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शिशु गीत सलिला :

 5 संजीव 'सलिल'

*
41. आकाश

धरती पर छत बना तना है
यह नीला आकाश।
गरमी में तपता, बारिश में
है गीला आकाश।।

नाप न पाता थकता सूरज,
दिनभर दौड़ा- दौड़ा।
बादल चंदा तारों का
घर आँगन लम्बा चौड़ा।।
*
42. फूल


बीजे बो पानी डालो,
धरती से उगता अंकुर।
पत्ते लगते, झूम हवा में
लहराते हैं फर-फर।।


कली निकलती पौधे में,
फिर फूल निकल आते है।
तोड़ न लेना मर जायेंगे-
खिलकर मुस्काते हैं।।
*
42. गुड्डा-गुड़िया

गुड्डा-गुड़िया साथ रहें-
ले हाथों में हाथ रहें।
हर गुत्थी को सुलझाएं
कभी न झगड़ें, मुस्काएं।।
*
43. गेंद

फेंको गेंद पकड़ना है,
नाहक नहीं झगड़ना है।
टप-टप टप्पे बना गिनो-
हँसो, न हमें अकड़ना है।।
*
44. बल्ला

आ जाओ लल्ली-लल्ला,
होने दो जमकर हल्ला।
यह फेंकेगा गेंद तुम्हें -
रोको तुम लेकर बल्ला।।
*
45. साइकिल

आओ! साइकिल पर बैठो,

हैंडल पकड़ो, मत एंठो।
संभलो यदि गिर जाओगे-
तुरत चोट खा जाओगे।।
*
46. रिक्शा

तीन चकों का रिक्शा होता,
मानव इसे चलाता।
बोझ खींचता रहता है जो,
सचमुच ही थक जाता।।

मोल-भाव मत करना,
रिक्शेवाले को दो पैसे।
इनसे ही वह घर का खर्चा
अपना 'सलिल' चलाता।।
*
47. स्कूटर

स्कूटर दो चक्केवाला,
पैट्रोल से चलता।
मन भाता है इसे चलाना
नहीं तनिक भी खलता।।
*
48. कार

चार चकों की कार चलाओ,
मिलता है आराम।
झटपट दूर-दूर तक जाओ,
बन जाते सब काम।।
*
49. बस

कई जनों को ले जाती बस,
बैठा अपने अन्दर।
जब जिसका स्टेशन आता
हो जाता वह बाहर।।

परिचालक तो टिकिट बेचता,

चालक इसे चलाता।
लगा सड़क पर नामपटल जो 
रास्ता वही बताता।।
*
50. रेलगाड़ी


छुक-छुक करते आती है,
सबको निकट बुलाती है।
टिकिट खरीदो, फिर बैठो-
हँसकर सैर कराती है।
*

Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com




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Replies to This Discussion

आदरणीय संजीव जी,

सादर नमस्कार!

यह नन्ही नन्ही कवितायेँ, बातें करती से प्रतीत होती हैं और बातों बातों में  मानस पटल पर मासूम चित्र उकेर रही हैं, आपका यह सद्प्रयास बच्चों में बहुत लोकप्रियता पाए, ऐसी शुभकामनाएं हैं. सादर.

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