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सभी साहित्य प्रेमियों को प्रणाम !

साथियों जैसा की आप सभी को ज्ञात है ओपन बुक्स ऑनलाइन पर प्रत्येक महीने के प्रारंभ में "महा उत्सव" का आयोजन होता है, उसी क्रम में ओपन बुक्स ऑनलाइन प्रस्तुत करते है ......

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक ७  

इस बार महा उत्सव का विषय है "याद आ रही है"

इस बार के विषय पर थोड़ा प्रकाश डालना चाहता हूँ , याद किसी की भी आ सकती है जैसे माँ, पिता जी, भाई, बहन, पति, पत्नी, मित्र, प्रेमी, प्रेमिका या कोई पशु-पक्षी, कोई वस्तु, कुछ यादगार पल आदि, बस उन्ही यादों को केन्द्रित कर रच देना है एक इतिहास जिसे वर्षो भूलना मुश्किल हो जाये और आप कहते रहे "याद आ रही है"   

आयोजन की अवधि :- ५ मई गुरूवार से ७ मई शनिवार तक

महा उत्सव के लिए दिए गए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है | उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है ...

विधाएँ
  1. तुकांत कविता
  2. अतुकांत आधुनिक कविता
  3. हास्य कविता 
  4. गीत-नवगीत
  5. ग़ज़ल
  6. हाइकु
  7. व्यंग्य काव्य
  8. मुक्तक
  9. छंद [दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका वग़ैरह] इत्यादि |

साथियों बड़े ही हर्ष के साथ कहना है कि आप सभी के सहयोग से साहित्य को समर्पित ओबिओ मंच नित्य नई  बुलंदियों को छू रहा है OBO परिवार आप सभी के सहयोग के लिए दिल से आभारी है, इतने अल्प समय  में बिना आप सब के सहयोग से कीर्तिमान पर कीर्तिमान बनाना संभव न था |

इस ७ वें महा उत्सव में भी आप सभी साहित्य प्रेमी, मित्र मंडली सहित आमंत्रित है, इस आयोजन में अपनी सहभागिता प्रदान कर आयोजन की शोभा बढ़ाएँ, आनंद लूटें और दिल खोल कर दूसरे लोगों को भी आनंद लूटने का मौका दें |

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो ०५ मई लगते ही खोल दिया जायेगा )

यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |

नोट :- यदि आप ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य है और किसी कारण वश महा इवेंट के दौरान अपनी रचना पोस्ट करने मे असमर्थ है तो आप अपनी रचना एडमिन ओपन बुक्स ऑनलाइन को उनके  इ- मेल admin@openbooksonline.com पर ०५ मई से पहले भी भेज सकते है, योग्य रचना को आपके नाम से ही महा उत्सव प्रारंभ होने पर पोस्ट कर दिया जायेगा, ध्यान रखे यह सुविधा केवल OBO के सदस्यों हेतु ही है |

मंच संचालक

धर्मेन्द्र कुमार सिंह

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Replies to This Discussion

""""""""" आप भी किसी से कम नहीं आप भी मेरा धन्यवाद कुबूल करे .........................
अच्छी ग़ज़ल है संजय भाई , सभी शेर सार्थक लगे , दाद कुबूल कीजिये |

 

""""""""""किस भावना से आपको धन्यवाद दूं हमें कम ही लगती है,,,,,,,,,|

जाने कहाँ वो बचपन जो याद आ रही है
खोया है जब लड़कपन तो याद आ रही है

घुटनों के बल थे चलते आँचल में माँ के छुपते
दादी की गोद में भी किलकारियां थे भरते
जन्नतनशीं थे बाबा देते हमें दुआएं
थीं लाजवाब दीदी लेतीं थीं वो बलाएं   
आँगन था घर का कच्चा सोंधी थी उसकी मिट्टी
सूंघा थे उसको करते दादी पिलातीं घुट्टी

थोड़े हुए बड़े तो चलने लगे थे पैंयाँ 
मम्मी हमें झुलातीं झूलों में ले के बैंयाँ
चलती थी रेलगाड़ी
घर भर को साथ ले लें
बनते थे हम तो इंजन डिब्बे भी साथ खेलें
मेरी बुआ थीं छोटी खाना मुझे खिलातीं
चाचा के साथ मुझको
चाची जरा डरातीं

बागों में आम कच्चे अमरुद थे सुहाते
दिल बाग-बाग होता स्कूल जब न जाते
आपस में जब भी झगड़ें कनबुच्चियाँ लगाते
जब रूठ जाये हम तो सब मिल हमें मनाते
मन भाए गुल्ली डंडा जो साथ मिल के खेले
हैं याद वो पतंगें बचपन के मस्त मेले

जाने कहाँ वो बचपन जो याद आ रही है
खोया है जब लड़कपन तो याद आ रही है

-- अम्बरीष श्रीवास्तव
आपने तो मुझे मेरे बचपन में पहुँचा दिया। बहुत ही सुंदर रचना, बधाई स्वीकार कीजिए अम्बरीष जी। आप की रचनाओं से इस आयोजन में चार चाँद लग गए हैं।


 धन्यवाद आदरणीय भाई धर्मेन्द्र जी ! यह धुन मैनें इस आयोजन में ही आदरणीया मुमताज जी की खूबसूरत सी नज़्म से सीखी है ............यूं ही बस दिल किया तो लिख डाला ..........आपको यह नज़्म पसंद आयी तो मेरा श्रम सार्थक हो गया ...........:))


जाने कहाँ वो बचपन जो याद आ रही है
खोया है जब लड़कपन तो याद आ रही है

 

वाह वाह वाह , अम्बरीश भाई, यह गीत तो लगता है "भुत काल में ले जाने वाली" कोई मशीन है, वास्तव में एक एक दृश्य याद आ गया, ऐसा लगता है की जैसे आप मेरे बारे में लिखे है |

 

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए पल .................

 

खुबसूरत रचना हेतु बहुत बहुत आभार |

आपका तहे दिल से शुक्रिया भाई बागी जी ! इस नज्म का  प्रेरणास्रोत  आदरणीया मुमताज जी की नज़्म है .......... आपको यह पसंद आई तो यह कलम धन्य हो गयी ! :))

 

अम्बरीश जी बहुत खुबसूरत सोच......... 

इस  खुबसूरत रचना हेतु बहुत बहुत आभार...................

भाई संजय जी आपका बहुत-बहुत आभार .....:))
Bahot hi khoobsurat
आपका तहे दिल से शुक्रिया ! इस नज्म के पीछे आपका ही प्रोत्साहन  है .............:)))

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