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कथानक बहुत अच्छा और नया है भाई विजय जोशी जी, जिस हेतु मेरी हार्दिक बधाई निवेदित है. किन्तु प्रस्तुति के ढंग अर्थात शैली में अभी आपको परिपक्वता हासिल करनी है. प्रयासरत और अभ्यासरत रहें, दिल्ली कोई ज्यादा दूर नहीं है.
बेहद मार्मिक लगा|वासना जनित चाल से जीत रिश्तों पर भारी|हार्दिक बधाई
हार्दिक बधाई आदरणीय पंकज जोशी जी!!बहुत सुंदर लघुकथा !
आदरणीय विजय जोशी जी आप को लघुकथा पढ़ते वक्त किसी फ़िल्मी दृश्य की तरह लघुकथा में दृश्यचित्र उभर कर सामने आ रहा था मगर जब अंत पढ़ा तो लगा , वाकई एक शानदार लघुकथा बनी है. भाई भाई के साथ ऐसा घृणित कार्य भी कर सकता है ? जैसे द्वंद्व को जीवित करती लघुकथा के लिए आप को बधाई .
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