For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शीत ऋतु के आगमन के साथ ही प्रेम और फिर मुहब्बत के सागर में खूब  गोते लगाए हमने आपने | बड़ा ही आनंद आया दोस्तो, और अब बारी है नव-वर्ष से एक और नयी शुरुआत करने की |

सीखने / सिखाने की पहल से जुड़ा हुआ ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार आप सभी के अपरिमित उत्साह को देख कर दंग है | कितने सारे रचनाकार और हर एक के अंदर कितनी सारी रचनात्मकता, भई वाह! जहाँ एक ओर जूनियर्स पूरे जोशोखरोश  के साथ मंच पर अपनी प्रस्तुतियों के साथ हाजिर होते दिखते हैं, वहीं स्थापित रचनाकार भी अपने ज्ञान और अनुभव को अपने मित्रों के साथ बाँटने को सदा उद्यत दिखाई पड़ते हैं |

दूसरे महा इवेंट में १० से ज़्यादा रचनाकार पहली बार शामिल हुए, जो अपने आप में एक उपलब्धि है|

"ओबिओ लाइव महा इवेंट" अंक-1 और २ के अनुभव के आधार पर कुछ परिवर्तन किए गये हैं इस बार, जो आप सभी से साझा करते हैं|

[१] महा इवेंट कुल ३ दिन का होगा|

[२] ओबिओ परिवार की अपेक्षा है कि हर रचनाकार एक से अधिक विधाओं / फ़ॉर्मेटस में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करे | मसलन एक रचनाकार ३ दिन में ३ अलग अलग विधाओं में ३ अलग अलग रचनाएँ प्रस्तुत कर सकता है | पर स्पष्ट करना ज़रूरी होगा कि यह बाध्यकारी नहीं है | हाँ इतनी अपेक्षा ज़रूर है कि एक दिन में यदि एक से अधिक रचना प्रस्तुत करनी हों, तो विधा भी अलग से लें| उदाहरण के लिए यदि किसी रचनाकार को एक दिन में ३ रचनाएँ प्रस्तुत करनी हैं तो वो [अपनी पसंद के मुताबिक] ग़ज़ल, गीत और कविता की विधाएँ ले सकता है|

वैसे हम में से ज़्यादातर लोग जिन विधाओं में आसानी से पोस्ट कर सकते हैं वो हैं:- ग़ज़ल, गीत, कविता, मुक्तक, लघु कथा, दोहे, कव्वाली वग़ैरह| इसी बात के मद्देनजर १६ मात्रा वाले सबसे सरल छंद चौपाई के बारे में हम लोगों ने ओबिओ पर अलग से चर्चा शुरू की हुई है| इच्छुक रचनाकार उस चर्चा से लाभान्वित हो सकते हैं| हमें प्रसन्नता होगी यदि कोई रचनाकार किसी आँचलिक विधा को भी हम सभी के साथ साझा करे|

तो दोस्तों, प्रस्तुत है ओपन बुक्स ऑनलाइन का एक और धमाका

"OBO लाइव महा इवेंट" अंक-३

इस महा इवेंट में आप सभी को दिए गये विषय को लक्ष्य करते हुए अपनी अपनी रचनाएँ पोस्ट करनी हैं | इस बारे में ऊपर विस्तार से चर्चा की गयी है| आप सभी से सविनय निवेदन है कि सर्व ज्ञात अनुशासन बनाए रखते हुए अपनी अपनी कला से दूसरों को रु-ब-रु होने का मौका दें तथा अन्य रचनाकारों की रचनाओं पर अपना महत्वपूर्ण विचार रख उनका उत्साह वर्धन भी करें |

 

यह इवेंट शुरू होगा दिनांक ०३.०१.२०११ को और समाप्त होगा ०५.०१.२०११ को|
इस बार के "OBO लाइव महा इवेंट" अंक-३ का विषय है "लोकतंत्र"

इस विषय को थोड़ा और विस्तार दे देते हैं| जब हम लोकतंत्र की बात करते हैं तो उस में भ्रष्टाचार, राजनीति, कुव्यवस्था, पंचायत राज, आतंकवाद, उग्रवाद, देश प्रेम, स्वतंत्रता, आज़ादी, गणतंत्र भारत, वोट बॅंक जैसे और भी कई सारे विषय अपने आप आ जाते हैं| ध्यान रहे हमें भावनाओं को भड़काने वाली या द्वेष फैलने वाली बातों से बचना है| यदि कोई सदस्य मर्यादा का उलंघन करता हुआ पाया जाएगा, तो एडमिन उनकी रचना / टिप्पणी को रद्द कर सकता है|


