For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पुस्तक सलिला: 'खुले तीसरी आँख' : प्राणवंत ग़ज़ल संग्रह संजीव 'सलिल' * (पुस्तक विवरण: खुले तीसरी आँख, हिंदी ग़ज़ल (मुक्तिका) संग्र

पुस्तक सलिला:                                                                   

'खुले तीसरी आँख' : प्राणवंत ग़ज़ल संग्रह

संजीव 'सलिल'

*

(पुस्तक विवरण: खुले तीसरी आँख, हिंदी ग़ज़ल (मुक्तिका) संग्रह, चन्द्रसेन 'विराट', प्रथम संस्करण, आकर डिमाई,  पृष्ठ १७८, मूल्य २५० रु., समान्तर प्रकाशन तराना उज्जैन)

 

हिंदी ग़ज़ल के सम्बन्ध में सुप्रसिद्ध गीत-गज़लकार श्री गोपाल प्रसाद सक्सेना 'नीरज' का मत है_ ''क्या संस्कृतनिष्ठ हिंदी में गज़ल लिखना संभव है? इस प्रश्न पर यदि गंभीरता से विचार किया जाये तो मेरा उत्तर होगा-नहीं |....हिंदी भाषा की प्रकृति भारतीय लोक जीवन के अधिक निकट है, वो भारत के ग्रामों, खेतों खलिहानों में, पनघटों बंसीवटों में ही पलकर बड़ी हुई है | उसमे देश की मिट्टी की सुगंध है | गज़ल शहरी सभ्यता के साथ बड़ी हुई है | भारत में मुगलों के आगमन के साथ हिंदी अपनी रक्षा के लिए गांव में जाकर रहने लगी थी जब उर्दू मुगलों के हरमों, दरबारों और देश के बड़े बड़े शहरों में अपने पैर जमा रही थी वो हिंदी को भी अपने रंग में ढालती रही इसलिए यहाँ के बड़े बड़े नगरों में जो संस्कृति उभर कर आई उसकी प्रकृति न तो शुद्ध हिंदी की ही है और न तो उर्दू की ही | यह एक प्रकार कि खिचड़ी संस्कृति है | गज़ल इसी संस्कृति की प्रतिनिधि काव्य विधा है | लगभग सात सौ वर्षों से यही संस्कृति नागरिक सभ्यता का संस्कार बनाती रही | शताब्दियों से जिन मुहावरों, शब्दों का प्रयोग इस संस्कृति ने किया है गज़ल उन्ही में अपने को अभिव्यक्त करती रही | अपने रोज़मर्रा के जीवन में भी हम ज्यादातर इन्ही शब्दों, मुहावरों का प्रयोग करते हैं | हम बच्चों को हिंदी भी उर्दू के माध्यम से ही सिखाते है, प्रभात का अर्थ सुबह और संध्या का अर्थ शाम, लेखनी का अर्थ कलम बतलाते हैं | कालांतर में उर्दू के यही पर्याय मुहावरे बनकर हमारा संस्कार बन जाते हैं | सुबह शाम मिलकर मन में जो बिम्ब प्रस्तुत करते हैं वो प्रभात और संध्या मिलकर नहीं प्रस्तुत कर पाते हैं | गज़ल ना तो प्रकृति की कविता है ना तो अध्यात्म की वो हमारे उसी जीवन की कविता है जिसे हम सचमुच जीते हैं | गज़ल ने भाषा को इतना अधिक सहज और गद्यमय बनाया है कि उसकी जुबान में हम बाजार से सब्जी भी खरीद सकते हैं | घर, बाहर, दफ्तर, कालिज, हाट, बाजार में गज़ल  की भाषा से काम चलाया जा सकता है | हमारी हिंदी भाषा और विशेष रूप से हिंदी खड़ी बोली का दोष यह है कि  हम बातचीत में जिस भाषा और जिस लहजे का प्रयोग करते हैं उसी का प्रयोग कविता में नहीं करते हैं | हमारी जीने कि भाषा दूसरी है और कविता की दूसरी इसीलिए उर्दू का शेर जहाँ कान में पड़ते ही जुबान पर चढ जाता है वहाँ हिंदी कविता याद करने पर भी याद नहीं रह पाती | यदि शुद्ध हिंदी में हमें गज़ल लिखनी है तो हमें हिंदी का वो स्वरुप तैयार करना होगा जो दैनिक जीवन की भाषा और कविता की दूरी  मिटा सके |''

