आदरणीय साथियो,
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हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी "मुसाफ़िर" जी।
आ.तेजवीर जी,लघुकथा के लिए बधाइयां लीजिए।भाषा में थोड़ी चुस्ती और कथा में कसावट जरूरी लगती है।यह मेरा मानना है।
हार्दिक आभार आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।
आदाब। विषयांतर्गत घर-घर की दास्ताँ व माँ/बाप की तपस्या और उनकी वृद्धावस्था के समय संतान के दायित्व पर बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई जनाब तेजवीर सिंह जी। संवादों की बोली सरल.शब्दों वाली सहज वाक्य रचना वाली कर.देने से.रचना का प्रभाव बढ़ सकता है मेरे विचार से। अंतिम संवाद लम्बा हो गया है। या तो इसे कसावट दी जाये या फ़िर छोटे कथनोपकथन में बदल दिया जाये, ऐसा लगता है।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई. सादर
खेल(शीर्षक:साधना)
उसकी साध थी कि एक बड़ा लेखक बने।उसने मन ही मन एक नामचीन लेखक को अपना गुरु मान लिया।गुरु की रचनाएँ पढ़ता। मनन करता।फिर लिखने लगा।उसकी लिखाई की शोहरत हुई।गुरु के कानों तक पहुँची। उन्होंने अपने घोषित शिष्य की रचनाओं के साथ उसकी कृतियों को परखा।खेल बराबरी का लगा।फिर उसकी तलाश हुई।
गुरुजी ने पूछा,"नाम?"
"शिष्य।"
"किसका?"
"गुरुश्रेष्ठ का।" उसने गुरुजी के चरण पकड़ लिए।
"मैं?गुरुश्रेष्ठ??" गुरुजी ने उतावली से पूछा।
"जी गुरुवर।" उसने कहा।
"पर मैंने तो तुम्हें कुछ सिखाया ही नहीं।फिर....?"
"मैंने आपसे ही सबकुछ सीखा है, गुरुवर।मेरे ध्यान में सर्वदा आप रहे। मैं लिखता रहा।सीखता रहा।लेखन को साधता रहा।" उसने भरे गले से कहा।
गुरुजी सन्न रह गए।
"खेल निर्णायक होना चाहिए।" उन्होंने सोचा,फिर बोले,
"ला मेरी गुरुदक्षिणा।"
"माँगिये प्रभु!"
"अपनी लेखनी दे मुझे।"
"मेरी साधना पूर्ण हुई, महामना।आपकी आप जानें।" कह उसने लेखनी गुरुजी को थमा दी।
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।
आपका आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।
नमस्कार। विषयांतर्गत गुरू-शिष्य, साधना और गुरुदक्षिणा पर संयोग से इस गोष्ठी में यह दूसरी बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। //"खेल निर्णायक होना चाहिए।" उन्होंने सोचा,फिर बोले,// - इसे किसी बेहतर तरीक़े से लिखा जा सकता है, क्योंकि 'सोचना' बताया जा.रहा है। यह सोचते हुए बोले, .... कैसा रहेगा? 'लेखनी' से पाठक दो तरह के अर्थ लगा सकते हैं... पेन/क़लम अथवा तपस्या/साधना से अर्जित लेखन शैली/क्षमता। लेखक का आशय शायद दूसरे मतलब से है।
मुझे समापन शायद सही तरह से समझ नहीं आ पा रहा। सकारात्मकता है या नकारात्मकता या गुरुदक्षिणा की परिपाटी पर तंज? मार्गदर्शन चाहूँगा।
आपका आभार आदरणीय उस्मानी जी। किसी की अर्जित क्षमता का हरण कभी सकारात्मक नहीं हो सकता।व्यक्ति मन में जो सोचता है,उसे कथन के रूप में इंगित करना कुछ अन्यथा नहीं होता।
शुक्रिया आदरणीय।
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