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भोजपुरी साहित्य Discussions (244)

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मौत एगो सत्य ,

मौत एगो सत्य , जवन सवीकार नइखे , आई निश्चित बा , बाकिर बुझात नइखे , मौत एगो सत्य , जवन सवीकार नइखे , बचपन खेल कूद में , जवानी बीतल मस्ती मे…

Started by Rash Bihari Ravi

2 Oct 28, 2010
Reply by Rash Bihari Ravi

भोजपुरीया अब गुरु रहिआन ,

भोजपुरीया अब गुरु रहिआन , आउर कही इ लिखिहन ना , हरदम सजग रहिआन , दू पार्ट में अब पिसाये से बचिहन , आपन भाषा आपन बोली , हम सबका के समझाइब ,…

Started by Rash Bihari Ravi

0 Oct 21, 2010

मेहमान देव के स्वरुप होले ,

सुनले रहनी हम , मेहमान देव के स्वरुप होले , आवस ता उनके बईठाइ , खुबे बढ़िया जेवाई , इ सब कईला से प्रभु खुश होले , मेहमान देव के स्वरुप होले…

Started by Rash Bihari Ravi

0 Oct 21, 2010

आउर उ रूस गईले ,

आउर उ रूस गईले , संभावना हमेशा से बनल रहे , काहे की दिल बड़ा कमजोर होला , हल्का सा कडक बर्दास्त न करेला , मजाक में कहल गइल छोट बात , भी गड़…

Started by Rash Bihari Ravi

0 Oct 20, 2010

पढ़ा के काम हम अच्छा कईनी ,

पालपोस के बड़का कईनी , हम इ गजब का कर देहनी , दहेज ज्वाला में जलत बनी , जनमते कहे ना मुआ देहनी , सोचनी बेटी आउर बेटा में , अब कवनो अंतर नइख…

Started by Rash Bihari Ravi

2 Oct 15, 2010
Reply by आशीष यादव

गुरु जी के मान बतिया जीवन बदल जाई,

गुरु जी के मान बतिया जीवन बदल जाई, आज नाही बाबु दू चार साल बादे बुझाई , खायल रोज गुटका तुहू बाबु मन लगाइके , साझ ले तिस चालीस रूपया बिलवाइ…

Started by Rash Bihari Ravi

2 Oct 12, 2010
Reply by Rajesh Kumar Singh

माता पूजे सांवरी सजनिया ( नवरात पर)

माता पूजे सांवरी सजनिया ( नवरात पर) रुन्नू झुन्नू बाजे पैजनिया - माता पूजे सांवरी सजनिया. रहिला ( चना ) के दाल भरल पुड़िया पकवली. गु ड़ के…

Started by satish mapatpuri

2 Oct 11, 2010
Reply by Er. Ganesh Jee "Bagi"

बबुआ हो तनी घूम जाईता ,

बबुआ हो तनी घूम जाईता , फोनवा पे का हम सुनाई , खपरा फूटल छान के बाटे , सोच कईसे हम बनवाई , चार साल से तू ना आईला , बहुआ के लेके जबे तू गईला…

Started by Rash Bihari Ravi

8 Oct 7, 2010
Reply by Rash Bihari Ravi

कैसे बुझी गरीबन के गुरु पेट के आग ,

देखि मचल बाटे इहा भागमभाग , केहू उरावत बा बिना बतलब के , केहू मतलब खातिर खोजत बा , केहू के हिस्सा में कुछुओ नाइखे , केहू मरत बा बुझावे खाति…

Started by Rash Bihari Ravi

4 Oct 6, 2010
Reply by Neelam Upadhyaya

काहे ना इ राउआ बुझात बा ,

हमनी के खाएके नइखे मिळत , अब जिआल मिस्किल हो रहल बा , बाह रे हिंद के शासक , हम खाइला बिना मरत बनी , तोहार आनाज सड़त बा , सडा के तू मांगवइबा…

Started by Rash Bihari Ravi

1 Sep 21, 2010
Reply by Neelam Upadhyaya

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Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
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Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
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सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
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Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
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Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
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