  

नीरज के समकालिक प्रतिष्ठित गीत-गज़लकार श्री चंद्रसेन 'विराट' इस मत से सहमत नहीं हैं. अपने ११ हिंदी ग़ज़ल संग्रहों के माध्यम से विराट ने गज़लियत और शेरियत को हिंदी एक मिजाज में ढलने में सफलता पायी है, यह जरूर है कि विराट की भाषा शुद्ध और परिष्कृत होने के नाते अंग्रेजी भाषा में प्राथमिक शिक्षा पाये लोगों को क्लिष्ट लगेगी. विराट ने ग़ज़ल लेखन के शिल्प में उर्दू के मानकों को पूरी तरह अपनाया है. उनकी हर ग़ज़ल का हा र्शेर बहरों के अनुकूल है किन्तु वे उर्दू की लफ्ज़ गिराने या दीर्घ को लघु और लघु को दीर्घ की तरह पढ़ने की परंपरा से असहमत हैं. उनकी भाषिक दक्षता, शब्द भण्डार और अभिव्यक्ति क्षमता इतनी है कि कि भावाभिव्यक्ति उनके लिये शब्दों से खेलने की तरह है. शिल्प के निकष पर उनकी हिंदी ग़ज़लों को कोई खारिज नहीं कर सकता, कथ्य की कसौटी पर हिंदी की भाषागत शुचिता, भावगत प्रांजलता, बिम्बगत टटकापन, अलंकारगत आकर्षण, शैलीगत स्पष्ट व सरलता और संकल्पनागत मौलिकता विराट जी का वैशिष्ट्य है. अभियंता होने के नाते आपने सृजन को काव्यगत मानकों पर कसा जाना उन्हें अपरिहार्य प्रतीत होता है. उन्ही के शब्दों में-
यह जरूरी है कि कृति का आकलन होता रहे.
न्यूनताओं और दोषों का शमन होता रहे.
*
कथ्य, भाषा, भाव, शैली, शिल्प पर भी आपका
साथ रचना के सदा चिंतन-मनन होता रहे.
*
विराट की आत्मा का तरह उनकी ग़ज़लों का स्वर गीतमय है. वे आरंभ में ग़ज़ल को गीतिका कहते रहे हैं किन्तु यह संज्ञा हिंदी छंद शस्त्र में एक छंद विशेष की है. विराट जी के लिये हिंदी-उर्दू खिचडी के डाल-चाँवल की तरह है. वे हिंदी की शुद्धता के पक्षधर होते हुए भी उर्दू के शब्दों का यथावश्यक निस्संकोच प्रयोग करते हैं. विराट जी अपनी सृजन प्रक्रिया को स्वयं तटस्थ भाव से निरखते-परखते हैं. पहले आपने आप से पूछते हैं 'गीत सृजन कब-बकब होता है?', फिर उत्तर देते हैं- 'जब होना है तब होता है'. सृजन प्रक्रिया यांत्रिक नहीं होती कि मशीनी उत्पाद की तरह कविता का उत्पादन हो. विराट जी की अनुभूति हर रचनाकार की है- 'यह होना कैसे समझाऊँ? सचमुच खूब अजब होता है'. विराट जी सृजन का उत्स पीड़ा, दर्द, अभाव, वैषम्य जनित असंतोष और परिस्थिति में परिवर्तन की जिजीविषा को मानते हैं. उनके शब्दों में

