[ इस लेख में नेपाली कविता को समझने के लिए अंतर्जाल पर उपलब्ध नेपाली-हिन्दी विक्षनरी का उपयोग किया गया है फिर भी किसी त्रुटि के लिए लेखक छमाप्रार्थी है ]
विश्व में मानव चाहे कही निवास करता हो, चाहे उसकी कोई भाषा हो परन्तु भावना के स्तर पर सभी समान है I आर्ष साहित्य में जिन्हें तन्मात्राये कहते है उन शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श का बोध सम्पूर्ण नृजाति को एक सा होता है I इसी प्रकार षट विकार भी आनुपातिक भेद से सभी जीवो में विद्यमान होते है I इन्ही के अधीन मानव का जीवन हँसते –रोते और चिन्तना करते समाप्त हो जाता है I यहाँ चिन्तना के अपने पर्याय है I एक चिन्तना वह है जो व्यक्ति अपनी आसन्न या आगत एवं संभावित समस्याओ के संबंध में करता है I दूसरी चिन्तना वह है जो मनुष्य की संवेदनाओ को उभारती है और उसके अधरो पर तैरत्ती है I इस प्रकार की चिन्तना थोड़ी बहुत सब में होती है I तभी मनुष्य हँसता ,गाता या परिहास करता है I किन्तु जहाँ संवेदनाये अनुभूतियो से अधिकाधिक अनुप्राणित होती है वहां साहित्य का सृजन होता है, भले ही मनुष्य की संस्कृति या उसकी भाषाए जुदा क्यों न हो I हमारे पड़ोसी देश नेपाल की सभ्यता और संस्कृति हमसे अलग नहीं है I विश्व के पटल पर उसकी मान्यता एक हिंदू देश के रूप मे है I हमारी भाषा और नेपाली भाषा में भी काफी साम्य है I वैसे तो कबीर कह ही गये है कि –
चार कोस पर पानी बदले I आठ कोस पर बानी I
भारत हो या कोई अन्य देश हम मानो एक परंपरा के रूप में देखते है कि जो देश या नगर पहाड़ो में बसे है वहां के गीतों और लोक-गीतों में गज़ब की प्राण शक्ति पाई जाती है I उसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि जीविका की तलाश में जो व्यक्ति एक बार पहाड़ छोड़ता है वह फिर अतिथि ही बनकर रह जाता है और वहां प्रवस्यतपतिकाओ के उच्छ्वास दर्द भरे गीतों के रूप में नीरव वातावरण को गुंजायित करते रहते है I
नेपाल का गीति-साहित्य पर्याप्त समृद्ध है I लक्ष्मी प्रसाद देवकोटा तो सुमित्रानंदन पन्त के समकालीन और उच्च कोटि के गीतकार थे I तत्कालीन नेपाली गीतकारो में रतनदास प्रकाश ,भीम निधि तिवारी ,जन कवि केशरी धर्म राज थापा इत्यादि प्रमुख है I नए गीतकारो में माधव धिमिरे, अगम सिंह गिरो, मंजुला सन्याल, रवींद्र शाह, लक्ष्मण रोहिणी, अम्बर गुरंग, शमशीर थापा, चांदनी शाह के नाम उल्लेखनीय है I
उक्त परंपरा में नेपाली कवयित्री रमोला देवी शाह ‘छिन्नलता ‘ का स्थान उनके दर्द भरे गीतों के कारण सर्वोपरि है I इनका पहला गीत ‘ यो आत्म त्याग द्वारा गरूं भलाई ‘ रेडियो नेपाल से सन १९६३ में प्रसारित हुआ I इस गीत ने सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए I इसके बाद तो वे नेपाल रेडियो के लिए प्राणस्वरूप हो गयीं I छिन्नलता के तीन काव्य प्रकाशित हुये I 1- अंतर्भावना 2- अन्तरंग ३- अंतर्स्पंदन I इन काव्यो की एक भौतिक विशेषता यह है कि प्रत्येक रचना में सतहत्तर गीत संकलित है I यह शायद कवयित्री का लकी नम्बर रहा हो I नारी की विरह जनित पीड़ा का आवेग तो उनके गीतो मे है ही साथ ही वे अपने देश से भी अनुराग रखती है I सच्चे देश-भक्त की भांति वे नेपाली जनता को जाग्रत करते हुए देश-सेवा में जुट जाने का आह्वान भी करती है I यथा -
