कड़कड़ाती ठंड में वसुधा की कँपकपि असहाय हो रही थी। सूरज को इसकी खबर हुई तो वह बहुत दूर अपनी वार्षिक यात्रा पर था। शीघ्र लौट कर सब ठीक करने का आश्वासन दिया। तो उसके लौटने की खबर से ही, ठंड ने अपना दायरा समेटना शुरू कर लिया।
वसुधा अपने नैसर्गिक रूप में पुनः खिलखिलाने लगी। वसुधा नव यौवना सी मुस्कान लिए साजन से मिलन के सतरंगी सपने सजाने लगी। हाथों में मेहँदी रंग रचने लगा।
पतझर से प्रकृति ने धरा पर रांगोली सजाई। तो वन उपवन में अमलताश ,पलाश, शिरीष , ने वसुधा के लिए वंदनवार सजाएं। नदियों ने कलकल मिलन के मंगल गीत गये। बासंती बायर दौड़-दौड़ निमंत्रण बांट रही थी । आम मौर ने मंडप छाया। हरसिंगार वरवधू के लिए केशरिया आसन बिछाया। पंछी आकाश मार्ग से कलरव गान करते आये। पशु ,पक्षी गायें बारात बन आए। गोधुल में वसुधा पीत चुनरी ओढ़े वासंती परिणय छाया। चारों ओर मांदल की थाप पर आदिजन थिरके, और शहनाई की गूँज प्रकृति में परिणय मिलन की मादकता घोल रही थी।
विजय जोशी 'शीतांशु'
सचिव म प्र लेखक संघ
Comment
बड़ी ही सुन्दर श्रृंगारिक लघु कथा कही है आदरणीय..सादर
जनाब विजय जोशी जी आदाब,इस सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
बहुत बढ़िया पेशकश। हार्दिक बधाई आदरणीय विजय जोशी 'शीतांशु' जी।
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