'प्रेरक कोई कांटा, अनुभव / कोई एक सबब होता है.  - पृष्ठ ११
*
दर्द ही तो देवता अक्षय सृजन के स्रोत का / छंद से उसका हमेशा संस्तवन होता रहे.  - पृष्ठ ५
*
दुःख, दर्द, अश्रु, आहें तेरे ही नाम हैं सब / हम गीत में निरंतर इनको उचारते हैं. - पृष्ठ १३
*
दुःख न जग का गा सके, वह एक सच्चा कवि नहीं / प्यास होठों पर न जिसके, आँख में पानी न हो - पृष्ठ १२६
*
जीवन के मरु में कविता को मरु-उद्यान किया जाता है 
भीतर उतर स्वयं अपना ही अनुसन्धान किया जाता है. - पृष्ठ ६२
*
हम मीरा के वंशज हमने कहन विरासत में पाई है / अमरित के जैसी सच्चाई हमने पीकर ग़ज़ल कही है. - पृष्ठ १८
*
रोज जी-जी मरे / रोज मर-मर जिए...  जिंदगी क्यों मिली / सोचिए-सोचिए. - पृष्ठ ६७
*
विराट जी की सकारात्मक, तटस्थ, यथार्थपरक सोच उनकी हर रचना में मुखर होते हैं. वे सत्य से डरते नहीं, सत्य कितना भी अप्रिय हो उसे आवरण से ढंकते नहीं, जो जैसा है उसे वैसा ही स्वीकारते हैं और शुभ का संस्तवन करते समय अशुभ के परिवर्तन का आव्हान करना नहीं भूलते किन्तु उनके लिये परिवर्तन या बदलाव का रास्ता विनाश नहीं सुधार है. विराट जी सात्विकता, शुचिता, शालीनता, मर्यादा, संतुलन और निर्माण के कवि हैं. वे आजीविका से अभियंता रहे हैं और इस रूप में अपने योगदान से संतुष्ट भी रहे हैं, संभवतः इसीलिये वे ध्वंसात्मक क्रांति की भ्रान्ति से हमेशा दूर रहे हैं.
गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहों सँग हाथ लगा कुछ बड़े पुलों में
मैंने मेरा सारा जीवन व्यर्थ गुजारा नहीं लगा है - पृष्ठ ५०
*
इसी कारण विराट जी के काव्य में वीभत्स, भयानक या रौद्र रस लगभग अनुपस्थित हैं जबकि श्रृंगार, शांत व  करुणा का उपस्थिति सर्वत्र अनुभव की जा सकती है. विराट जी इंगितों में बात करने के अभ्यस्त हैं. वे पाठक को लगातार सोचने के लिये प्रेरित करते हैं.
इतने करुण हैं दृश्य कि देखे न जा सकें / क्यों देश को हो नाज? कहो क्या विचार है? - पृष्ठ १७१
*
हाथों से करके काम हुनरमंद वे हुए / हम हाथ की लकीर दिखाने में रह गये. - पृष्ठ १६४
*
करते प्रणाम सभी चमत्कार को यहाँ / सरसों हथेलियों पे जमाव तो बात है. -- पृष्ठ ४२
*
विराट जी समकालिक सामयिक परिस्थितियों का आकलन अपनी तरह से करते हैं और जो गलत होते देखते हैं निस्संकोच उद्घाटित करते हैं. 'खुले तीसरी आंख' में विराट जी ने हर रिसते नासूर पर नश्तर चलाये हैं किन्तु अपने विशिष्ट अंदाज़ में-
हमें जो दीखता होता नहीं है वह सियासत में / शिकारी के पिछाड़ी भी शिकारी और होता है. - पृष्ठ १७
*
यह आधुनिकता द्वंद्व है, छलना है, ढोंग है / जिस्मों की भूख-प्यास है, कहने को प्यार है. - पृष्ठ ५१
*
विराट-काव्य का सर्वाधिक आकर्षक और सशक्त पक्ष श्रृंगार है. वे श्रृंगार की उत्कटता को चरम पर ले जाते समय भी पूरी तरह सात्विक और मर्यादित रखते हैं-
सुबह से निर्जला एकादशी का व्रत तुम्हारा है / परिसा प्यार से मुझसे मगर खाया नहीं जाता.. - पृष्ठ १४८
भावनाओं की ऐसी सूक्ष्म अभिव्यक्ति की चादर शब्दों के ताने-बाने से बुनना विराट के ही बस की बात है. प्रिय के मुखड़े को हथेली में थामकर देखने की सामान्य मुद्रा को विराट जी कितना पावन क्षण बना सके हैं-
भागवत सा है तुम्हारा मुखड़ा / दो हथेली की रहल होती है. - पृष्ठ १३२ 
*
जब महफिल में उसे विराजित, सम्मुख पाया नहीं गया है
तब सचमुच में बहुत हृदय से, हमसे गया नहीं गया है. - पृष्ठ २५
*
प्यार को पूजा पर वरीयता देते विराट की अभिनव दृष्टि और बिम्ब का कमाल देखिये-
जिस पर तितली चिपक गयी थी, पूजा हित वह कुसुम न तोडा.
माफ़ करें इस प्रणय-मिथुन को तो अलगाया नहीं गया है. - पृष्ठ २५
*
विराट सनातन सत्य और समयजयी कवियों की विरासत थाती की तरह गहते हैं यह उनकी काव्य-पंक्तियाँ बताती है.
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय.
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पद जाए..   - महाकवि रहीम
*
चलो जोड़ा गया टूटे हुए संबंध का धागा.
मगर जो पड़ गयी है वह गिरह देखी नहीं जाती. विराट - पृष्ठ३३
*
'दिल मिले या न मिले हाथ मिलाये रहिये' का भाव विराट की शैली में यूँ अभिव्यक्त हुआ है-
हमारे मन नहीं मिलते, फकत ये हाथ मिलते हैं.
लडाई के लिये होती सुलह देखी नहीं जाती. - पृष्ठ ३४
*
विराट के लिये कविता करना शौक, शगल या मनोरंजन नहीं पवित्र कर्त्तव्य, पूजा या जीवन-धर्म है. उन जैसे वरिष्ठ कवि-कुल गुरु की पंक्तियाँ नवोदितों को रिचाओं / मन्त्रों की तरह स्मरण कर आत्मस्थ करना चाहिए ताकि वे काव्य-रचना के सारस्वत कर्म का मर्म समझ सकें.

