नानी अब बुड्ढी हो गयी
दाँतों में खुड्डी हो गयी l
उसको तू प्यार कर ले
थोड़ी मनुहार कर ले
उँगली पे उसे घुमा के
थोड़ी तकरार कर ले l
उसकी तू नाक भींच ले
चाहें तो कान खींच ले
हँसके-मुस्काके उससे
थोड़ा सा माल खींच ले l
गालों पे नाक पोंछ ले
उसके तू बाल नोच ले
पर गंजी ना हो जाये
उसका तू हाल सोच ले l
नानी अब बुड्ढी हो गयी
दाँतों में खुड्डी हो गयी l
-शन्नो अग्रवाल
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हाहाहा शन्नो जी बिलकुल ठीक लिखा है बच्चे नानी के साथ यही तो करते हैं फिर भी नानी उनकी बलाएँ लेती है,उनकी इन बाल क्रीडाओं पर न्योछावर होती है | मैं भी नानी बन गई हूँ पर दांत अभी सलामत हैं पर बच्चों की हरकतें वही हैं ,मजा आ गया ये बाल रचना पढ़ के बधाई आपको
राजेश कुमारी जी, आपको बाल रचना सराहने के लिये बहुत-बहुत धन्यबाद. इसमें कल्पना और वास्तविकता का मिश्रण है. मेरी पाँच महीने की नातिन है...यही सब कुछ करती है और लार भरी उँगलियों से नाक, कान, बाल खींचती रहती है. और आपने सही कहा कि नानी बनने पर जरूरी नहीं कि दांत भी टूट जायें...हा हा हा
आदरणीया शन्नो जी,
बच्चों को नानी बहुत प्यारी लगती है, और बच्चों और नानी के अनोखे निश्छल प्यार जताने या जीने के ढंग को इस बाल गीत में बिलकुल वास्तविता के साथ आपने शब्दबद्ध किया है, हार्दिक बधाई इस गीत के लिए. सादर.
प्राची जी, मेरी बाल-रचना पसंद करने के लिये आपका हार्दिक धन्यबाद :)
गालों पे नाक पोंछ ले
उसके तू बाल नोच ले
पर गंजी ना हो जाये
उसका तू हाल सोच ले l
शिशुओं की हरकतों को कितना बढिया शब्द रूप दिया आपने, आदरणीया शन्नोजी !
बाल रचनाएँ वस्तुतः बाल मनोविज्ञान के अनुरूप रचनाकर्म करने की प्रक्रिया है. आपकी इस रचना के लिए आपको सादर बधाई .. .
सौरभ जी, आपसे अपनी इस बाल रचना पर प्रशंसा पाकर बहुत ही खुशी हुई...आपका बहुत-बहुत धन्यबाद.
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