रोचकता को बनाये रखने हेतु एडमिन जी से निवेदन है कि फिलहाल रिप्लाइ बॉक्स को बंद कर दे तथा इसे ०२.११.२०११ और ०३.११.२०११ की मध्यरात्रि को खोल दे जिससे सभी फनकार सीधे अपनी रचना को पोस्ट कर सके तथा रचनाओं पर टिप्पणियाँ दे सकें|

आप सभी सम्मानित फनकार इस महा इवेंट मे मित्र मंडली सहित सादर आमंत्रित है| जो फनकार अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है उनसे अनुरोध है कि www.openbooksonline.com पर लोग इन होकर साइन उप कर ले तथा "OBO लाइव महा इवेंट" अंक-३ मे शिरकत करें |

तो आइए नये साल में मिलते हैं और आप सभी की धमाकेदार रचनाओं का जायका लेते हैं|

प्रतीक्षा में
ओबिओ परिवार

Views: 9143

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

सुन्दर रचना है,,,,,,,,,,,,बधाई,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

 

हास्य मात्र ही अब लगे, 'जनता की सरकार'|
लोकतंत्र के नाम पे, जमा हुए मक्कार ||

सुनो, सुनाएँ एक कहानी|
है सबकी जानी पहचानी|
रहे गुलाम कई सदियों तक|
गद्दारों की वजह से , बेशक|१|

पर आज़ादी पाई हमने|
खुशियाँ खूब मनाई हमने |
जब देखा तो दंग रह गए|
दुश्मन अपने संग रह गए|२|

बनकर के वे खद्दर धारी|
करने लगे वही मक्कारी |
भाषा मजहब के मुद्दों पर|
भोली जनता को भटकाकर|३|

भण्डारण के नाम पे देखो|
किया है कैसा काम ये देखो|
नाज खुले में पड़ा हुआ है|
भंडारों  में ड्रिक्स भरा है|४|

भूखे को गर नाज मिलेगा|
इनको कैसे माल मिलेगा|
माल मिलेगा नाज सड़ाकर|
दारू वालों से सौदा कर|५|

अपनी चीनी बाहर जाकर|
लौट आती है महँगी होकर|
नेताओं ने भरीं तिजोरी|
रही फिसड्डी जनता भोरी|६|

देशभक्त होते थे पहले|
अब सारे हैं मन के मैले|
'नेता' शब्द बन चुका है गाली|
जोड़ो हाथ बजाओ ताली|७|

बलात्कार भी फैशन में है|
यंगिस्तान भी पैशन मैं है|
चली हवा फिर इंगलिश्तानी|
तर्क, बहस, और बस मनमानी|८|

वृद्धों का सम्मान खो गया|
वृधाश्रम का चलन हो गया |
सब मिलकर फिर अलख जगाओ|
इंडिया को भारत से भगाओ |९|

मत भूलो अपना इतिहास |

हमको झुकता था आकाश |

पूंजी है अपना किरदार |

बाकी सब दौलत बेकार | १०|

क्यूँ बैठे हो भूलकर तुम अपनी पहचान |
आज कहो फिर चीख कर भारत देश महान ||

सत्य अहिंसा धर्म का फैलाओ उजियार |
भारतवर्ष महान है , सभी करें स्वीकार ||

धन्यवाद! भाईसाब ! बस बड़ों का आशीर्वाद और प्रभु की कृपा है| मैं तो कुछ नहीं जानता |

बहुत सुन्दर रचना है. 

 

गोपाल बघेल 'मधु' 

टोरोंटो, ओंटारियो , कनाडा 

बहुत सुंदर शेखर जी बहुत सुंदर
शिव पार्वती संवाद..........
____________________________________________________
पार्वती उवाच....
सुनॊं शिव अर्जी मैं, कहती हूँ नवाय शीश !
        दीजियॆ आशीष इस, दीन-हीन पर पसीजियॆ !!
बालक दॊ सयानॆ हैं,  ब्याह कारज कॆ लानॆं !
        घर मॆं नहीं दानॆं, ख्याल गृहस्थी पर दीजियॆ !!
छॊड़ॊ मृगछाला और, माला यॆ भजन जाप !
        आप अंग की भभूती, अब दूर  कर दीजियॆ !!
माँगनॆं मॆं कदर नहीं, भारत मॆं भिखारी की !
        यासॆं महाराज कहीं, थॊड़ी खॆती कर लीजियॆ !!१!!

शिव उवाच..
हॆ प्राण प्यारी गिरिराज, की दुलारी सुनॊं !
        बात सच है तुम्हारी, न मुझकॊ इंकारी है !!
खॆती कॆ लिए ज़मीन, चाहियॆ पटॆती की !
        मुँह फाड़-फाड़ रिश्वत, माँगता पटवारी है !!
लागत और बीज का, दॆनॆ वाला कौन है !
        खॆती कॆ करनॆं मॆं हॊत,आज खर्च भारी है !!
नन्दी कॆ शिवाय पाऊँ दूजा मैं बैल कहाँ !
        किससॆ कहूँ जाय, मॆरी यही तॊ लाचारी है !!२!!

