For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

''छन्द काव्यामृत"...-----------------.रचनाकार- डा0 आशुतोष बाजपेयी

!!! पुस्तक समीक्षा !!!

''छन्द काव्यामृत".....

............पारंपरिक छन्द विधाओं का परिपालन करते हुए सरस, सहज और धारा प्रवाह विचार, बोधगम्य, जनकल्याणकारी, देश प्रेम से ओत-प्रोत भकित भाव में नत कुटिलताओं के विरूध्द चटटान की तरह अडिग और सशक्त अभिव्यकितयों के सशक्त हस्ताक्षर डा0 आशुतोष बाजपेयी जी ज्योतिषाचार्य होने के साथ ही साथ एक सहृदय सुकवि भी हैं। जब व्यकित स्वयं को समर्पण कर देता है तो उसका स्व, आत्मबोध रूप अहं नष्ट हो जाता है और वह परम सत्य को प्राप्त करने में सफल भी हो जाता है। सुकवि डा0 आशुतोष बाजपेयी जी एक उत्कृष्ट और ओजस्वी छन्दकार के रूप में उभर कर हिन्दी के साहित्याकाश में दैदीप्यमान हुए हैं। आपने अपने सतत और लगनशील जिजीविषा से हिन्दी के छन्द विधाओं पर गहन अध्ययन किया है, चूंकि श्री बाजपेयी जी एक सफल ज्योतिषाचार्य भी है। इस कारण भी इनके छान्दसिक रस धारा में पवित्रता, रहस्य और लालित्य का पुट सर्वथा देखने को मिलता है। आपकी कृति छन्द काव्यामृत में मनहरण, घनाक्षरी छन्दों में प्राय: यदा कदा नवीन प्रयोग भी देखने को मिलते हैं। यहां एक विशेष बात कहना चाहूंगा कि आप मां शारदा के अनन्य भक्त होने के कारण भी छन्दों में जो समर्पण भावों का प्रतिपादन हुआ है, स्तुत्य योग्य है। सर्व मंगलकारी एवं भारतीय संस्कृति से ओत-प्रोत ओजस्वी भाषा में छन्दों की रचना बहुतायत से मिलती है। आप एक प्रेरणा स्रोत के रूप में नवोदित छन्दकारों को आकर्षित करने में सफल हुए हैं।

आपका विषय विशद और बहुआयामी होने के कारण आपने देश, धर्म, क्षेत्र और जाति वर्ण आदि अन्य विषम विषयों को चुना है। हर विषय क्षेत्र में आपकी साहित्य प्रेम का सूर्यकेतु आकाश मण्डल में फहरा रहा है। छन्द काव्यामृत.....घनाक्षरी खण्ड में कुल इकहत्तर छन्द और सवैया में कुल छत्तीस छन्दों का प्रतिपादन हुआ है। इस छन्द काव्यामृत में सृजनात्मक, परिमार्जनात्मक के प्रति विशेष ध्यान रखते हुए काव्य सौष्ठव का अदभुत संयोजन किया गया है। आपने तत्सम शब्दो का उल्लेख बड़ी ही सावधानी पूर्वक मात्रामैत्री और वर्णमैत्री में सामांजस्य बैठा कर ही प्रयोग किया है। सवैया छन्द को अभिव्यक्त करने में आपने कहीं भी मात्रापात के महास्त्र की बैसाखी का सहारा नहीं लिया।

घनाक्षरी खण्ड-1 में विविधताओं का सामंजस्य बडे़ ही विवेक से विषयपरक शैली मे धाराप्रवाह भावपूर्ण रचनाओं को संजोया है, जो इनके शिल्पकला का धोतक है। आइये आपकी विशिष्ठ शैलिपक विन्यास पर कुछ छन्दों का अमृतपान करते है-

"स्वर्णमेखला के साथ शुभ्रवस्त्र धारिणी मां, कर जोड़ दास हम सेवा में खड़े हुए।"

प्रस्तुत विनय में कवि ने स्वयं को अकिंचन दास की श्रेणी में रखकर एक पैर पर खड़े होकर सर्वकल्याणकारी सेवाओं में स्वयं को आहुति होने के लिए आग्रह करता है। अदभुत भाव--अतिसुन्दर है।

''कालजयी बन जाएं सभी रचनाएं मेरी, ख्यातिवान कालिदास व्यास सम कर दे''