‘सबै भाई बहिनी भई गरौं यो राष्ट्र को सेवा
मिलाई काँधमा काँधे सबै साझा यो पेवा I
अर्थात, सभी भाई-बहन आपस में कंधे से कंधा मिलाकर राष्ट्र की सेवा में हिस्सेदारी करे I
ब्रह्म के संबध में छिन्नलता की सोच पूर्णतः भारतीय-दर्शन पर आधारित है I हमारे वेद एवं अन्यान्य आर्षग्रंथ जीव को ईश्वर का अंश मानते है – ईश्वर अंश जीव अविनाशी I छिन्नलता भी यही मानती है I उदाहरणस्वरूप उनके काव्य ‘अंतर्भावना’ का सन्दर्भ निम्न प्रकार है I
सबै प्राणीहरू एकै प्रभुका हुन उही अंश I
सबैको मूल हो एउटै फरक केवल भयो अंश I
अर्थात, सभी प्राणवान उस एक ही प्रभु का अंश है I सबका मूल केवल हिस्सेदारी का फरक है I
हमारे प्राचीन ग्रंथो से लेकर कबीर आदि सभी ने इस नश्वर शरीर को पंचभूत जन्य माना है I इसे प्रसाद पंचभूत का भैरव मिश्रण कहते है I छिन्नलता इसी बात को ‘अंतर्भावना’ में कुछ अलग ढंग से कहती है –
ईश्वर मलाई कांढ़ा तिमीले बनाई राख्यो
बरु देऊ लौ जलाई तापून सबै खुशीलै I
ईश्वर के प्रति छिन्नलता का समर्पण भाव हिन्दी साहित्य में प्रसिद्ध ‘प्रपत्ति’ के स्तर का है I आश्चर्य यह है की कबीर की भांति वह भी कहती है कि मैने – ‘मैलाई न चढ़ाई जीवन सफल गराऊँ I’ इसी पवित्रता के बल पर वह ईश्वर की शरण में जाती है और उनके दर्शन की आकान्क्षा करती है I वह यह भी कहती है के यदि मै आपके दर्शन नहीं पाती तो फिर मै कहाँ जाऊँ ? मानव संसार से निराश होकर ही तो ईश्वर की शरण जाता है और यदि वहां भी ठिकाना नहीं मिलता तो फिर वह कहाँ जाए ? तुलसी कहते है - जांउ कहाँ तजि चरण तिहारे I छिन्नलता के ‘अन्तरंग’ काव्य के अनुसार –
हे विश्व के नियंता ! दर्शन गर्न म पाऊ I
अर्को छ को र फेरि कसको शरण म जाऊ I
अर्पण च जे च मेरो आंये हजूर छेऊ I
महादेवी वर्मा में भी यही पीड़ा है , पर वह छायावाद युग की कवयित्री थी I उनके उपमा और रूपक इतने सशक्त थे कि ईश्वर की ओर स्पष्ट संकेत होने पर भी वर्णन दुनियाबी लगता था I उनकी पीड़ा अंतर्मुखी थी और प्रियसे मिलने की तो उनमे आकांक्षा ही नहीं थी i मीरा में यही भाव प्रबल था I उन्हें यह अटल विश्वास था कि गोपाल एक दिन अवश्य मिलेगे I यह सत्य उस दिन उद्घाटित हुआ जब अन्दर से मीरा द्वारा बंद किये गए रणछोड़ मंदिर में एकल मीरा ने अपने जीवन का अंतिम भजन गाया –
अब छोड़त नहीं बने प्रभूजी हंसकर तुरत बुलाओ हो I
मीरा दासी जनम जनम की अंग से अंग लगाओ हो I