कितनी वक्रोक्ति, ध्वनि, रस का परिपाक है? / कथ्य क्या?, छंद क्या?, शब्द विन्यास है. - पृष्ठ १५४
*
गीत का लेखन तपस्या से न कम / आप कवि मन को तपोवन कीजिये. - पृष्ठ १५०
*
गजल का शे'र होठों पर, उअतर कर जिद करे बोले
कहे बिन रह न पायें जब, उसे तब ही कहा जाए. १२९
*
सच को सच कहता है सच्चा शायर / खूब हिम्मत से हो बेबाक बहुत. - पृष्ठ ११०
*
कविता, कविता हो, पद्य हो उसको / गद्य सा मत सपाट होने दे.
अपने कवि को तू कवि ही रख केवल / उसको चरण न भाट होने दे - पृष्ठ ११२
*
दुःख न जग का गा सके, वह एक सच्चा कवि नहीं.
प्यास होठों पर न जिसके, आँख में पानी न हो. - पृष्ठ १२६
*
समीक्ष्य कृति का आवरण आकर्षक, मुद्रण स्वच्छ व शुद्ध है. पाठ्य-त्रुटियाँ नगण्य हैं- यथा: पोशाख - पृष्ठ१३४, प्रितिष्ठित - पृष्ठ १३५. मुझे एक पंक्ति में अक्रम या व्युतिक्रम काव्य-दोष प्रतीत हुआ- 'तन के आँगन चौड़े, मन के पर गलियारे तंग रहे हैं' में पर को मन के पहले होना चाहिए. संयोजन शब्द 'पर' तन और 'मन' को जोड़ता है, गलियारे को नहीं. अस्तु...
'खुली तीसरी आँख' विराट जी का ११ वाँ हिंदी गजल संग्रह है. विराट जी का काव्य-कौशल इस संग्रह में शीर्ष पर है. सुधी पाठकों ही नहीं, कवियों के लिये भी यह संकलन पठनीय और मननीय भी है.

**************** 
 

  •  Acharya Sanjiv Salil

 

Views: 555

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
6 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Jul 29
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service