एक राजस्थानी मुसल्सल ग़ज़ल
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यादड़ल्याँ रा घोड़ां ने थे पीव लगावो एड़ |
सुपणे मांयां आय पिया जी छोड़ो म्हासूँ छेड़ | १|
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इंया तो म्हें गेली प्रीतड़ली में थांरी भोत
चालूँ थांरे लारे लारे ज्यूँ सीधी सी भेड़ | २|
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नींदड़ली रो काम उचटणों हो ग्यो नित रो खेल
जद जद दरवाजो रात्यां ने देवे पून भचेड़ |३ |
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एक महीनो के'र गया अब साल हुयग्या तीन
गाँव उडीके,बेगा आओ , सगळा काम निवेड़ | ४ |
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हूक उठे जद कागलिया नित बैठे आ'र मुँडेर
दिन में सौ सौ बारी जाऊँ निरखूँ साजण मेड़ | ५ |
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धान घणो चढ़ ग्यो खेताँ में रीशाँ बळता लोग
देख धणी बिन सूनी खेती देवे ऊँट घुसेड़ | ६|
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कित्ता दिन धीरज रा पौधा राखूँ रोज सँभाळ
आँधी हिवड़े में उट्ठे जद उखड़े सगळा पेड़ |७ |
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ई चिन्ता में बळती रेऊं कांईं हो ग्यी बात
सौतण कोई घाल रई ना हिवड़ा माँय तरेड़ | ८ |
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आया क्यूँ नी जाण खबर थे समझी कोनी बात
जेठ घरां जद पड़ी पुलिस री पिछले हफ़्ते रेड़ | ९ |
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
भावार्थ
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(१) यादों के घोड़ों को मेरे प्रियतम एड़ लगाइये और सपने में आकर मुझ से छेड़ मत कीजिये |
(२) वैसे तो मैं आपके प्यार में बहुत पागल हूँ और एक सीधी भेड़ की तरह आपके पीछे पीछे चलती हूँ |
(३)नींद उचटना तो रोज का खेल हो गया है | रात को जब जब हवा दरवाजे पर दस्तक देती है |
(४) एक महीने का कह कर गए थे और तीन साल हो गए हैं ,पूरा गाँव आपकी प्रतीक्षा कर रहा है जल्दी आइये सारा काम समाप्त कर के |
(५) कौआ जब मुँडेर पर आकर बैठता है तो हूक सी उठती है ,दिन में सौ सौ बार मेड़ पर जाकर देखती हूँ |
(६) खेत में धान खूब चढ़ा हुआ है और लोग जलन के मारे और बिना मालिक के सूने खेत देखकर ऊंट घुसेड़ देते हैं |
(७ ) धीरज के पौधों को अभी तक सम्भाल रखा है लेकिन ह्रदय में आंधी उठने पर ये पेड़ उखड़ने की संभावना है |
(८) इस चिंता में जलती रहती हूँ कि क्या बात है आप आते क्यों नहीं ,कहीं ऐसा तो नहीं कोई सौतन हमारे दिलों के बीच दरार डाल रही हो |
(९) एक बात समझ नहीं आई कि ये खबर जान कर भी आप क्यों नहीं आये जब जेठ जी के घर पुलिस का पिछले हफ्ते छापा पड़ा था |
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