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इ का हो रहल बा ,
समझ में नइखे आवत ,
का मनमोहन बाबु के,
बुद्धि कही चरे चल गइल बा,
कि उनकर बछरुआ ,
सब के सब बे हाथ हो गइल बा,
एगो राजा साहेब बाडन,
उनकरा बात से अईसन लागेला ,
अगर उ बडका घर में पैदा ना भइल रहते,
त उ कही के ना रहते ,
देखि काल्ह तक बाबा के,
आगे पीछे मंत्री लोग घुमत रहे ,
आज लाज पचावत बा लोग,
दिन के उजाला में शरम लगत बा ,
रात के अँधेरा में आसुगैस
आउर लाठी चलवावत बा लोग,
छिः चुलू भर पानी होखे,
ता डूब मर लोग,

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Replies to This Discussion

एह सद्यः प्रस्तुति के कारन आ एह कारन का पाछा के गुस्सा, भाईजी, एकदम से बुझा रहल बा.

मन संवेदना से सराबोर होखे त चारि तारीख के रात दिल्ली में घटल अइसना घटना पर चुप ना रहि सके. बाकिर ईहे कथनिया गद्य रूप में आइल रहित त बहस (डिसकसन) के निकहा बिन्दु सोझा रहित. गद्य के गरिमो के ध्यान राखल जरुरिये बा.

आ,

//आगे पीछे मंत्री लोग घुमात रहे ,
आज लाज पचावत बा लोग ,//

भाईजी, कहवाँ लाज पचावत बा लोग?? ऊ लोग त बेसरमी के हद ले जाइके सगरे घिनही मचवले बा..

गुरु जी, हमनी के पढ़ावल गइल बा कि कमजोर आदमी तुरंत अपना चरम पर यानी औकात पर आ जाला, इ कमजोर सरकार भी आपन औकात देखा दिहलस, इ त अंगरेजवन से चार कदम आगे निकल गइलन सन, जे भी सेंसेटिव दिमाग के लोग बा ओकरा मन में आक्रोश बा आ एकर खामियाजा आज न त काल भुगते के ही पड़ी | 

बहुत ही सुंदर रचना, साधुवाद | 

सबसे पाहिले त राउआ दुनु आदमी के धन्यवाद , रहल बात गुस्सा के त इ गुस्सा वो सब आदमी में आई जे दिल से हिदुस्तानी होखे आउर जे ओसामा के जी आउर कोई भी सन्यासी के ठग कही अउसन परविती के लोग के गुस्सा कहा से आई उहे न बात भइल नामर्द के मर्दानगी के वास्ता देला से कोई फायदा न होई ,
सरकार के हाथ हम सब ही मजबूत कईले बनी. अब रोए से का फ़ायदा होई. हाथ में तलवार हमही पकड़वले बानी. ख़ामियाजा भुगते खातिर तैयार रहीं 

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