आदरणीय साहित्य प्रेमियों
सादर वन्दे,
जैसा कि आप सभी को ज्ञात ही है कि ओपन बुक्स ऑनलाइन पर प्रत्येक महीने के प्रारंभ में "ओबीओ लाइव महाउत्सव" का आयोजन किया जाता है | दरअसल यह आयोजन रचनाकारों के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है, इस आयोजन में एक कोई विषय देकर रचनाकारों को उस पर अपनी रचनायें प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है | पिछले १५ कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने १५ विभिन्न विषयों पर बड़े जोशो खरोश के साथ और बढ़ चढ़ कर कलम आजमाई की है ! इसी सिलसिले की अगली कड़ी में ओपन बुक्स ऑनलाइन पेश कर रहा है:-
"OBO लाइव महा उत्सव" अंक १६
महा उत्सव के लिए दिए विषय "कन्यादान" को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है | मित्रों, ध्यान रहे कि बात बेशक छोटी कहें मगर वो बात गंभीर घाव करने में सक्षम हो तो आनंद आ जाए |
उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है :-
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन समिति ने यह निर्णय लिया है कि "OBO लाइव महा उत्सव" अंक- १६ में पूर्व कि भाति सदस्यगण आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही प्रस्तुत कर सकेंगे | नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी |
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो बुधवार ८ फरवरी लगते ही खोल दिया जायेगा )
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"महा उत्सव" के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
मंच संचालक
धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)
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sundar rachna Sateesh ji badhaai.
कइसा रिवाज, इ कइसा विधान?
thank u avinash ji
बेहद मार्मिक और ह्र्दयस्पर्शी गीत कहा है सतीश भाई जी, मन भर आया आपकी पंक्तियाँ पढ़ कर. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें बंधुवर.
बेहद खूबसूरत सुन्दर शब्दों से रचा गया ह्र्दयस्पर्शी गीत कहा है सतीश जी,आपको बहुत बधाई
भाई जी.... वाह !
हेह लोकगीतात्मक रचना प हमार दृष्टि कइसे रहि गइल, भाईजी.. !??? ... महान अफ़सोस बा.
भोजपुरी गीतकार अविनाशजी के इयाद झलझला गइल बा मन में, जे परमादरणीय भिखारी ठाकुर के आपन आदर्श कहत रहनीं.
आपका प्रस्तुत गीत कन्या-विवाह के भावनत्मक पक्ष, उसके दर्द और निहित ज़मीनी प्रारूप को बखूबी व्यक्त करने में सफल है. मैं मन ही मन गुनगुना रहा हूँ..
आँखी के रे पूतरिया.. !! ..भा ओरी तऽरऽ ओरी रे तऽरऽ ... ..
पत्थर-कलेजा पिघल कर मोम न बन जाय ! ... . हो ही नहीं सकता .. !
वाह
बेटी के मनोंभावों का सटीक अंकन
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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