्वीरें खिचती चली गईं। पहली मुँह दिखाई ,सगाई व विवाह की धूमधाम से घर में मंगल प्रवेश, और प्रवेश उनके जीवन में भी! उनका आलिंगन , बड़ा शुकून देय पल ! बेटी के जन्म की दोनों को खुशियां , साथ गम भी !सब कुछ तो उभर कर आ रहा था।
पहली बार सड़क हादसे में पति का बाल-बाल बचना । उसे अपने भाग्य पर बड़ा गुमान हो चला था। लेकिन उस दिन दोनों भाइयों का एक साथ जाना और लौटना केवल एक का । ट्रक दुर्घटना , इस बड़ी अनहोनी में देवर का बचना परिजन के लिए सौभाग्य ही था , जो भाग्य को कोसते हुए वंदना को भी स्वीकार्य करना । आज उत्तर विवाहोत्तर देवर का पति रूप में स्पर्श!!
" ..वन..... ! वंद ....!वंदन !...! वंदना तु...तुम बहुत सुन्दर हो। मैं तुम्हारी सुन्दरता का तब से कायल हूँ,जब भैय्या तुम्हें देखने गए थे और मैं उनके साथ था। " देवर के शब्द से वंदना स्तब्ध
" क्या s s s s s s ? लागातार दुर्घटनाओं का वह सिलसिला , साजिश को अंजाम देना था ।" शब्द घुट कर दम तोड़ रहे थे ।मन का रिश्ता भी।
(मौलिक व अप्रकाशित)
आदरणीय विजय जोशी जी बढ़िया प्रस्तुति हुई है. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. लघुकथा पर पुनः आता हूँ. सादर
आदरणीय विजय जोशी जी प्रदत्त विषय के अनुरूप बहुत अच्छी लघुकथा हुई है. यह कथानक आम तौर पर फिल्मों के कुछ दृश्यों में जहाँ छोटा भाई या मित्र ऐसे प्रयास करता है, दिखा है लेकिन उसे लघुकथा रूप में आपने जिस ढंग से शाब्दिक किया है वह प्रभावित करता है. लघुकथा के लिए बिलकुल नया विषय लगा है. लघुकथा प्रदत्त विषय से पूरा न्याय करती है. इस प्रस्तुति पर आपको बहुत बहुत बधाई
आदरणीय विजय जोशी जी ,खूब रचा संसार आपने शतरंजी चालों का ,जो सत्य भी हो सकता है और वहम भी .
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