परम आत्मीय स्वजन
पिछले मुशायरे मे बहुत ख़ूबसूरत गज़लें प्राप्त हुई, जिसमे कि कई शायर जिन्होंने अभी हाल ही मे गज़ल विधा मे कलम आज़माना प्रारम्भ किये हैं, वे भी हैं, यह इस बात का परिचायक है की ओ बी ओ का यह आयोजन धीरे धीरे अपने उद्देश्य मे सफल हो रहा है | कई लोगो को बह्र के साथ समस्यों से भी दो चार होना पड़ा | कहना चाहूँगा कि बह्र मुजारे मुशायरों की एक बहुत ही प्रसिद्द बह्र है और तमाम शायर इसी बह्र मे अपनी गज़लें बड़ी खूबसूरती के साथ पेश करते हैं | इसी बह्र मे और मश्क हो जाये इसलिए इस बार का मुशायरा भी बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ पर ही आयोजित किया जा रहा है | इस बार का मिसरा- ए- तरह भारत के मशहूर गीतकार नक्श लायलपुरी जी की एक बहुत ही ख़ूबसूरत गज़ल से लिया जा रहा है | नक्श लायलपुरी ऐसे शायर थे जिन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए भी लाजवाब गज़लें लिखीं और कई हिट गीत दिए | 24 फरवरी 1928 को लायलपुर (अब पाकिस्तान का फैसलबाद) में जन्मे नक्श लायलपुरी जी का असली नाम जसवंत राय था | बाद मे शायर बनने के बाद उन्हें नक्श लायलपुरी के नाम से जाना गाया | मिसरा है:-
"लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं"
221 2121 1221 212
बह्र: बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ
मफऊलु फाइलातु मफाईलु फाइलुन
लो/२/अब/२/तु/१ म्हा/२/री/१/रा/२/ह/१ मे/१/दी/२/वा/२/र/१ हम/२/न/१/हीं/२
(तख्तीय करते समय जहाँ हर्फ़ गिराकर पढ़े गए हैं उसे लाल रंग से दर्शाया गया है)
रदीफ: हम नहीं
काफिया: आर (दीवार, इन्कार, बीमार, तलबगार, खतावार, झंकार आदि)
जिस गज़ल से मिसरा लिया गया है उसका विडियो सबसे नीचे देखा जा सकता है|
मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 मई 2012 दिन रविवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 29 मई 2012 दिन मंगलवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २३ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगा, जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ
( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २७ मई २०१२ दिन रविवार लगते ही खोल दिया जायेगा )
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New "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २३ के सम्बन्ध में एक सूचना
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
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//बीवी ने मयके जा कर शौहर से यों कहा
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं //
वाह वाह, बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल, बस बीबी ना सुने नहीं तो मायके कभी ना जाएगी :-))))
इस मुशायरे को आपने बहुत इंजॉय किया, यह आपकी ग़ज़ल में भी झलक रहा है, बहुत ही प्यारी और मजाहिया ग़ज़ल की प्रस्तुति है, दाद कुबूल करे |
मज़े की बात तो ये है जनाब गणेश जी बागी साहेब कि हमारी बीवी सचमुच मायके गई.......और कहना मत किसी से पूरे 15 दिन के लिए गई....हा हा हा हा हा तभी तो इतना समय मिल गया कल कि चार चार ग़ज़लों के अलावा एक टी वी स्क्रिप्ट भी लिख पाया.
आज मेरे घर में ईद है, होली है, दशहरा है, दिवाली है..........मज़ा आ गया ....ख़ुद ही बर्फ डाल रहा हूँ, ख़ुद ही सोडा खोल रहा हूँ...........इसी पे आज का शे'र याद आया
ढक्कन खुले तो मयकशों से इतना कह गये
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं
हा हा हा हा ............आपकी दाद के लिए शुक्रिया ...जय हिन्द !
सही बात है , कोई ख्याल ऐसे ही नहीं आया करते ....हा हा हा हा
congratulation for poly-festival :-)
bivi ka maayka amar rahe...........:-)))))))))
अलबेला साहब, आपकी कहानियाँ अलबेली मग़र तीखी हैं. मैं बहुत कुछ देख रहा हूँ. विश्वास है , आप गरिमामय मोड़ दे कर मेरे विश्वास का मान रखेंगे.
आपका इसमंच पर आना कई मायनों बता रहा है.
सादर
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, प्रणाम
आपने सही रग पकड़ ली, मैं सचमुच तीखा काम करता हूँ क्योंकि ज़िन्दगी में इतने स्वाद देख चुका हूँ कि सब फीके पकवान नज़र आते हैं.........मस्त रहो और मस्ती बांटो....यही मेरे जीवन का ताना बाना है...........मैं ज़्यादा देर गम्भीर नहीं रह सकता . ये मेरे में खोट है और है तो है...मैंने इस खोट को आत्मसात कर लिया है .
आपके स्नेह के लिए आभारी हूँ
जय हिन्द !
सहयोग बना रहे भाई जी.
सादर
aapki jai ho
shubh ratri..........
आदरणीय अलबेला जी...हमें भी मजा आया...हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये
aapko naman.......jai hind !
दुनिया की इशरतों के तलबगार हम नहीं
ख्वाहिश की बेड़ियों में गिरफ़्तार हम नहीं
आकर जहाँ में भूल गए तुझको ऐ ख़ुदा
कैसे कहें की तेरे गुनाहगार हम नहीं
हम तो क़लम की धार से लड़ते है अपनी जंग
रखते हैं अपने हाथ में तलवार हम नहीं
हमको ख़ुदा की ज़ात पे कामिल यक़ीन है
मानेगे फिर किसी का चमत्कार हम नहीं
फिर क्यूँ किसी से आस लगायें वफ़ा की जब
करते कभी किसी से सदाचार हम नहीं
लेकर चले हैं मेरे जनाज़े को मेरे दोस्त
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं
माजी-ओ-हाल की तो ख़बर सबको है "मजाज़"
आएगा कल जो उससे ख़बरदार हम नहीं
करें न तारीफ इस ग़ज़ल की वो किरदार हम नहीं ......लाजबाब ग़ज़ल दाद कबूल करें
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