For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Vijay Joshi
Share on Facebook MySpace
 

Vijay Joshi's Page

Vijay Joshi's Photos

  • Add Photos
  • View All

Profile Information

Gender
Male
City State
Maheshwar
Native Place
Maheshwar
Profession
Teacher's
"बटवारा"बटवारे का जब अभियान चला।दोनों बेटों में घमाशान चला।बस मैं छटता ही चला गया ।हर बटवारे में।तन्हाइयां मेरे ही हिस्से में ।मुझे छोड़ सब बट गया जब,कतरा–कहरा बराबर दो हिस्सों मेंजो तिनका तिनका कर जोड़ा था जीवन में।अब मैं बिल्कुल तन्हां था।साथ कोई न मेरा संचय अपना था।न मेरे अपने साथ रहना चाहते थे।न मैं किसी के हिस्सें आया था।एक जीवन संगिनी जो,सात जन्मों का वादा करमँझधार में ही छोड़ गई।जीवन की तन्हाई से मेरे नाता जोड़ गई।अब भी तन्हाई में रहता हूँ।पिता होने का दर्द सहता हूँ।– विजय जोशी 'शीतांशु'महेश्वर,जिला खरगोनरचना मौलिक एवम् अप्रकाशित है।

Comment Wall (1 comment)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 8:15am on October 8, 2015, kanta roy said…
मेरा हौसला बढाने के लिए हृदयतल से आभार आदरणीय विजय जी । दिल को जिस काम को करने में खुशी मिले उस काम में वक्त का सच में मालूम ही नहीं पडता है कि कब दिन हुई और कब रात हुई । सादर अभिनंदन आपको ।

Vijay Joshi's Blog

लघुकथा :साथी

गौरी, पिता के स्नेहिल परिधि में एक साथी की परिभाषा का 'प' समझ पाई। उसी पिता के आँगन में एक लंबा सा साथ निभाने के लिए उसके बचपन को बांटने के लिए भाई के रिस्ते ने साथ दिया। तब वह साथी की परिभाषा के दूसरे पायदान पर 'रि' रूपी रिस्ते को समझने की कोशिश भर कर रही थी। पिता का वह आँगन गौरी की परवरिश के साथ-साथ, बेटी के पराये होने का एहसास भी कराता रहता था। उसकी शिक्षा-दीक्षा की इतिश्री मानकर पिता ने जीवन के लिए, फिर से एक साथी की तलाश शुरू कर दी। जो बेटी भाग्य विधाता होगा। पिता से भी ज्यादा अच्छे से…

Continue

Posted on February 2, 2018 at 12:30am — 2 Comments

माँ की चिंता

/माँ की चिंता//

''माँ तुम आज फिर,अब तक जाग रही हो? कितनी बार समझा चुकी हूँ कि ठंडी रातों में इतनी देर तक जागना तुम्हारी सेहत के लिए ठीक नहीं है।"

फिर से अस्थमा का दौरा पड़ सकता है। तुम समझने का नाम ही नहीं लेती हो!

आई बड़ी समझाने वाली। 'बेटी, मेरी चिंता छोड़, जीना ही कितने दिन है।' और "जिसकी बेटी देर रात तक काम से लौटे उस माँ को नींद कहाँ से आएगी।"

माँ दरवाजे पर ही टकटकी लगाये बैठी थी।

'बेटी तेरा काम क्या है?' कहाँ काम पर जाती है?' किसके घर काम पर जाती...

बेटी ने बीच…

Continue

Posted on January 30, 2018 at 9:37pm — 5 Comments

लघुकथा वसन्तोत्सव

कड़कड़ाती ठंड में वसुधा की कँपकपि असहाय हो रही थी। सूरज को इसकी खबर हुई तो वह बहुत दूर अपनी वार्षिक यात्रा पर था। शीघ्र लौट कर सब ठीक करने का आश्वासन दिया। तो उसके लौटने की खबर से ही, ठंड ने अपना दायरा समेटना शुरू कर लिया।

वसुधा अपने नैसर्गिक रूप में पुनः खिलखिलाने लगी। वसुधा नव यौवना सी मुस्कान लिए साजन से मिलन के सतरंगी सपने सजाने लगी। हाथों में मेहँदी रंग रचने लगा।

पतझर से प्रकृति ने धरा पर रांगोली सजाई। तो वन उपवन में अमलताश ,पलाश, शिरीष , ने वसुधा के लिए वंदनवार सजाएं।…

Continue

Posted on January 30, 2018 at 9:00pm — 3 Comments

बचपन (लघुकथा)~शीतांशु

1 ||बचपन||



मैं मध्य अवकाश के बाद हमेशा स्कूल से छूमंतर हो जाता । दीदी, अक्सर बैग उठाकर लाती । और घर पर मुँह बंद रखने के बदले मुझसे चॉकलेट जरूर लेती थी। किन्तु मैं बेफिक्र होकर कभी फूलों के लिए 'चम्पा की बॉडी', बेर के लिए नरसिंग टेकड़ी, तो कभी पिकनिक मनाने 'भेडलेश्वर-बड़दख्खन' के बाग में , नदी किनारे चले जाते था। और ठीक स्कूल छूट्टी के समय पर घर लौट आने का क्रम चलता रहा। मैडम की शिकायत भी दीदी संभाल लेती। दोस्तों के साथ नीम, इमली,आम के कई नन्हें पौधें गोबर के ढ़ेर व रुखड़े पर से निकाल कर… Continue

Posted on February 7, 2016 at 3:15am — 6 Comments

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service