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अइसन कब होई , "भोजपुरी धारावाहिक कहानी" "पहिलका कड़ी"

भोजपुरी धारावाहिक कहानी

अइसन कब होई
(पहिलका कड़ी)
 
बाबू देवव्रत सिंह आपन जनेऊ के माँजत (घुमाइ-घुमाइ पानी निकालत) मंदिर के सीढ़ी से उतरत रहले तबहीं उनकर कान में आवाज आइल - "राम-राम भाईजी, राम-राम ! ऊ सिर उठा के देखले त सामने अब्दुल मियाँ हाथ जोडले खड़ा रहुअन! देवव्रत सिंह के मुँह से निकलुवे, "आदाबअर्ज, भाईजान !"  दुनु आदमी गला से गला मिल के मंदिर के सोझा चउतरा प जाइके बइठ के बात करे लगलन - "हाँ त अब्दुलभाई सुनावऽ कइसन समाचार बा." ऊ कहलन, "बाबूसाहेब, ऊपरवाला के कृपा से सब बढ़िया बा." बाबूसाहेब माने देवव्रत सिंह सिर हिलावत कहलन, "हाँ, उनकर महिमा बनल रही त कवनो तकलीफ ना होई." अब्दुल मियाँ कहलन, "भाईजी, आपना बचिया खातिर एगो लईका देखले बानी.."  देवव्रत सिंह के चेहरा चमके लागल. ऊ पूछले, "कवना गाँव के हऽ.. का करेला?" "चलीं घरे, सब आराम से बतावत बानी. पेट महाराज कुलबुलाए प लागल बड़न. इनका कुछु चाहीं!" बाबूसाहेब "चलीं" बोल के उठ गइलन आ दुनू आदमी एक ओरि चल दिहलस लोग.
ऊ लोग जइसहीं बाबूसाहेब के दुआर पर पहुँचलन. बाबूसाहेब के लईका प्रकाश अब्दुलमियाँ के गोड़ छूइ के प्रणाम कईलस. ऊ असीरबाद दिहले आ प्रकाश फटाफट चउकी बिछा दिहले. बाबूसाहेब उन्करा के बइठे के बोल के खुदो बइठ गइलन.फेर ऊ प्रकाश के आवाज दिहले, "बबूआ जवन बनल होखे ऊ ले आवऽ. अपना चाचा के खियावऽ." त प्रकाश बोलले, "बाबूजी राउआ ना खायेम का." "हम काहें ना खायेम? हमारो खातिर निकलवावऽ.", सुनि के प्रकश भीतरी चलि गइलन. तब बाबूसाहेब कहलन, "त रउआ का कहत रहनी हाँ कि धरमपुरा के रघुनाथ सिंह के लईका ह, अबहीं पढ़े ला. अब रउए बताईं का पढ़त लइका से बेटिया के बिआह कइल ठीक होई?" अब्दुलमियाँ कहलन, "अरे भाईजी, लइका बीए फ़ाइनल में बा आ ऊ खेती करी. खात-पीयत घर के हऽ अउरी का चाहीं?" नास्ता ले के आवत प्रकाश सब सुन लेले रहले. ऊ कहले, "बाबूजी हम बिजय के बारे में जानत बानी. ऊ बहुते बढ़िया लइका हऽ. सुमन खातिर ऊ बहुत बढ़िया रही." ए पर बाबूसाहेब कहलन, "अच्छा त तू उनके जानत बाड़ऽ. त अब्दुलभाई अब देर कवना बात के? नास्ता कऽ के आजुए चल चलल जाव. बबुआ तुहूँ तैयार हो जा !
तबहीं प्रकाश के माई उहाँ अइली आ बोलली, "कहवाँ जाये के तैयारी करत बनी जी?" बाबूसाहेब कहलन, "अब्दुलभाई बबुनी खातिर एगो लईका देखले बाड़न. ओहिजे जाइब जा हमनी के." ऊ कहली, "ठीक बा. जाईं लोग. बाकिर मुँह मीठ क के जाईं. जा हो प्रकाश जाके भीतरी से लड्डू ले आवऽ."  तबहीं उहाँ एगो थाली में लड्डू लेके सुमन आ गइली. आवते अब्दुलमियाँ आउर अपना बाबूजी के प्रणाम कईली. ऊ लोग असीरबाद दिहल. प्रकाश मजाकिया मूड में कहलन, "लीं चाचा, ई अब राउर सेवा करे लागल ! सुमन लजाइ के भाग गइली. बाबूसाहेब कहलन, "प्रकाश तैयार होके मोटर साईकिल निकालऽ, चलल जाव. ऊ कहलन, "जी बाबू जी ! .............
.
बाकि अगिला अंक में 
.

 

 

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Replies to This Discussion

जय हो गुरूजी, बड़ नीमन कहानी बा ........................ उम्मीद करत बानी की आगे भी नीमन लागीI

dhanyabad sir

रविभाई, कहानी के उठान निकहा भइल बा. बेजायँ ना जे भरोसा बन रहल बा. आगहूँ ईहे धार बनल रही.

शुभेच्छा..

 

 

bhaiya kosi hamar rahi ki rauaa log ke biswas par khada utarin

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