पार्वती उवाच...
दॊ-चार बीघा ज़मीन लॆ विष्णु भगवान सॆ !
         दॆकर दरख्वास्त उसॆ, नाम अपनॆं बंधवाइयॆ !!
यम कॆ घर जाय प्रभु, भैंसा मँगाय उन सॆ !
         नन्दी सँग जॊत स्वामी, एक जॊड़ी बनाइयॆ !!
हल तॊ माँग लीजियॆ,भैया बलदाऊ सॆ आप !
         सर्पॊं की माला उतार,पगहा-नारा भी बनाइयॆ !!
लागत और बीज माँग,लीजियॆ जा कुबॆर सॆ !
        त्रिशूल कॊ तॊड़ कर, हॆ प्रभू परॆना बनवाइयॆ !!३!!

शिव उवाच...
विष्णु कॆ पास जॊ, ज़मीन  हॊती पटॆती की !
          बली कॆ घर जाय, साढ़ॆ तीन पग मँगातॆ ना !!
अपनी सवारी यमराज, कैसॆ दॆंगॆ प्यारी मुझॆ !
          कहॆंगॆ भॊलॆनाथ कुछ माँगतॆ हुयॆ शरमातॆ ना !!
कुबॆर कॆ पास अगर, भंडार  हॊतॆ अनाज कॆ !
          दॆश कॆ किसान कभी, खुदकशी कर पातॆ ना !!
यही सब सॊच "राज़"अब टॆक तजॊ खॆती की !
          हम करतॆ हैं भजन जाप माँगनॆं कहीं जातॆ ना !!४!!
 

          "कवि--राजबुँदॆली"
       



बहुत सुन्दर  

 

गोपाल बघेल 'मधु' 

टोरोंटो, ओंटारियो , कनाडा 

बहुत सुंदर बुंदेली जी, बहुत सुंदर
वही मिला है जग मॆं सब कॊ, जिसनॆं जॊ कुछ बॊया,
मिला ललाट कलंक किसी कॊ,कॊई सम्मान संजॊया,
मात-पिता की सॆवा सॆ बढ़कर, और ना कॊई पूजा है,
निज राष्ट्र-धर्म सॆ ऊँचा जग मॆं, धर्म ना कोई दूजा है,
प्राणॊं की बलि चढ़ जायॆ पर,मान झुकॆ ना माटी का !!
कंकड़- कंकड़ यह बॊल रहा है, तुमसॆ हल्दीघाटी का !!१!!
राँणा प्रताप कॆ भालॆ नॆं,लिख दी दॆखॊ अमर कहानी,
स्वाभिमान मॆं मिट ना जायॆ, है उसकी ब्यर्थ जवानी,
पद्मिनियॊं नॆं जौहर कर, अपनी आन नहीं जानॆं दी,
स्वाभिमान कॆ सूरज की, उन नॆं शान नहीं जानॆं दी,
खौफ़ ना खाया चॆतक नॆं, गजराजॊं की कद काठी का !!२!!
कंकड़- कंकड़ यह बॊल रहा है.....................................
इस भारत की धरती नॆं,रणवीरॊं की फ़सल उगाई है,
लाखॊं बॆटॆ बलिदान दियॆ,तब जाकर आज़ादी पाई है,
कसी लौह जंजीरॊं मॆं भी, जब इंक्लाब यह बॊला,
मॆरा रंग दॆ बसंती चॊला, मॆरा रंग दॆ बसंती चॊला,
नाम अमर हॊ जाता जग मॆं,वीरॊं की परिपाटी का !!३!!
कंकड- कंकड यह बॊल रहा है,तुमसॆ.......................
आवाहन है युवा शक्ति,आगॆ आऒ अब आगॆ आऒ,
राष्ट्र-धर्म की रक्षा मॆं, तलवार उठाऒ ढ़ाल उठाऒ,
जन-जन मॆं दॆश-भक्ति का, तुम अद्भुत संचार भरॊ,
एक ताल एक कंठ सॆ,भारत की जय-जयकार करॊ,
भॆद मिटा दॊ दिल सॆ अपनॆं,हिन्दी और मराठी का !!४!!
कंकड़- कंकड़ यह बॊल रहा है,तुमसॆ........................
एक और सुंदर रचना। बधाई


बहुत सुन्दर  

 

गोपाल बघेल 'मधु' 

टोरोंटो, ओंटारियो , कनाडा 

बहुत सुंदर शास्त्री जी की रचनाएँ तो नवगीत की पाठशाला पर पढ़ता ही रहता हूँ। ओबीओ पर भी इन्हें पढ़कर अच्छा लगा।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
20 hours ago
Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service