इस भजन की समाप्ति पर मीरा का ईश्वर से सायुज्य मिलन हुआ I मंदिर के कपाट जब तोड़े गए तो मीरा का शरीरांश भी वहां नहीं था I इसीलिये मीरा अप्रतिम है I ईश्वर के प्रति प्रपत्ति भाव रखकर भी जब छिन्नलता कहती है कि - सम देख्णु जाति ठूलो ज्ञान कुनै छैन I मर्म आफैं बुझ्नु जस्तो धर्म कुनै छैन I अर्थात, समत्व भाव को देखो I मनुष्य जाति बड़ी है I जीवन का मर्म स्वयं बूझो I धर्म कुछ नहीं है I’ तो छणिक आश्चर्य भी होता है I
सांसारिक प्रेम के वर्णनों में भी छिन्नलता की संवेदना कम मुखर नहीं हुयी है I प्रिय से प्रथम मिलन की अनुभूति जीवन पर्यंत बनी रहती है और यह अनुभूति स्मृति ‘संचारी’ मे तब बदलती है जब मिलन और विछोह में अधिक अंतर न हो I छिन्नलता अपने काव्य ‘अंतर्भावना ‘ में इस धरोहर को निम्न प्रकार संजोती हैं –
त्यों चन्द्र किरण त्य्समाधि तिम्नो उज्जवल मुहार I
पहिलो भेट दुबैको चाह सुन्दर संसार I
त्यों मंद पवन जसमाथि हाम्नो स्नेहको सुवास I
मनका आशा मुटुका भाषा एकांत निवास I
अर्थात, वैसा ही चन्द्र किरण है I वैसा ही मुख्य द्वार है I पहली भेट में तो दोनों को ही यह संसार सुखमय और सुन्दर लगता है I वही मंद पवन है जिसमे हमारे स्नेह की सुवास है I अब जब तुम नहीं हो तो मन में केवल एक आशा है I एकांत का निवास है और ह्रदय की भाषा शेष है I
उक्त पंक्तियों में निश्चय ही नारी ह्रदय की पीड़ा झलकती है I यहाँ पर महादेवी वर्मा की याद आ जाना स्वाभाविक है I वे कहती है –
इन ललचाई पलको पर पहरा जब था ब्रीड़ा का I
साम्राज्य मुझे दे डाला उस चितवन ने पीड़ा का I
जब विप्रलंभ की बात होती है तब महादेवी की मेधा मनो फूट-फूट पड़ती है i जैसे-
1- बिछाती थी सपनो के जाल
तुम्हारी वह करुना की कोर I
गयी वह अधरों की मुस्कान
मुझे मधुमय पीड़ा में बोर I
2- मै फूलो में रोती वे बालारुण में मुस्काते I
मै पथ में बिछ जाती वे सौरभ में उड़ जाते I
कवयित्री रमोला देवी शाह के जीवन में चाहे कुछ रहा हो परन्तु इतना तो स्पष्ट है कि विरह उनका स्वभाविक जीवन बन गया था i बीच में प्रिय से मिलन की आश बंधी और फिर मिटी I इस सब ने कवयित्री को इतना मथ डाला कि अंततः उसे अपना उपनाम छिन्नलता रखना पड़ा यानि एक ऐसी लता जिसके पत्ते छिन्न हो गए हो I उसके जीवन में ‘कहो क्यों आश निराश भई’ की जो स्थितिया आई उनका कवयित्री ने जो स्वतः वर्णन किया, उसका निदर्शन देखिये –
1- यो जुनी त यस्तै भयो त्यों जुनी को आशा I
2- ऐलेको आशा न भये पानी भरे को लिउंला I
अखंड बत्ती मन माँ बाली उज्यालो दिउंला I
ऐसा लगता है मानो विरह का सारा संताप , सारी वेदना और सारी पीड़ा केवल विरहिणी के आशा, प्रतीक्षा और निराशा के सुद्रढ़ अधिकरण पर टिकी हुयी है I कवियों का विरह धरातल इन्ही मोड़ो, गलियारों, चौराहों तथो कोनो के इर्द गिर्द घूमता है I यहाँ तक की मीरा भी रात-रात भर जागकर कृष्णा की बाट ही जोहती है –
सखी मेरी नींद नसानी हो !