आपकी लालित्यपूर्ण भाषा अपना प्रभाव तो जमाने के साथ ही साथ नम्र भाव अनन्ताकाश में फैलने को उत्साहित भी हो रही है। आपकी रचनात्मक शैली कर्म के प्रति कर्मठता और जागरूकता के साथ विश्वास की दृढ़ता भी लिए हुए है-

किन्तु है दायित्व कर्इ वर दो कि पूर्ण हों वे, रचूं कालजयी छन्द प्रीति न हो धन में।।

आपके मानस पौरूष में देश प्रेम की भावना तो कूट-कूट कर भरी हुर्इ है-

भ्रष्टाचारी आततायी त्रास दे रहें हैं नित्य, घोर ताड़ना व दण्ड उन्हें एक बार दे।

भारत की नाव फंसी आज है भंवर मध्य पतवार कृपा की लगा के उसे खेना मां।

जनकल्याणकारी कार्यो के हित मार्गो के प्रशसित हेतु आप हिय से अधीर होकर विकल स्वर में गाते है-

धर्म क्षेत्र में पतन देख है व्यथित मन, आसुरी प्रवृतितयों से ठान अब रार लो।
मत्र में ही नही सभी दीन हैं पुकार रहे, आर्य भूमि शोधन को अम्ब अवतार लो।।
''दण्ड दे जो रावणों को ज्ञात नहीं कहां राम, आर्य धर्म रक्षणार्थ अम्ब अवतार लो''

साम्यवादी, आहिंसा के पुजारी और सहृदय कवि की परख है-

शकितयां अकूत संग साहस प्रभूत मिले, किन्तु कभी हृदय में क्रोध को न आने दो।

''प्रेरणा बनों करो सुधार मानसिकता का, अन्यथा विनाश मित्र निशिचत समाज का।''

हाड़ तोड़ श्रम करें फिर भी रूदन करें, सभी त्राहिमाम करें हाय! मंहगार्इ में।

आपका सदसाहित्य चिंतन और अथाह प्रेम अनायास ही पाठक के हृदय को झकझोर देता है-

''काव्य साधको की पथ बाधा बने ऐसे लोग, दम्भ मूढ़ वे विरोध करें छन्द का।''

और-मूढ़ बुधिद काव्य शास्त्र को न जानते परन्तु, धिक आधुनिक काव्य नियम बखानते।

आपकी देश प्रेम भावना तो सातवें आसमान पर चढ़कर शंखनाद कर रही है-

ऐसे नाटको से नष्ट होेगा नहीं उग्रवाद, सत्ताधीश मात्र स्वप्नलोक में पड़े हुए।

और-लेखनी व तलवार द्रोही धर्म का चलाए, उसे मृत्युदण्ड का विधान होना चाहिए।

''ओ रे अमरीका! अब खोल के नयन देख, धूर्त पाक की ये कैसी रक्त की पिपासा है।

हिन्दी साहित्य में वैचारिकता और गुरू-शिष्य की परम्परा को आगे बढ़ाने में उत्सुक अपनी व्यग्रता का यूं उल्लेख करते हैं-

हस्तयुग्म चौरदण्ड में बांट लिए जाएं, ले अंगुष्ठ शिष्य का बचाव करता हूं मैं।

रोक सके मेधा के पलायन को देश से जो, राष्टभाव युक्त सुनेतृत्व की तलाश है।

''लुप्त प्राय श्रवण कुमार हुए आज वहीं, धन का प्रभाव बढ़ा क्षीण हुर्इ ममता।''

छन्द काव्यामृत के खण्ड-2 में आपने सवैयों के माध्यम से नये-नये प्रतीक-प्रतिमानों का आज के भौतिक और वैज्ञानिक युग में भी कालजयी बिम्बो का सहज प्रयोग परिलक्षित होता है-

"धुनते सिर सज्जन है कितना सब पाप निरन्तर जोड़ रहे!"

बसुधा न कुटुम्ब रही अब तो, परिवार यहां जन तोड़ रहा।'

निज की पहचान करो तुम तो, तम नाशक वीर धनुर्धर हो।

सर्वधर्म समभाव से ओत-प्रोत सवैया-

''रूप व नाम न दे पहचान, जुनैद कहे खुद को अब भीमा।
मूल्य पचास हजार तुले यह, जीवन हो न कहीं यदि बीमा।। ''

मन में न हुआ अहलाद कभी, मुझको डर मध्य कराह रही।
किस भांति प्रसन्न करूं सबको, यह पीर अतीव अथाह रही।।

