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संकल्प
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"क्या हर बार ऐसा करना जरूरी है? और भी तो है दुनिया में, सबका जिम्मा तुमने ले रखा है !कहीं तुम्हारे स्वास्थ्य को कुछ हो गया तो मैं क्या करूगीं? ऐसी भी क्या जिद । "वो चिंतित हो उठी ।
"बस! यही वो सोच है विभा!जिसने हमारी बच्ची की जान ली है । सुखमय जीवन व्यतीत करते-करते कभी सोचा ही नहीं हमारे आस -पास कितने ही लोग कष्ट में है । और हमारा जरा सा सहयोग उन्हें उन कष्टों से उभार सकता है । जब ठोकर खाई तब सबक याद कर रहे हैं वरना हम. ..,मैं कभी नहीं भूल सकता कि सही वक्त पर खून ना मिल पाने की वजह से मेरी बच्ची. ..।कहते -कहते उसका गला रूंध गया । अब इसे तुम जिद कहो या संकल्प, ये जिम्मेदारी हमारी ही है क्योंकि हम इस लायक है दानकर सकते है धन भी और खून भी "।
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मौलिक एवं अप्रकाशित
आदरणीय राहिला जी आप ने जबरदस्त लघुकथा कही है. इस कासी हुई शानदार व जानदार लघुकथ के लिए बधाई.
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