प्रिय को पंथ निहारत
सिगरी रैनि बिहानी हो !
महादेवी वर्मा की उर्वर कल्पना में आशा और प्रतीक्षा का यह द्रश्य कितना मोहक है –
हे नभ की दीपावलियां तुम पल भर को बुझ जाना I
मेरे प्रियतम को भाता तम के परदे में आना I
नेपाल की भाव प्रवण कवयित्री छिन्नलता भी किसी से कम नहीं है I यह उनकी अनन्य लोकप्रियता का ही दम है कि आज नेपाल में उनके नाम से गीत –संगीत का पुरस्कार दिया जाता है I आशा और प्रतीक्षा के इस द्वन्द में छिन्नलता का ह्रदय भी शत –शत बार ऊभ–चूभ हुआ है I वे कहती है –
सम्झी मुहार तिम्नो दिलमा
तिमी भरेर
पर्खी रहेछु तिमी आउला
भनेर !
नेपाली भाषा में तिमी का अर्थ तुम है किन्तु छिन्नलता के काव्य से ही यह प्रतिभासित होता है कि उनके प्रिय का ना म भी तिमी ही था I कवयित्री कहती है कि तुमको दिल से मैंने अपना समझा I दिल में तुम्ही समाये रहे I मै तुम्हारी प्रतीक्षा करती रही कि तुम अवश्य आओगे I इतना ही नहीं वह आगे भी कहती है –
एकलै जागी रातमा रुन्छु दिनमा टोलाऊंछु I
नाफर्की आउने परदेशीलाई गीतमै बोलाऊंछु I
अर्थात, रात में रोती हुयी अकेले जागी दिन में बावरी की तरह घूमी I बाट जोहती रही I गीतों से मै उसे बुलाती हूँ
किन्तु परदेशी पर कोई फर्क ही नहीं पड़ता I
ई एस -1/436, सीतापुर रोड योजना
सेक्टर-ए, अलीगंज, लखनऊ I
मो0 9795518586
(मौलिक व अप्रकाशित )
टिप्पणी- लेख में आये कतिपय नेपाली शब्दों का अर्थ
तिन्छी -लेना यसार -इससे
अर्को -अगले को -कौन है
छ –है र –और
तापनि -यद्यपि तिम्नो -तुम्हारे
पर्खी –प्रतीक्षा भरे -बाद में
कसरी -किस तरह दुबैको -दोनों में
मुटु -ह्रदय बोलाऊंच्छुं –बुलाना
भने -तो तिमिले -तुम
डेर -निवास दिन्छु –देती है
केही -कुछ दियेर –देकर
त्यपामो -उसका सट्टा –लेन –देन
छैन -नहीं है मैले -मैंने
रुन्छु -रोना दिउला -दिन
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समग्रमा छिन्नलता माथिको यो समीक्षा सुन्दर छ । यद्यपि भाषा, व्याकरण र वर्णविन्यासका कैयौँ कुरामा नेपाली र हिन्दी बीचमा धेरै भिन्नताहरू रहेका, समीक्षक हिन्दी भाषी हुनाले ती कुराहरूमा धेरै कमी कमजोरीहरू देखिन्छन् ।
म यहाँलाई स्वागत गर्न चाहन्छु नेपाली भाषाको समालोचनात्मक लेखको लागि, साथै तपाईको यो आँटको लागि बधाइ दिन चाहान्छु ।
आवाज शर्मा जी
आपका बहुत बहुत आभार i मै आपका बता दूं कि मुझे नेपाली भाषा का ज्ञान नहीं है पर मुझे छिन्नलता जी की कुछ रचनाये मिल गयी और नेपाली-हिन्दी शब्दकोष से उनका यथा संभव अर्थ निकालकर यह लेख मेहनत से लिखा गया है i आपको पसंद आया , यह मेरा सौभाग्य है i सादर i
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