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गम से हमार नाता बाटे पुरान ,
इंसानियत कहाला का ना पवनी जान ,
हमरा त बाटे बस एतना बतावे के ,
जान जाई इ किस्सा बा बड़ा दुःख दाइ ,
आइल अइसन आंधी के झोका अकिल हेराइल ,
रात के नींद गइल ,
दिनवा के चयनवा ,
आफत में पड़ गइल भाई हमार जान ,
गम से हमार नाता बाटे पुरान ,
जेकरा के हमहू समझनी आपन ,
ओकरा से कभू ना रहे अपनापन ,
मन में बसा के हमहू ,
गले से लगावनी उनके ,
आपन बनवानी उहो भाईले अनजान ,
गम से हमार नाता बाटे पुरान ,
इंसानियत के नाम पर हाथ बढ़वानी ,
जवन कुछ रहे लगे उनपे लुटवनी ,
दे देनी जवान रहे उ बढ़स आगे ,
दुःख जब भइल ना पुछले भुलाके ,
उनकर फोन अब आवत नइखे ,
जेकर बिच में बनल रहे अपनापन ,
गम से हमार नाता बाटे पुरान ,

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गम से हमार नाता बाटे पुरान ,
इंसानियत कहाला का ना पवनी जान ,

दुःख जब भइल ना पुछले भुलाके ,
उनकर फोन अब आवत नइखे ,
जेकर बिच में बनल रहे अपनापन ,
गम से हमार नाता बाटे पुरान ,


रवि जी, शायद ईहे दुनियादारी कहाला । आपन मतलब निकलला के बाद इंसान अपना लोग के भुला देला । बहुत नीमन कविता ।
neelam ji dhanyabad

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