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दादा जी के सुन खर्राटे
घुर घुर घुर घुर घुर्र रे
काऊ माऊ काऊ माऊ
उड़ी चिरैया फुर्र रे.

घर में है नन्हा –सा टॉमी
पूँछ हिला कर करे सलामी
आये कोई अनजाना तो
करता गुर गुर गुर्र रे.

तपत कुरू कहता है मिट्ठू
उसको मिर्च खिलाये बिट्टू
मन ललचाये,खुद भी खाये
करता सी - सी  सुर्र रे.

चुपके आया चूहा चीं चीं
ज्यों बिट्टू ने आँखें मीचीं
बिस्कुट लेकर बिल में भागा
खाता कुर कुर कुर्र रे.

मोटर लाये मोनू भैया
चले घूमने झुमरीतलैया
इठलाती बलखाती गाड़ी
चलती भुर भुर भुर्र रे...

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

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Replies to This Discussion

आदरणीया अरुण जी ,

सादर अभिवादन 

दादा जी के खर्राटे 

एक नया सुर 

बधाई आपको 

आ गए 

बाल पुर 

सादर 

आदरणीय प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा भाई साहब, बालपुर में एक नया सुर, क्या बात है हुजूर .सादर.....

बहुत सुन्दर! प्रशंसा के लिए पर्याप्त शब्द नहीं हैं। बधाई स्वीकारें।

आदरणीय बृजेश नीरज भाई साहब, आपने तो बिना शब्दों के ही बहुत कुछ कह दिया, आभार...........

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