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बहुत खूब ... जीवन जीने का यही तो सही तरीका है ... नहीं तो आकांक्षाओं की यह हाय-हाय ,किच-किच कभी समाप्तं नहीं होंगी | सन्तोषम परमम सुखम | सादर
"अनैतिक -आकांक्षाओं" को जिंदगी की सार्थक -आकांक्षा का चेहरा दिखाया है। धन अर्जन की भूख ही समस्त भ्रष्टाचार की जड़ है।
गज़ब की लघुकथा कही है आपने आदरणीया शशि जी। बधाई स्वीकार करें।
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