नन्हा राजू पूछता दादाजी से आज ,
इतनी सारी भीड़ का क्या है दादू राज ?
आज दशहरा मेला दादू ने बतलाया ,
मेले में राजू को रावण बड़ा दिखाया l
रावण एक असुर था, सबको बड़ा सताता ,
छल-माया के बल पर हरदम था इतराता l
सूपर्णखा थी उसकी बहना नैनदुलारी ,
लक्ष्मणजी की पक्की मर्यादा से हारी l
आयी रावण को वो कटी नाक दिखलाने ,
रो-रो कर लंका के राजा को भड़काने l
रावण होकर क्रोधित सीता को हर लाया ,
पुष्पक में बैठा कर, उनको लंका लाया l
राम लखन जब लौटे सीता को ना पाया ,
कहाँ गयी खो सीता उनका मन घबराया l
सीता-सीता करते जंगल-जंगल भटके ,
वहीं जटायु दीखा प्राण थे जिसके अँटके l
उसने राम-लखन को रावण-छल बतलाया ,
रावण जिधर गया था उनको दिशा बताया l
दोनों वीर चले फिर सीता को ले आने ,
रावण के पापों पर उसको सबक सिखाने l
सहयोगी हनुमान थे, कार्य हुआ आसान,
बने दूत, लंका पहुँच, रक्खा सीता मान l
रावण की सेना भी उनको पकड़ न पायी ,
महाबली ने सोने की लंका झुलसायी l
पर दम्भी रावण को काल नज़र ना आया ,
’युद्ध करेगा’ उसने यह ऐलान कराया l
सेना सागर-सेतु से पहुँची लंका द्वार ,
लंका पहुँचे वीर सभी हुई जय-ललकार ।
मेघनाद सा पुत्र भी बना काल का ग्रास ,
फिर भी रावण को नहीं हुआ काल-आभास l
कुम्भकर्ण भाई को रावण ने जगवाया ,
राम-लखन के सम्मुख रणक्षेत्र भिजवाया l
योद्धा सब रावण के पल भर टिक ना पाए ,
कुम्भकर्ण भी हारा अपने प्राण गँवाए l
अहंकार का रूप था रावण फिर हुँकारा ,
युद्धभूमि में आकर ’लड़ो राम’ ललकारा l
मर्यादा पुरुषोत्तम का फिर धनुष उठाना ,
लंका के राजा का मार गिराया जाना l
सदाचार की जय हो, कहता पर्व दशहरा ,
अच्छाई जीतेगी उत्सव कहे सुनहरा l
राजू हो खुश बोला, ’मैं भी राम बनूँगा’ ,
सत्यराह अपनाऊँ, मैं भी अडिग चलूँगा l
दादाजी मुस्काये धनुष-बाण दिलवाया ,
अयोध्या में उनकी नन्हा राम था आया l
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वाह डॉ साहिबा, कम शब्दों में रामायण को पूरी सहजता से आपने प्रस्तुत किया है, बच्चों हेतु एक संग्रहनीय रचना, बधाई डॉ साहिबा ।
सुंदर सरल शब्दों में रामायण का पाठ पढाया,
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