आप एक सिध्द ज्योतिषाचार्य होने के कारण छन्दों मे ज्यातिर्विज्ञान सम्बन्धी दिव्य ज्ञान की ज्योति से आपकी लेखनी अछूती नहीं रह सकी और दिव्य आलोक-प्रतिमान व सफल जीवन की रेखा को परिभाषित कर रही है-

बध्द परस्पर कण्ठ दिखे निज, द्वेष भुलाकर के हमजोली।

यथा शनि देव के लिए- रवि के तुम पुत्र यमाग्रज हो, नित न्याय प्रसार किया करते।

प्रज्वलितागिन नवान्न चढ़ा तब, खेल मनुष्य रहे सब होली।।

तिल तैल व दीपक पूजन से, जन दुष्ट कृपा तब हैं हरते।

गुरू-शिष्य की परंपरा को दृढ़ करते हुए सुकवि डा0 आशुतोष बाजपेयी ने स्वयं ही स्पष्ट किया है कि उन्हे वरिष्ठ साहित्यकारों का स्नेह और मार्गदर्शन मिला है, जिसके बिना यह छन्द काव्यामृत का संकलन प्रकाशन हो पाना असम्भव था। आप के साहित्यानुराग, कठिन परिश्रम और अपने चर्चित शब्दशिल्प विन्यास के कारण ही छन्दों में पूर्ण प्रवाह सहजता एवं सरसता विहित है। आशा करता हूं कि डा0 बाजपेयी जी की यह कृति छन्द काव्यामृत को विद्वानों द्वारा हर्ष से अंगीकार किया जायेगा तथा नवोदित छन्दकारों के लिए यह पुस्तक प्रेरणादायी सिध्द होगी। इसी के साथ मैं आदरणीय डा0 आशुतोष बाजपेयी जी को शुभकामनाओं सहित हार्दिक धन्यवाद व बधार्इ देता हूं। और आशा करता हूं कि आपका यह सफर अबाध्य गति से निरन्तर चलता रहेगा।

शुभ-शुभ......।

रचनाकार- डा0 आशुतोष बाजपेयी .....मो0 नं0-9335903222
पुस्तक का मूल्य-रू0 150.00.....माण्डवी प्रकाशन, देहली गेट, गाजियाबाद, उ0प्र0

समीक्षाकार-के0पी0 सत्यम----मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 927

Replies to This Discussion

भाई केवल प्रसादजी, आपका आलोचना के क्षेत्र में हार्दिक स्वागत है. किन्तु, इस प्रयास के पूर्व जो अभ्यास आवश्यक है उसमें दीखती कमी कई तथ्यों को रेखांकित करती है. आपने आलोच्य पुस्तक के लेखक/ रचयिता से अपने व्यक्तिगत परिचय की विशेष उद्घोषणा को अधिक समय दिया है, बनिस्पत छंद-संग्रह की समालोचना करने के.

विश्वास है, आप मेरे कहे को सकारात्मक रूप से लेंगे.

इसी मंच पर पुस्तक आलोचना विषय पर एक संक्षिप्त आलेख प्रस्तुत हुआ है. उस पर आपकी दृष्टि और टिप्पणी की प्रतीक्षा रहेगी - 

http://openbooksonline.com/group/Pustak_samiksha/forum/topics/51702...

शुभेच्छाएँ

आ0 सौरभ सर जी,  आपने बिलकुल सही इंगित किया है।  कवि को मित्र होने के कारण से नहीं बल्कि समाज की सार्थकता और नवोदित साहित्यकारों को दृ-िष्ठगत रखते हूए समीक्षा में कुछ नरमी जरूर आयी है। जिसे सर्वजन हिताय को दृ-िष्टगत रखते हुए क्षम्य योग्य समझा जा सकता है।  हां! वास्तव में परख को तीव्रता और सम्यक गति प्रदान करनी होगी।  तभी समीक्षा जैसे विषयों के साथ गभीरता एवं उपादेयता परिल-िक्षत हो सकेगा। भविष्य में इस बात पर भी ध्यान रखूंगा।  आपका हार्दिक आभार। सादर,

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
3 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय  निलेश जी अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई इस ग़ज़ल के लिए।  "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि शुक्ल भैया,आपका अलग सा लहजा बहुत खूब है, सादर बधाई आपको। अच्छी ग़ज़ल हुई है।"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"ब्रजेश जी, आप जो कह रहें हैं सब ठीक है।    पर मुद्दा "कृष्ण" या…"
Tuesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
Monday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service