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जनलो -चिन्ह्लको लोग आज कतरात बा I

दिन आपन लद गइल अइसन बुझात बा I

 

दिन -रात पाछे -पाछे काल्ह तक जे लागल रहे I

उहो आज हमरा के देखिके परात बा I

 

हमसे उ मिले अइहन जबसे सनेस मिलल I

तबे से ना जानें काहें मन घबरात बा I

 

सबसे खेलाड़ी बड़का होला बखत भईया I

काल्ह तक जे हंसत रहे आज गिड़गिड़ात बा I

 

देखते -देखत आइल केस में सफेदी I

हौले -हौले लागता बुढ़ापा नियरात बा I

 

गीतकार -- सतीश मापतपुरी

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Replies to This Discussion

सबसे खेलाड़ी बड़का होला बखत भईया I

काल्ह तक जे हंसत रहे आज गिड़गिड़ात बा I

 

सतीश भईया, बड़ी जोरदार भोजपुरी ग़ज़ल लिखला हो, बेजोड़ बा, समय सबसे बड़हन खेलाड़ी होला, और बुढ़ापा नियरात बा, इ शे'र त बहुत नीक कहनी रौआ, बधाई स्वीकार करी | 

गणेश जी, रउवा जब तक हमरा रचना पर टिपण्णी ना करिलां, तब तक हम रउवे  बारे में सोचत रहिलां. सराहना बदे साधुवाद.

भाई सतीशजी,

कहनाम ई पुरान हऽ बाकिर कतना साँच हऽ जे कवनो बात जब हिरदा से निकलो त ओकर असर सुनेवाला के महज़ मने ना सोझ ओकर अंतरमन प होला. राउर ई भोजपुरी ग़ज़ल पर आज हमार नज़र पड़ल आ, साँच कहीं, हमार आजु के बिहान मनसायन भइल चमक रहल बा. एक-एक शेर के कहन आ ओकर तासीर, भाईजी, निकहा मुलामियत से छू रहल बा. हम कवनो ग़ज़ल के शिल्प आदि पर कुछऊ कहे के अधिकारी नइखीं, बाकिर, ग़ज़ल के कुल्हि शेरन के भाव पर आपन विचार साझा करे से ना रहि पाइब.

कोमल भाव आ मजगर शब्दन के मणिकाञ्चन मिलान पर पहिले हमार बधाई आ आदर स्वीकार कइल जाओ.

 

जनलो -चिन्ह्लको लोग आज कतरात बा I

दिन आपन लद गइल अइसन बुझात बा I

अहा हा !  ग़ज़ब के तासीर आ भाव के कतना भारी वज़न ! राउर ई मतला अनदिना में प्रयुक्त होखे वाला मसल के काबिलियत राखत बा. मन त बस इहँवे से मुग्ध हो गइल बा.

 

दिन-रात पाछे -पाछे काल्ह तक जे लागल रहे I

उहो आज हमरा के देखि के परात बा I

वाह भाईजी !  पहिले त एह शब्द ’पराये’ पर हमार बधाई लीहीं. अनदिना जउरे-जउरे, पाछा-पाछा लागल रहे वाला के मुँह मोड़ाई ओकर परा जाये से कम ना होखे. का दर्द के रेख बा. वाह.

 

हमसे उ मिले अइहन जबसे सनेस मिलल I

तबे से ना जानें काहें मन घबरात बा I

एह शेर में रउआ कौ तरह के बात कतना असानी से कहले बानी ई खलसा बूझे भर के बात बा. केहू के एह कहन में रुमानियत के मुलामियत लउकी त केहू के एही कहन में रोजीना के व्यवहार पर निकहा इसारा बुझाई. बहुत सफल शेर.

 

सबसे खेलाड़ी बड़का होला बखत भईया I

काल्ह तक जे हंसत रहे आज गिड़गिड़ात बा I

एकदम सही, भाईजी. बखत के कुल्हिये ग़ुलाम. एही का मारे कहल गइल बा जे कबो नाँव प गाड़ी त कबो गाड़ी प नाँव.  आजु के परिदृश्य पर बहुत मारक चोट करि रहल बा ई शेर.

 

देखते -देखत आइल केस में सफेदी I

हौले -हौले लागता बुढ़ापा नियरात बा I

बारि में आइल सुफैदी के बुढ़ापा से का रगड़ाई जी?... चौहत्तर के जवान निकहा कवनो पैंतीस के परुआ बूढ़ से ..!!!  हा हा हा ..

 

भाई सतीशजी, दिल से कहीं त हम बहुत दिन पर कुछऊ अतना सहज बाकिर अतना गंभीर सुननी हँ. फेर-फेर हमार दिली दाद कबूल कइल जाओ. बहुत भरोसा के सबब बनल बा पहुँचा भर नियराइल राउर ई ग़ज़ल.

 

परम आदरणीय सौरभ जी, सबसे पाहिले त हम राउर दिल से, दिमाग से, ज़ज्बात से अउरी सरधा से धनवाद देब कि रउवा आपन बेसकिमति बखत निकाल के हमरा रचना पर देहलीं. शराबी फिल्म के एगो दृश्य में जयाप्रदा से अमिताभ कहले कि एक ही ताली में हज़ार गूंज सुनाई देही. रउवा एके टिप्प्णी में लाख टिप्पणी के असर बा, बहुत-बहुत धनवाद सर जी.

bahut badhia sir ji man khush ho gail

jai ho guruji

 

niman rachana ...........badi nik ba |

शुक्रिया चौबे जी.

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